वार्ता:गंधरादित्य

Latest comment: 11 माह पहले by Bhimashankar urgunde in topic गंडरादित्य

गंडरादित्य

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परांतक प्रथम (लगभग 956 ई.) की मृत्यु के बाद से लेकर राजराज चोल प्रथम (985 ई.) के राज्यारोहण तक का चोल इतिहास अस्पष्ट और अस्त-व्यस्त है। इस अवधि में चोलों के वंशानुक्रम, तिथि और घटनाक्रम का स्पष्ट ज्ञान नहीं है।

इतिहासकारों के अनुसार, परांतक प्रथम की मृत्यु के बाद, उसके दूसरे पुत्र गंडटादित्य ने 956 ई. के आसपास शासन की शपथ ली। इसने संभवतः बहुत कम समय (957 ई.) तक शासन किया, और इसके बारे में कोई विशेष उपलब्धि की जानकारी नहीं है। चोलों का प्रदेश तोंडैमंडलम् ने बनाए रखा और यह कृष्ण तृतीय के आक्रमणों का सामना करना पड़ रहा था।

गंडरादित्य के शासनकाल में एक लेख में एक सामंत ने दावा किया है कि उसने वीरचोलपुरम् में अपने शत्रुओं को पराजित किया। लेख में शत्रु का नाम नहीं है, लेकिन अनुमान है कि यह सरदार नरसिंहवर्मा था, जिसने अपने शासनकाल के सत्रहवें वर्ष (955 ई.) में कृष्ण तृतीय की अधीनता स्वीकार की

थी।

गंडरादित्य की महारानी शेबियन एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी, जिनके द्वारा उत्तमचोल पैदा हुआ था। गंडरादित्य की आकस्मिक मृत्यु के बावजूद, वह 1001 ई. तक जीवित रही। उसने कई पाषाण मंदिरों का निर्माण कराया और दान दिया। गंडरादित्य साहित्य प्रेमी थे और कहा जाता है कि चिदंबरम् मंदिर के श्लोक की रचना उन्होंने स्वयं की थी। गंडरादित्य का शासन 957 ई. के आसपास समाप्त हुआ।

अरिंजय (957 ई.)

गंडरादित्य की मृत्यु के बाद, उसके भाई अरिंजय (957 ई.) ने चोल राज्याभिषेक किया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार, उसकी उपाधि 'अटिकुलकेशरि' थी, लेकिन इस संबंध में कोई निश्चितता नहीं है।

अजय का शासनकाल भी बहुत कम था। उसकी दो टानियाँ, वोमन कुंददैयार और कोदईपिदात्तियार, उसकी मृत्यु के बाद भी जीवित रहीं।

संभवतः अरिंजय ने राष्ट्रकूट कृष्ण तृतीय के छीने गए चोल प्रदेशों की प्रतिष्ठा की कोशिश की

, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली और उसकी मृत्यु इसी प्रयास में हुई। लेखों के अनुसार, अरिंजय की मृत्यु मेलपाणि के आसपास हुई थी (संभवतः आर्कट में हुई, क्योंकि राजराज चोल प्रथम के एक अभिलेख में यह कहा गया है कि उन्होंने वहां मरने वाले राजा की स्मृति में एक मंदिर का निर्माण करवाया था)। इससे यह प्रतीत होता है कि उसकी मौत मेलपाडि के आसपास ही हुई होगी।

परांतक चोल द्वितीय या सुंदरचोल (957-973 ई.)

अरिंजय की मृत्यु के बाद, उसके पुत्र सुंदरचोल पटांतक द्वितीय (या सुंदरचोल) (957-973 ई.) ने चोल सिंहासन का उत्तराधिकारी बनकर 'मदुरैकोंड राजकेशरि' की उपाधि प्राप्त की। पटांतक द्वितीय ने पांड्य शासक को परास्त कर दिया था। उसकी मृत्यु काँचीपुरम् में हुई थी और मृत्यु के बाद उसे 'राजराज प्रथम' की उपाधि दी गई थी। उसकी एक रानी वानवन महादेवी थी, जो उसकी मृत्यु के बाद सती हो गईं।

आपके द्वारा उपयोग किए गए स्रोतों के अनुस

ार, यह चोल राजाओं के बारे में पर्याप्त जानकारी है जो उपलब्ध है। हालांकि, इस समय के चोल शासकों के बारे में अधिक विवरण उपलब्ध नहीं हैं और इसके कारण उनके शासनकाल और कार्यकाल का निर्धारण करना मुश्किल है। Bhimashankar urgunde (वार्ता) 16:17, 27 जून 2023 (UTC)उत्तर दें

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