वारिस शाह
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वारिस शाह (पंजाबी: ur, ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ) एक पंजाबी कवि थे जो मुख्य रूप से अपने "हीर राँझा" नामक काव्य-कथा के लिये मशहूर हैं। कहा जाता है कि उन्होंने हीर को "वारिस की हीर" बना कर अमर कर दिया।
जन्म
संपादित करेंवारिस शाह का जन्म सन् १७२२ ईसवी में सैयद गुलशेर शाह के घर लाहौर से क़रीब ५० किलोमीटर दूर शेख़ूपुरा ज़िले के गाँव जंडियाला शेर ख़ान (ur) में हुआ। ज़्यादातर भारतीय उपमहाद्वीप के लेखकों ने वारिस शाह का जन्म सन् १७०४, १७३०, १७३५ या १७३८ में अनुमानित किया है। परन्तु पिता-पुरखी बाबा वारिस शाह की मज़ार की सेवा करने वाले और हाल ही में 'बज़्म-ए-कलाम वारिस शाह सोसायटी' की बुनियाद रखने वाले शेख़ूपुरा के ख़ादिम वारसी, पिरो ग़ुलाम पैगंबर और जज अहमद नवाज़ रांझा आदि सहित पाकिस्तान के विद्वानों का भी यही मानना है कि वारिस शाह का जन्म सन् १७२२ ईसवी में हुआ था। दरबार वारिस शाह के बाहर लगी पत्थर की शिला पर अरबी भाषा में बाबा जी का जन्म सन् १७२२ और देहांत १७९८ में हुआ लिखा है।
बचपन में वारिस शाह को इन के पिता वलों पिंड जंड्याला संतुष्ट खान की ही मस्जिद में पढ़ने के लिए भेजा गया। यह मस्जिद अब भी इस कवि की मज़ार के दक्षिण-पश्चिम की तरफ मौजूद है।
उस के बाद इन्हों ने दर्शन-ए-नज़ामी की शिक्षा कसूर में मौलवी ग़ुलाम मुर्तज़ा कसूरी से हासिल की। वहाँ फ़ारसी और अरबी में उच्च तालीम (विद्या) प्राप्त करके यह पाकपटन चले गए। पाकपटन में बाबा'रीद की गद्दी पर मौजूद बुज़ुर्गों से इन को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिस के बाद यह रानी हांस (कई लेखकों ऊँट पालक राम) की मस्जिद में बतौर इमाम रहे और धार्मिक विद्या का प्रसार करते रहे।
हीर की रचना
संपादित करेंवारिस शाह से पहले दमोदर ने (मुग़ल बादशाह अकबर के राज समय क़िस्सा हीर-रांझा की रचना की), मुकबल (समेत 1764 में), अहमद गुज्जर (औरंगजेब के राज समय), हामद (सन 1220 हिजरी में) सहित पति चरा. ईवाण, गंगा भट्ट और गुरदास गुणी हीर लिख चुके थे।
ईमाम होने के समय में मस्जिद रानी हांस के स्थान पर वारिस शाह ने 1767 ईसवी में हीर की रचना संपूर्ण की। छोटी ईंट का बना यह मस्जिद आज भी मिंटगुमरी कालेज के अहाते अंदर यादगार के तौर पर मौजूद है। बताते हैं कि वारिस की हीर इतनी लोकप्रिय हुई कि लोग दूर दूरगामे से उन से उनके द्वारा रचित हीर सुनने आते और हीर सुन कर दीवानों की तरह झूमने लगते। इस तरह वारिस शाह की हीर ने कई रांझे बना दिये। पाकिस्तान के अलग-अलग शहरों में रांझा जाति के इलावा बहुत सी ओर भी ऐसे लोग हैं, जो रांझे न हो कर भी अपने नाम के साथ रांझा लिखते हैं।
जो लोग वारिस की हीर सुनकर झूमने लगते थे और हीर सुन कर वारिस शाह के शिष्य बन गए, उन को लोगों ने रांझे कहना शुरू कर दिया, जो पिता-पुरखी अब उन की उपनाम बन चुका है।
मज़ार
संपादित करेंजंडियाला शेर ख़ान में ही पीर सैयद वारिस शाह की मज़ार है। वारिस शाह के दरबार की हालत ९-१० वर्ष पहले बहुत दयनीय थी। आसपास सारी जगह कच्ची और नम होने के कारण वारिस शाह और उनके पिता सहित दरबार में मौजूद दूसरे मज़ारों के आशा के पास बरसात के दिनों में पानी खड़ा हो जाता थी और श्रद्धालूओं को दरबार में माथा टेकने के लिये मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। परन्तु अब पाकिस्तान सरकार और श्रद्धालूओं ने प्रयास करके दरबार पक्का, खुला-सुंदर और हवादार बना दिया है।
सन् २००८ में वारिस शाह की सालगिरह पर तीन दिन तक २३ जुलाई से २५ जुलाई तक उनकी मज़ार पर उर्स मनाई गई थी जिस दौरान २४ जुलाई को पूरे शेख़ूपुरा ज़िले में सरकारी छुट्टी ऐलान की गई थी और २५ जुलाई को "वारिस की हीर" नाटक करवाया गया था। हर वर्ष उर्स पर करीब ५०,००० लोग वारिस शाह के दरबार में हाज़री भरते हैं और मेले में हर कोई हीर पढ़ने वाला अपने-अपने अंदाज में पुरानी रवायत अनुसार यहाँ हीर पढ़ता है।