लैंगिक ताटस्थ्य (विशेषण रूप: लैंगिक-तटस्थ), यह विचार है कि नीतियों, भाषा और अन्य सामाजिक संस्थाओं (सामाजिक संरचनाएँ या लैंगिक भूमिकाएँ ) [1] को लोगों के लिंग के अनुसार भिन्न भूमिकाओं से बचना चाहिए। यह इस धारणा से उत्पन्न होने वाले लिंगवाद से बचने हेतु है कि ऐसी सामाजिक भूमिकाएँ हैं जिनके हेतु एक लिंग दूसरे की तुलना में अधिक अनुकूल है। पूरे इतिहास में लैंगिक साम्य में वैषम्य का समाज के कई पहल्वों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जिसमें विपणन, खिलौने, शिक्षा और पालन-पोषण की तकनीकें शामिल हैं। वर्तमान में लैंगिक ताटस्थ्य को बढ़ाने हेतु, लिंग तटस्थ भाषा का प्रयोग करने और समानता की समर्थन करने पर सामाजिक महत्त्व दिया गया है।

  1. Udry, J. Richard (November 1994). "The Nature of Gender". Demography. 31 (4): 561–573. JSTOR 2061790. PMID 7890091. डीओआइ:10.2307/2061790.