लाल दीघि ( बांग्ला: লালদিঘি; लाल तालाब), भारत के शहर कोलकाता के बीबीडी बाग (पूर्व में 'डलहौज़ी स्क्वायर') नामक चौक के केंद्र में एक बड़ा कृत्रिम तालाब है। 25 एकड़ क्षेत्र में फैले इस तालाब का कोलकाता और भारत के इतिहास में विशेष महत्व है क्योंकि यह वही जगह थी जहाँ 1756 में लाल दीघि की लड़ाई सिराजुद्दौला और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ा गया था। यह कोलकाता शहर के अस्तित्व में आने से पहले से मौजूद यह विशाल जलाशय आज व्यवसायिक जिले के केंद्र में स्थित है और शहर के इतिहास का हिस्सा है। ब्रिटिश काल में यह जलाशय शहर में ताजे पानी के स्रोतों में से एक था। पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने जलाशय के उत्तरी भाग में महाकरन के सामने एक भूमिगत कार पार्किंग प्लाजा का निर्माण कराया है।

लाल दीघि, कोलकाता
निर्देशांक22°34′16″N 88°20′53″E / 22.571°N 88.348°E / 22.571; 88.348निर्देशांक: 22°34′16″N 88°20′53″E / 22.571°N 88.348°E / 22.571; 88.348
प्रकारजलाशय
द्रोणी देशभारत
सतही क्षेत्रफल[convert: needs a number]
औसत गहराई[convert: needs a number]
अधिकतम गहराई[convert: needs a number]
 
1910 में डलहौजी स्क्वायर (बी.बी.डी. बाग), कलकत्ता में लाल दीघि

शुरुवात में इस जगह को 'टैंक स्क्वायर' (सरोवर चौक) कहा जाता था। 'लाल दीघि' का नाम, इसके चारों ओर उपस्थित लाल ईंटों से निर्मित आधिकारिक इमारतों के पानी में पड़ने वाले प्रतिबिंब के कारण, लाल नज़र आने वाले पानी के कारण पड़ा है। एक अन्य मान्यता के अनुसार 'होली' के त्योहर के दौरान तालाब का पानी लाल हो जाता है और इसी कारण इसे लाल तालाब (लाल दीघि बांग्ला में) कहते हैं। एक और कहानी बताती है कि, जलाशय लालचंद बसाक नामक व्यक्ति द्वारा खोदा गया था और जलाशय का नाम उनके नाम पर, लाल दीघि है।

1770 में एक डच आगंतुक, एडमिरल स्टविरिनस ने अपने संस्मरणों में लाल दीघि का ज़िक्र किया है, उन्होने लिखा है कि, यह तालाब 100000 वर्गमीटर क्षेत्र में फैला है, इसे सरकार के आदेश से खोदा गया था, ताकि कलकत्ता के निवासियों को पानी उपलब्ध कराया जा सके, इसका पानी ताजा और मीठा है। बहुत सारे भूमिगत सोते इसके जल-स्तर को बनाए रखते हैं। यह एक लोहे के कटघरे से घिरा हुआ है। इसमें किसी का तैरना मना है।

जॉब चार्नोक ने जब हुगली नदी के किनारे स्थित तीन गाँवों को जिनमें से एक कालिकाता जो तीनों में सबसे बडा और महत्वपूर्ण था, को आधुनिक कलकत्ता शहर की स्थापना के लिए अधिगृहीत किया था तब यहाँ एक पानी का तालाब (बंगाली में 'पुकुर') था जो कि खानदानी ज़मींदार सुबर्णा रायचौधरी की मिलकियत था। यहाँ रायचौधरी का घर, मंदिर और एक कचहरी भी थी। शुरुवात में जॉब चार्नोक ने इस कचहरी को खरीद कर उसमें अंग्रेज अधिकारियों के रहने और दस्तावेज रखने का इंतज़ाम किया था। आज की लाल दीघि 17 वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में 'ईस्ट इंडिया कंपनी' द्वारा इसी तालाब को चौकोर आकार में और गहरा खुदवा कर बनाई गयी थी। इतिहासकारों ने 1690 को कोलकाता शहर की जन्म वर्ष माना है।

गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल 1774 से 1785 के दौरान, जलाशय को साफ किया गया और उसके चारों तरफ बंध बनाया गया। पानी प्रदान करने वाले इसके भूमिगत सोतों को अभी भी कलकत्ता में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। आधुनिक जल वितरण प्रणाली की शुरुआत से पहले यह जलाशय कलकत्ता में मुख्यत: यूरोपीय निवासियों के पीने के पानी का मुख्य या कहें एकमात्र स्रोत था।

डलहौज़ी स्क्वायर का केन्द्र लाल दीधि, जिसके चारों ओर यातायात के लिए सड़क है, के पार इम्पीरियल इंडिया की सबसे प्रतिष्ठित इमारतें जैसे कि उत्तर में दीघि की पूरी चौड़ाई में फैला इंपीरियल सरकार का सचिवालय, जिसे 'राइटर्स बिल्डिंग' के नाम से जाना जाता है, आज पश्चिम बंगाल सरकार का सचिवालय है, पश्चिम में प्रधान डाकघर और 'भारतीय रिज़र्व बैंक', दक्षिण में 'करेंसी बिल्डिंग' और 'सेंट्रल टेलीग्राफ कार्यालय' जबकि उत्तर-पूर्वी कोने में 'सेंट एंड्रयू चर्च' स्थित है।

लाल दीघि की लड़ाई

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18 जून, 1756 को फोर्ट विलियम के कब्जे के लिए (और कलकत्ता के नियंत्रण के लिए) लाल दीघि की लड़ाई इसी जलाशय के पास हुई थी। बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराजुद्दौला ने ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना को करारी शिकस्त देते हुए शहर पर कब्जा कर लिया हालांकि 23 जून, 1757 को प्लासी में रॉबर्ट क्लाइव की अगुआई में अंग्रेजी सेना ने नबाव को हराकर एक बार फिर से कलकत्ता का नियन्त्रण अपने हाथों में ले लिया।

भूमिगत वाहन स्थल

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भूमिगत वाहन स्थल

पश्चिम बंगाल सरकार ने राइटर्स बिल्डिंग के सामने लाल दीघि के उत्तरी किनारे पर 115,000 वर्ग फुट के एक भूमिगत वाहन स्थल का निर्माण कराया है। यह परियोजना की लागत 35 करोड़ रुपये है और यहाँ 800 कारें खड़ी की जा सकती हैं। वर्तमान में यह कोलकाता शहर का सबसे बड़ा कार पार्किंग प्लाजा है।[1]