रघुवीर सहाय
रघुवीर सहाय (९ दिसम्बर १९२९ - ३० दिसम्बर १९९०) हिन्दी के साहित्यकार व पत्रकार थे।
रघुवीर सहाय | |
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जन्म | 09 दिसम्बर 1929 लखनऊ, उत्तरप्रदेश, भारत |
मौत | 30 दिसम्बर 1990 दिल्ली, भारत | (उम्र 61 वर्ष)
पेशा | कवि, लेखक, पत्रकार, अनुवादक |
काल | आधुनिक काल |
विधा | गद्य और पद्य |
विषय | कविता, कहानी, निबंध |
खिताब | 1984 : साहित्य अकादमी पुरस्कार लोग भूल गए हैं के लिए |
रघुवीर सहाय का जन्म लखनऊ में हुआ था। अंग्रेज़ी साहित्य में एम ए (१९५१) लखनऊ विश्वविद्यालय। साहित्य सृजन १९४६ से। पत्रकारिता की शुरुआत दैनिक नवजीवन (लखनऊ) से १९४९ में। १९५१ के आरंभ तक उपसंपादक और सांस्कृतिक संवाददाता। इसी वर्ष दिल्ली आए। यहाँ प्रतीक के सहायक संपादक (१९५१-५२), आकाशवाणी के समाचार विभाग में उपसंपादक (१९५३-५७)। १९५५ में विमलेश्वरी सहाय से विवाह।
साहित्यिक जीवन
संपादित करेंरघुवीर सहाय अपने आरंभिक वर्षों से अंतिम वर्षों तक वे निरंतर रचना के अनेक मोर्चों पर सक्रिय रहे। सहाय जी की पहली उपलब्ध कविता सन् 1946 में लिखी गई ‘अंत का प्रारंभ', जब वे 17 वर्ष के थे। साहित्य और पत्रकारिता की शुरुआत उन्होंने लखनऊ में की, जहाँ उनका जन्मस्थान है। 1946 से 51 के आरंभिक महीनों तक उन्होंने पढ़ाई के साथ ही कविताएँ लिखीं और छपवाई। इन दिनों सबसे अधिक वे रेडियो से जुड़े प्रसारण के माध्यम से शिल्पगत रुचि का आरंभ हुआ जो विविध रूपों में अंत तक बना रहा। रेडियो पर कविताओं के अलावा बच्चों के लिए दर्जनों कहानियों का भी प्रसारण किया। इसी दौरान हीरानंद शास्त्री के पुरातत्त्व संबंधी अंग्रेज़ी व्याख्यानों के हिंदी अनुवाद में भी रत रहे। लखनऊ से ही निकलने वाले 'नवजीवन' दैनिक से पत्रकारिता की शुरुआत की।
1949 में दूसरा सप्तक' के लिए अज्ञेय ने उनसे कविताएँ लीं जो 1951 में प्रकाशित हुई। इस मध्य दिसंबर 1949 से मार्च 1950 तक लखनऊ से निकलने वाले दैनिक 'नवजीवन' में उप-संपादक रहे। 1950 में लखनऊ के दैनिक 'नवजीवन' से पत्रकारिता शुरु की 'अमृत' पत्रिका के संपादक ने सहाय जी की क्षमताओं से प्रभावित होकर उन्हें संपादकीय लिखने कापहला अवसर दिया जो 13 मई, 1950 को छपा। लखनऊ लेखक संघ और नाट्य संघ के गठन में कृष्णनारायण कक्कड़ तथा नरेश मेहता के साथ शामिल हुए। यशपाल के नाटक 'नशे-नशे की बात' में यशपाल, कक्कड़ आदि के साथ अभिनय किया। अज्ञेय जी ने उन्हें मई 1951 में प्रतीक' का सहायक संपादक बनाकर दिल्ली बुला लिया।
मई 1953 से मार्च 1957 तक आकाशवाणी के समाचार विभाग में उप-संपादक के पद पर रहे। वहाँ से त्यागपत्र देने के बाद पुनः मुक्त लेखन किया। साथ ही लखनऊ से निकलने वाली पत्रिका 'युगचेतना' के दिल्ली प्रतिनिधि रहे। इसके जुन-जुलाई के अंक में 'हमारी हिंदी' कविता छपी जिसे लेकर सरकारी हिंदी सलाहकारों में बावेला मच गया। 'सरस्वती' के संपादक ने कवि और कविता के विरुद्ध लेख लिखा। “कविता में हिंदी अगर दुहाजू की बीवी है तो यह दुहाजू कौन है?" विरोधियों के द्वारा यह प्रश्न पूछा जाने लगा। इस पूरे प्रकरण पर यशपाल ने कविता का समर्थन किया।
रचनाएँ
संपादित करेंदूसरा सप्तक, सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो हँसो जल्दी हँसो (कविता संग्रह), रास्ता इधर से है (कहानी संग्रह), दिल्ली मेरा परदेश और लिखने का कारण(निबंध संग्रह) उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।[1]
इसके अलावा 'बारह हंगरी कहानियाँ', विवेकानंद (रोमां रोला), 'जेको', (युगोस्लावी उपन्यास, ले० येर्ज़ी आन्द्र्ज़ेएव्स्की , 'राख़ और हीरे'( पोलिश उपन्यास ,ले० येर्ज़ी आन्द्र्ज़ेएव्स्की) तथा 'वरनम वन'( मैकबेथ, शेक्सपियर ) शीर्षक से हिन्दी भाषांतर भी समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं।[2]
रघुवीर सहाय समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं। उनके साहित्य में पत्रकारिता का और उनकी पत्रकारिता पर साहित्य का गहरा असर रहा है। उनकी कविताएँ आज़ादी के बाद विशेष रूप से सन् ’60 के बाद के भारत की तस्वीर को समग्रता में पेश करती हैं। उनकी कविताएँ नए मानव संबंधों की खोज करना चाहती हैं जिसमें गैर बराबरी, अन्याय और गुलामी न हो। उनकी समूची काव्य-यात्रा का केंद्रीय लक्ष्य ऐसी जनतांत्रिक व्यवस्था की निर्मिति है जिसमें शोषण, अन्याय, हत्या, आत्महत्या, विषमता, दासता, राजनीतिक संप्रभुता, जाति-धर्म में बँटे समाज के लिए कोई जगह न हो। जिन आशाओं और सपनों से आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी उन्हें साकार करने में जो बाधाएँ आ रही हों, उनका निरंतर विरोध करना उनका रचनात्मक लक्ष्य रहा है। वे जीवन के अंतिम पायदान पर खड़े होकर अपनी जिजीविषा का कारण ‘अपनी संतानों को कुत्ते की मौत मरने से बचाने’ की बात कहकर अपनी प्रतिबद्धता को मरते दम तक बनाए रखते हैं।[3]
सम्मान
संपादित करेंकविता संग्रह 'लोग भूल गए हैं ' के लिए 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।[4]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ समकालीन भारतीय साहित्य (पत्रिका). नई दिल्ली: साहित्य अकादमी. जनवरी मार्च १९९२. पृ॰ १९२.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद);|access-date=
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(मदद) - ↑ रघुवीर सहाय का कवि-कर्म , सुरेश शर्मा
- ↑ रघुवीर सहाय: जीवन एवं संवेदना - डॉ जय शंकर तिवारी, एम० पी० कॉलेज कोंच (जालौन) उ०प्र०
- ↑ "साहित्य अकादमी पुरस्कार: हिंदी". sahitya-akademi.gov.in. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मई 2017.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- रघुवीर सहाय – हिंदी के विलक्षण कवि (प्रवासी दुनिया)
- रघुवीर सहाय की दुनिया[मृत कड़ियाँ]
- रघुवीर सहाय.. लंबे समय तक याद रखे जाने वाले [मृत कड़ियाँ] (जागरण)
- रघुवीर सहाय की 5 बेहतरीन अंतिम कविताएँ Archived 2020-03-25 at the वेबैक मशीन (शब्दांकन)