लिखने का कारण रघुवीर सहाय द्वारा लिखित निबंध-संग्रह है। इसका प्रकाशन सन् 1978 मेें हुआ था। रचना-प्रक्रिया, साहित्य, भाषा तथा समाज संबंधी विषयों को इस निबंध-लेखन का आधार बनाया गया है।

लिखने का कारण  
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मुखपृष्ठ
लेखक रघुवीर सहाय
देश भारत
भाषा हिंदी
विषय साहित्य

परिचय संपादित करें

इस पुस्तक की 'भूमिका' में रघुवीर सहाय लिखते हैं कि- लेखक जब कभी अपनी रचना-प्रक्रिया के विषय में सोचता है तो अंशतः वह जो कर चुका होता है उसका विश्लेषण कर रहा होता है और अंशतः वह जो नहीं कर पाया और करना चाहता है उसकी तैयारी कर रहा होता है। इस तरह रचना-प्रक्रिया संबंधी उसके विचार उसे एक साथ वर्तमान और भविष्य में ले जाते हैं।[1]

प्रमुख निबंध संपादित करें

इस पुस्तक में कुल बत्तीस निबंध हैं जिनमें से प्रमुख निबंध निम्नलिखित हैं-

  1. कविता की ज़रूरत,
  2. रचना-प्रक्रिया,
  3. भीड़ में रचना,
  4. आत्म-निरीक्षण,
  5. परम्परा,
  6. समकालीन क्या है,
  7. बोलने और सुनने की कविता,
  8. प्रयोगवाद और नयी कवितावाद,
  9. लेखक की नोटबुक से,
  10. प्रयोग : सौंदर्यबोध की परम्परा,
  11. कविता और करुणा,
  12. ईमानदारी,
  13. ईमानदारी के बाद,
  14. स्वतंत्रता के दिनों का संकट और मैं,
  15. टूटी हुई, बिखरी हुई : एक प्रतिक्रिया,
  16. भाषा के निमित्त से,
  17. शिशुचित्र कला नहीं है,
  18. अज्ञेय,
  19. लेखिका का बंधन,
  20. कहानी और कविता,
  21. नेपथ्य से,
  22. दो चार शब्द,
  23. अपनी तसवीर,
  24. लेखक के सामने : १-लोठार लुट्से से बातचीत,
  25. कौन-सी कहानी,
  26. हिन्दी का अर्थ,
  27. हिन्दी-प्रेमियों से दो शब्द,
  28. भाषा की पूजा बंद करो,
  29. साहित्यकार का धंधा,
  30. साहित्यिक पत्रकारिता,
  31. प्रयोजनमूलक हिन्दी और अनुवाद,
  32. लेखक के सामने : २-अशोक वाजपेयी और मंगलेश डबराल से बातचीत

इन्हें भी देखें संपादित करें

संदर्भ संपादित करें

  1. रघुवीर, सहाय (1978). लिखने का कारण. दिल्ली: राजपाल एण्ड सन्ज़. पृ॰ 5.