करम सिंह

भारतीय सेना में लांस नायक एवं परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले प्रथम जीवित अधिकारी
(लांस नायक करम सिंह से अनुप्रेषित)

लांस नायक करम सिंह (बाद में सूबेदार एवं मानद कैप्टन) (15 सितम्बर 1915 - 20 जनवरी 1993), परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले प्रथम जीवित भारतीय सैनिक थे।[2] श्री सिंह 1941 में सेना में शामिल हुए थे और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा की ओर से भाग लिया था जिसमे उल्लेखनीय योगदान के कारण उन्हें ब्रिटिश भारत द्वारा मिलिट्री मैडल (एमएम) दिया गया। उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 में भी लड़ा था जिसमे टिथवाल के दक्षिण में स्थित रीछमार गली में एक अग्रेषित्त पोस्ट को बचाने में उनकी सराहनीय भूमिका के लिए सन 1948 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

सूबेदार एवं मानद कैप्टन
करम सिंह
परम वीर चक्र, सेना पदक
करम सिंह
जन्म 15 सितम्बर 1915
सेहना, बरनाला, पंजाब, भारत
देहांत 20 जनवरी 1993(1993-01-20) (उम्र 77)
निष्ठा ब्रिटिश भारत
भारत भारत
सेवा/शाखा ब्रिटिश भारतीय सेना
भारतीय सेना
सेवा वर्ष 1941–1969
उपाधि लांस नायक
बाद में मानद कैप्टन
सेवा संख्यांक 22356[1]
दस्ता प्रथम बटालियन (1  सिख)
युद्ध/झड़पें द्वितीय विश्व युद्ध
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947
सम्मान परम वीर चक्र
मिलिट्री मैडल (एमएम)

वह 1947 में आजादी के बाद पहली बार भारतीय ध्वज को उठाने के लिए चुने गए पांच सैनिकों में से एक थे। श्री सिंह बाद में सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में उनकी सेवानिवृत्ति से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा मिला।

प्रारम्भिक जीवन संपादित करें

श्री करम सिंह का जन्म 15 सितंबर 1915 को ब्रिटिश भारत के पंजाब में बरनाला जिले के सेहना गांव में एक सिख जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता उत्तम सिंह एक किसान थे। श्री सिंह भी एक किसान बनना चाहते थे, लेकिन उन्होंने अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियों से प्रेरित होने के बाद सेना में शामिल होने का फैसला किया। 1941 में अपने गांव में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह सेना में शामिल हो गए।

सैन्य जीवन संपादित करें

15 सितम्बर 1941 को उन्होंने सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में दाखिला लिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बर्मा अभियान के दौरान एडमिन बॉक्स की लड़ाई में उनके आचरण और साहस के लिए उन्हें मिलिट्री मैडल से सम्मानित किया गया था। एक युवा, युद्ध-सुसज्जित सिपाही के रूप में उन्होंने अपनी बटालियन में साथी सैनिकों से सम्मान अर्जित किया।

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 संपादित करें

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत और पाकिस्तान ने कश्मीरी रियासत के लिए लड़ाई लड़ी। संघर्ष के प्रारंभिक चरणों के दौरान पाकिस्तान के पश्तून आदिवासी सैन्य टुकड़ियों ने राज्य की सीमा पार कर दी तथा टिथवाल सहित कई गांवों पर कब्जा कर लिया। कुपवाड़ा सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर स्थित यह गांव भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था। 23 मई 1948 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों से टिथवाल पर से कब्जा वापस ले लिया लेकिन पाकिस्तानी सेना ने क्षेत्र को फिर से प्राप्त करने के लिए एक त्वरित हमले शुरू कर दिए। पाकिस्तानी हमले के दौरान भारतीय सैनिक जो उस हमले का सामना करने में असमर्थ थे अपने स्थिति से वापस टिथवाल रिज तक चले गए और उपयुक्त पल के लिए तैयारी करने लगे।

चूंकि टिथवाल की लड़ाई कई महीनों तक जारी रही, पाकिस्तानियों ने हताश होकर 13 अक्टूबर को बड़े पैमाने पर हमले शुरू कर दिए ताकि भारतीयों को उनकी स्थिति से हटाया जा सके। उनका प्राथमिक उद्देश्य टिथवाल के दक्षिण में स्थित रीछमार गली और टिथवाल के पूर्व नस्तचूर दर्रे पर कब्जा करना था। 13 अक्टूबर की रात को रीछमार गली पर भयानक लड़ाई के दौरान लांस नायक करम सिंह 1 सिख की अग्रिम टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। लगातार पाकिस्तानी गोलीबारी में श्री सिंह ने घायल होते हुए भी साहस नहीं खोया और एक और सैनिक की सहायता से वह दो घायल हुए सैनिकों को साथ लेकर आए थे। युद्ध के दौरान श्री सिंह एक स्थिति से दूसरी स्थिति पर जाते रहे और जवानों का मनोबल बढ़ाते हुए ग्रेनेड फेंकते रहे। दो बार घायल होने के बावजूद उन्होंने निकासी से इनकार कर दिया और पहली पंक्ति की लड़ाई को जारी रखा। पाकिस्तान की ओर से पांचवें हमले के दौरान दो पाकिस्तानी सैनिक श्री सिंह के करीब आ गए। मौका देखते ही श्री सिंह खाई से बाहर उनपर कूद पड़े और संगीन (बैनट) से उनका वध कर दिया जिससे पाकिस्तानी काफी हताश हो गए। इसके बाद उन्होंने तीन और हमलों को नाकाम किया और सफलतापूर्वक दुश्मन को पीछे हटा दिया।

सम्मान संपादित करें

लांस नायक करम सिंह को भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 के दौरान उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस 1950 के दिन परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Major General Ian Cardozo (31 दिसंबर 2003). Param Vir: Our Heroes in Battle. Roli Books Private Limited. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5194-029-6.
  2. पंढेर, सरबजीत. "Family of second Param Vir Chakra recipient to auction medal" [द्वितीय परम वीर चक्र प्राप्तकर्ता का परिवार करने वाला है पदक नीलाम]. द हिंदू (अंग्रेज़ी में). मूल से 10 सितम्बर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 एप्रिल 2018.