वसंतराज
एम डी वसंतराज कई जैन धार्मिक ग्रन्थों का कन्नड अनुवाद या सम्पादन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने मैसूर और मद्रास विश्वविद्यालयों में जैन धर्म और प्राकृत भाषा की शिक्षा का कार्य भी किया तथा कई विद्यार्थियों का पी एच डी में मार्गदर्शन किया।
एम डी वसंतराज | |
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जन्म | मरुकनाहल्ली गाँव जो के आर पेट माँड्या जिले के निकट है |
मौत |
दिसम्बर 27, 2003 मैसूर |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उपनाम | वसंतराज |
पेशा | मैसूर और मद्रास विश्वविद्यालयों में जैन धर्म और प्राकृत भाषा की शिक्षा |
प्रसिद्धि का कारण | कई जैन धार्मिक ग्रन्थों का कन्नड अनुवाद/ सम्पादन |
जन्म
संपादित करेंवसंतराज का जन्म मरुकनाहल्ली गाँव में हुआ जो के आर पेट माँड्या जिले के निकट है। [1]
शिक्षा
संपादित करेंवसंतराज ने संस्कृत में एम ए किया। उनके पी एच डी शोध का विषय "त्रिविकर्म के प्राकृत शब्दानुशासन" था।[1]
कार्य
संपादित करेंवसंतराज मैसूर विश्वविद्यालय मे जैनधर्मविद्या और प्राकृत के प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष थे। उन्होंने अपनी सेवाएँ मद्रास विश्वविद्यालय को भी दी थी। कक्षा की व्यस्तता के साथ वे शोध के क्षेत्र के मार्गदर्शक भी थे। उन्होंने कई पी एच डी विद्यार्थियों को डिग्री प्राप्त करने में सहायता की थी।[1]
लेखन/ सम्पादन
संपादित करेंवसंतराज ने कई जैन ग्रन्थों की कन्नड भाषा में व्यख्या की है जैसे कि उपाशाकाचर, विष्पहार स्थोर, पथराकेशरी स्वामी स्थोर, पथराकेसरी स्वामि स्थोर और बसरस अनुवेक्क (कुंदकुंदचार्य), सनमति श्रीविहार, दिगम्बर जैन आगम कृतिगला भाषे, श्रवकाचार नूतन प्रतिपादन और जैनगाम इतिहास दीपिके।[1]
पुरस्कार
संपादित करें- आचार्य विद्यासागर मान्यता जो भारतीय ज्ञानपीठ के अंतरगत स्थापित की गई है।
- श्री गोमतेश्वर विद्यापीठ[1]