विदिशा का किला पत्थरों के बड़े-बड़े खंडों से बना हुआ है। इसकी चारों तरफ बड़े-बड़े दरवाजे का प्रावधान था। चारों तरफ स्थित किले की मोटी दीवार पर जगह-जगह पर तोप रखने की व्यवस्था थी। किले के दक्षिण पूर्व के दरवाजे की तरफ अभी भी कुछ तोपें देखी जा सकती है।

पुराना किला

इस किला का निर्माणकाल स्पष्ट नहीं है। फणनीसी दफ्तर के रिकार्ड के अनुसार इसे औरंगजेब द्वारा बनवाया गया कहा गया है, लेकिन कई विद्धानों का यह मानना है कि किला बहुत प्राचीन है। एक संभावना के अनुसार इसे ई. पू. सदी के पशुओं के एक धनी व्यापारी साह भैंसा साह ने बनवाया था। इसी वंश के साह की पुत्री से अशोक का विवाह हुआ था। बार- बार के आक्रमणों के कारण किला ध्वस्त होता रहा होगा। कालांतर में इसकी दीवारों पर मंदिरों में प्रयुक्त कई पत्थरों को लगा दिया गया होगा।

रायसेन दरवाजा

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किले के दक्षिण-पूर्व में स्थित दरवाजा "रायसेन दरवाजा' कहलाता है, क्योंकि इस दिशा में रायसेन नगर पड़ता है। दरवाजे में एक खिड़की लगी थी, जो दरवाजे के बंद होने की स्थिति में आवागमन में काम आते थे। द्वार के ऊपर पत्थर की बनी शहतीर विजयमंडल द्वार के शहतीर है।

गांधी द्वार

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किले का दूसरा द्वार पूर्वोत्तर में था। यह प्रमुख द्वार था तथा "गंधी दरवाजा' के नाम से जाना जाता था। यहाँ से जाने वाली सड़क सीधे राजमहलों में चली गई है, जिसके दोनों तरफ बड़े- बड़े साहुकारों की हवेलियाँ बनी थी। इसके आगे "रुपे की बजरिया' थी।

वैस द्वार

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किले से नदी की ओर जाने वाला क्षर वैस दरवाजा कहलाता था। रक्षात्मक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए द्वार के सभी फाटक एक सीध में नहीं बनाये गये हैं। इस दरवाजे से लेकर बेत्रवती नदी के महल घाट तक पक्की सड़क बनी हुई थी।

खिड़की द्वार

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"चौथा द्वार', जो अब अस्तित्व में नहीं है, पश्चिम भाग में बना था। इस द्वार को खिड़की दरवाजा कहा जाता है। इस द्वार के भीतर किले के शासक एहलकार अधिकारियों की बस्ती थी। पास में ही एक सुंदर चतुष्कोणी सरोवर बना हुआ है। पास में ही एक सुंदर चतुष्कोणी सरोवर बना हुआ है। यह चौपड़ा कहलाता है। आपातकालीन स्थितियों में भी यह सरोवर काम में लाया जाता था। मराठा शासनकाल में चौपड़े के निकट किले की दीवार से सटे हुए महल बने हुए थे। उनमें सूवात, तहसील- कचहरियाँ लगा करती थी, जो सन् १९३० के बाद किले के बाहर स्थानांतरित कर दी गई।