लोलार्क कुंड
लोलार्क कुण्ड उत्तर प्रदेश के प्राचीन नगर बनारस में तुलसीघाट के निकट स्थित एक कुण्ड है। मान्यता अनुसार यह अति प्राचीन है तथा इस कुण्ड का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। कालान्तर में इन्दौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस कुण्ड के चारों तरफ कीमती पत्थर से सजावट करवाई थी। इसी के समीप लोलाकेश्वर का मंदिर है। भादो महीने (अगस्त-सितम्बर) में यहां लक्खा मेला लगता है और तब काशी के इस लोलार्क कुंड में डुबकी लगाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। अस्सी के भैदानी स्थित प्रसिद्ध लोलार्क कुंड पर हर साल लाखों श्रद्धालुओं का मेला लगता है। लक्खा मेले में लोलार्क पष्ठी या सूर्य षष्ठी स्नान की बड़ी मान्याता है, और कहते हैं कि महादेव लोलार्केश्वर संतान प्राप्ति की कामना वाले दंपतियों की मनोकामना पूरी कर देते हैं। [1] लोलार्क कुंड में स्नान करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से श्रद्धालुओं की यहां भीड़ जुटती है।
लोलार्क कुंड | |
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स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
निर्देशांक | 25°17′27.96″N 83°0′20.88″E / 25.2911000°N 83.0058000°Eनिर्देशांक: 25°17′27.96″N 83°0′20.88″E / 25.2911000°N 83.0058000°E |
स्थानीय नाम | लोलार्क कुण्ड |
नामोत्पत्ति | ्सूर्य से नाम पड़ा |
मातृ जलसमूह | गंगा नदी |
द्रोणी देश | भारत |
बस्तियाँ | वाराणसी |
इतिहास
संपादित करेंमान्यता के अनुसार सूर्य के रथ का पहिया भी कभी यहीं गिरा था जो कुंड के रूप में विख्यात हुआ। कलांतर में यह लोकमान्यता हो गया कि जिसको संतान की उत्पत्ति न हो वह सपत्नीक इस कुंड में स्नान कर लेता है तो उसको संतान का लाभ मिलता है।
लोलार्केश्वर महादाव मंदिर के महंत के अनुसार पश्चिम बंगाल स्थित कूच विहार स्टेट के एक राजा चर्मरोग से पीड़ित तथा निस्संतान थे। इसी के बताने पर यहां स्नान करने से न केवल उनका चर्मरोग ठीक हुआ बल्कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति भी हुई।[2] कहते हैं कि उन्होंने इस कुंड का निर्माण सोने की ऊंट से कराया था। इस कुंड को सूर्य कुंड के नाम से भी जाना जाता है। भाद्रपद्र के शुक्ल पक्ष की पष्ठी वाले दिन कुंड से लगे कूप से पानी आता है। सूर्य की रश्नियों के पानी में पड़ने से संतान उत्पत्ति का योग बनता है। मान्यता है कि इस दौरान महिलाओं के स्नान करने से उन्हें संतान प्राप्त होती हैं।[1]
इनके अलावा साधू संन्यासी लोग भी यहां मोक्ष के लिए स्नान करते हैं। स्नान करने के बाद दंपति कुंड पर ही अपने कपड़े छोड़ देते हैं। यहां एक फल का त्याग करने का भी विधान है।
यह भी कहा जाता है कि वैज्ञानिक मान्यता के आधार पर लोलार्क कुंड की बनावट कुछ इस तांत्रिक विधि से की गई है कि भादो की षष्ठी तिथि को सूर्य की किरणें इस कुंड की जगह पर अत्यंत प्रभावी बन जाती है। इस दिन यहां स्नान करने के उपरान्त कोई फल खरीदकर उसमें सूई चुभाई जाती है जिसे सूर्य की रश्मि का प्रतीक भी माना जाता है। [3]निर्देशांक: 25°17′27.96″N 83°0′20.88″E / 25.2911000°N 83.0058000°E{{#coordinates:}}: cannot have more than one primary tag per page
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ "काशी के इस कुंड का है बड़ा महत्व, पूरी होती है संतान की मन्नत". www.navodayatimes.in (hindi में). 2018-09-17. मूल से 9 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-12-07.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
- ↑ "काशी के इस कुंड में नहाने से पूरी होती संतान प्राप्ति की कामना, लाखों ने लगाई डुबकी- Amarujala". Amar Ujala. मूल से 9 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-12-07.
- ↑ "काशी के इस कुंड में नहाने से पूरी होती संतान प्राप्ति की कामना, लाखों ने लगाई डुबकी- अमर उजाला". amarujala.com. मूल से 9 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-12-07.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- "लोलार्क कुण्ड, वाराणसी - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर". bharatdiscovery.org. मूल से 31 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-12-07.