लोकनाथ गोस्वामी गैड़ीय वैष्णव सन्त थे। उनका जन्म यशोहर (जैसोर) के तालखडि ग्राम में सं. १५४० में हुआ था। पिता का नाम पद्मनाम चक्रवर्ती तथा माता का सीता देवी था। यह पंद्रह वर्ष के वय में नवद्वीप आए तथा अद्वैताचार्य के यहाँ भक्तिशास्त्र का अध्ययन करने लगे। श्रीगौरांग तथा गदाधर पंडित यहाँ इनके सहपाठी थे। इनकी भक्ति से प्रसन्न हो आचार्य ने स्वयं इन्हें दीक्षा दी। श्रीगौरांग के आदेश से अपने सहपाठी भूगर्भ स्वामी के साथ वृंदावन के लुप्त लीलास्थानों को खोजने के लिए गए। वहाँ पता लगाकर इन्होंने सैकड़ों तीर्थों का उद्धार किया तथा उन्हें लेखबद्ध किया। किशोरीकुंड के पास रहते समय श्री राधागोविंद की मूर्ति इन्हें मिली। इन्होंने केवल एक शिष्य नरोत्तमदास ठाकुर को बनाया और उन्हें भी संवत् १६२९ में बंगाल में भक्तिप्रचारार्थ भेज दिया। इसके दो तीन वर्ष बाद इन्होंने शरीर त्याग दिया।

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