लौकिक साहित्य से अभिप्राय उस साहित्य से है जो लोक संवेदना से उपजकर उसका संवर्धन, संचयन और प्रकटीकरण करता है। इसके साथ ही वह लोक जीवन से अविच्छन्न रहकर लोक का कंठहार बना रहता है। इसके संरक्षण का दायित्व लोक द्वारा ही निभाया जाता है।नारी के सहज़ श्रृंगार से लेकर उसके मानसिक सौंदर्य तक पहुंचने की प्रवृति आदिकाल के इस साहित्य मे प्रस्फुटित हुई है। इसके प्रमुख कवि अमीर खुसरो और विद्यापति है

आदिकालीन लौकिक साहित्य संपादित करें

हिंदी साहित्य के आदिकाल में लौकिक साहित्य विपुल मात्रा में रचा गया था। इनमें वियोग श्रृंगार का काव्य संदेश रासक सर्व प्रमुख है। अमीर खुसरो की पहेलियाँ और मुकरियाँ, रोड़ा कवि द्वारा रचित गद्य पद्य मिश्रित धोलामारुरादुहा, बसन्त विलास आदि भी लौकिक साहित्य का प्रमुख अंग है। ]]

देखें संपादित करें