विल्सन के चौदह सिद्धान्त

प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी परास्त हो चुका था और फ्रांस विजेताओं की कतार में खड़ा था। युद्ध की समाप्ति पर युद्धविराम की संधियों पर हस्ताक्षर करने हेतु फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक शांति सम्मेलन आयोजन किया गया। इस शांति सम्मेलन में भाग लेने के लिए 32 राज्यों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति के अतिरिक्त 11 देशों के प्रधानमंत्री, 12 विदेश मंत्री एवं अन्य राज्यों के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एकत्रित हुए थे। चूँकि रूस में साम्यवादी क्रांति आंरभ हो गई थी और पश्चिमी राष्ट्र साम्यवाद के विरोधी थे अतः सोवियत रूस को इस सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया। इस सम्मेलन में पराजित राष्ट्रों - जर्मनी, आस्ट्रिया, तुर्की और बल्गारिया को भी स्थान नहीं दिया गया था। इस प्रकार इस सम्मेलन में 32 राज्यों के 70 प्रतिनिधि एकत्रित हुए। इस सम्मेलन में 5 पराजित राष्ट्रों के साथ पृथक-पृथक संधि की गयी जिसमें वर्साय की संधि प्रमुख है।

अमेरिका के राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने अपने 14 सूत्रों में से एक सूत्र में कहा था कि 'छोटे बड़े सभी राष्ट्रों को समान रूप से राजनीतिक स्वतंत्रता तथा प्रादेशित अखण्डता का आश्वासन देने के लिये राष्ट्र संघ की स्थापना की जाये।' इस प्रकार विल्सन महोदय ने विश्व शांति की स्थापना के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना पर बल दिया था। वस्तुतः विल्सन के 14 सूत्रों के आधार पर ही प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी ने आत्म समर्पण किया था। इसी आधार पर 10 जनवरी 1920 ई. को राष्ट्र संघ की विधिवत् स्थापना हुई।

चौदह बिन्दु

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पेरिस के इस सम्मेलन में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रेसीडेंट विल्सन एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधि थे। उसकी यह हार्दिक इचछा थी कि संसार में शांति की स्थापना की जाये और भविष्य में होने वाले युद्धों का अंत कर दिया जाये। इस अभिप्राय को दृष्टि में रखते हुये उन्होने 14 आदेशों में आत्म-निर्णय के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उसकी यह धारणा थी कि युद्ध की समाप्ति के लिये समस्त यूरोप का पुर्नसंगठन राष्ट्रीयता और आत्म-निर्णय के सिद्धांत पर किया जाना अत्यंत आवश्यक है। इसके अनुसार एक ही संस्कृति, भाषा, जाति और ऐतिहासिक परम्परा रखने वाली जातियों को अपने अलग-अलग राष्ट्र के निर्माण करने का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिये। उनने अपने विचार निम्न शब्दों में व्यक्त किये-

जनता की इच्छा का सम्मान करके ही विश्व में शांति की स्थापना संभव है और इसी कारण जनता के अधिकारों को मान्यता प्रदान करनी चाहिये।

विल्सन के चौदह बिन्दु इस प्रकार थे-

1. भविष्य में शांति संधियां प्रकट रूप से की जायें और गुप्त कूटनीति का अवलम्बन न किया जाये।

2. शांति तथा युद्ध दोनों के समय में समुद्र-तट सबके लिये स्वतंत्रता रहे और वे सबके लिये खुले रहें।

3. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के मार्ग में उपस्थित बाधायें हटा दी जायें।

4. शस्त्रास्त्रों में कमी हो।

5. अधीन लोगों के हित का समुचित ध्यान रखते हुये औपनिवेशिक दावों का निष्पक्ष निर्णय हो।

6. केन्द्रीय राष्ट्र रूस की भूमि छोड़ दें और रूस को विकास के लिये पूर्ण अवसर प्राप्त हो।

7. जर्मनी, बेल्जियम को खाली कर दे और अपनी पूर्व स्थिति में पहुंच जाये।

8. इसी प्रकार फ्रेंच भूमि भी खाली करके पूर्व स्थिति में पहुंचा दी जाये। अल्सास-लोरेन फ्रांस को वापिस मिल जाये।

9. राष्ट्रीयता के सिद्धांत के आधार पर इटली की सीमाओं का संशोधन किया जाये।

10. आस्ट्रिया के लोगों को स्वायत्त शासन का अधिकार प्राप्त हो।

11. सर्बिया, मोंटोनीग्रो तथा रूमानिया को केन्द्रीय राष्ट्र खाली करके अपनी पूर्व स्थिति में पहुंचा दें और सर्बिया को समुद्र तट पर निवास स्थान प्राप्त हो।

12. टर्की के साम्राज्य के विरूद्ध तुर्की प्रदेशों की संप्रभुता सुरक्षित रहे और शेष भागों को स्वायत्त शासन प्राप्त हो और डार्डेन्लीज तथा बास्फोरस के जलडमरूमध्यों में सभी राष्ट्र के जहाजों को यातायात की स्वतंत्रता हो।

13. स्वतंत्र पोलैंड का निर्माण हो और उसे समुद्र तक पहुंचने की सुविधा दी जाये।

14. छोटे बड़े सभी राष्ट्रों को समान रूप से राजनीतिक स्वतंत्रता तथा प्रादेशिक अखण्डता का आश्वासन देने के लिये एक राष्ट्र संघ की स्थापना की जाये।

यदि विजयी राष्ट्र राष्ट्रपति बिलसन के आदेशों के अनुसार जर्मनी तथा अन्य विजित राज्यों से संधि करने को तत्पर होते और अपने स्वार्थों की ओर ध्यान न देते तो यह सत्य है कि यूरोप के साथ-साथ समस्त विश्व में शांति की स्थापना हो जाती और भविष्य में होने वाले द्वितीय विश्वयुद्ध के भीषण और विनाशकारी परिणामों से मुक्ति पाने में सफलता प्राप्त करते। राष्ट्रों की स्वार्थ-सिद्धि के कारण विश्व में शांति और सद्भावना की स्थापना का इस विस्मृत योजना पर किये गये प्रयास सफल नहीं हो सके और विश्व को द्वितीय विश्वयुद्ध का सामना करना पड़ा।