गुलाग (रूसी: ГУЛаг) सोवियत संघ की उस सरकारी संस्था का नाम था जो सोवियत संघ में श्रम-कारावास चलाती थी। श्रम-कारावास में बंदियों से भारी मेहनत करवाई जाती थी और अक्सर उन्हें हज़ारों मील दूर साइबेरिया जैसे निर्जन क्षेत्रों में भेजा जाता था। श्रम-कारावास वही दंड प्रणाली है जिसे पुरानी भारतीय क़ानूनी भाषा में "क़ैद-ए-बामुशक्कत" और अनौपचारिक भाषा में "पत्थर तोड़ने की सज़ा" कहा जाता था। गुलाग में इन दूर-दराज़ इलाक़ों में अड्डे बने हुए थे जहाँ बंदी काम करते थे। यह क़ैदी छोटे-मोटे चोरों से लेकर सोवियत संघ की सरकार का विरोध करने वाले राजनैतिक बंदी हुआ करते थे और गुलाग प्रणाली का प्रयोग राजनैतिक विरोध कुचलने के लिए कई दशकों तक किया गया। कुछ लोगों को तो सरकार के ख़िलाफ़ चुटकुला सुनाने या काम से कभी अनुपस्थित होने के कारण से भी गुलाग भेज दिया जाता था।[1]

सोवियत संघ में गुलग श्रम-कारावासों के स्थान
१९३२ में श्वेत सागर से बाल्टिक सागर की नहर बनाते हुए एक गुलाग के कैदी

अनुमान किया गया है कि सोवियत संघ के दौर में इन गुलागों में कुल लगभग १.४ करोड़ लोगों को भेजा गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान खाना कम पड़ने से ५ लाख से अधिक कैदियों ने इन गुलागों में अपना दम तोड़ दिया।[2] माना जाता है कि १९२९-१९५३ के काल में गुलागों में १६ लाख लोगों की मृत्यु हुई।[3]

शब्द का इतिहास संपादित करें

गुलाग नाम रूसी के "ग्लावनोए उप्रावल्येनिये इस्प्रावित्येलनो-त्रुदोविह लाग्येर्येय इ कोलोनीय" (Гла́вное управле́ние исправи́тельно-трудовы́х лагере́й и коло́ний) का एक प्रकार का आदिवर्णी (ऐक्रोनिम) है। धीरे-धीरे सोवियत संघ की पूरी श्रम-कारावास प्रणाली को "गुलाग" कहा जाने लगा, हालांकि यह संसथान १९६० में बंद कर दिया गया और अन्य प्राधिकरणों ने इस की जगह ले ली। अलिक्सैन्डर सोल्झ़नीत्सिन (जीवनकाल: १९१८-२००८, १९७० में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता) नामक सोवियत लेखक को एक गुलाग में क़ैद रखा गया था और इन्होनें इसका वर्णन अपनी पुस्तक "गुलाग द्वीपसमूह" (रूसी: Архипелаг ГУЛАГ, आर्ख़िपेलाग गुलाग; अंग्रेज़ी: The Gulag Archipelago; द गुलाग आर्किपलेगो) में किया जो यूरोप और अमेरिका में १९७३ में छपी। इस में उन्होंने गुलाग कारावास अड्डों की तुलना समुद्र में बिखरे हुआ द्वीपों से की थी जहाँ कैदियों को निर्वासित किया जाता था। अंग्रेजो ने भारत में जैसे अंडमान द्वीप भेजकर कालापानी की सज़ा देने की शुरुवात की थी, उसी तरह लेखक ने इस उपन्यास में गुलाग नामक एक द्वीप की कल्पना की है। इस उपन्यास के प्रकाशन के बाद "गुलाग" शब्द विश्व भर में मशहूर हो गया।

ऐन ऐप्पलबौम, जिन्होनें गुलाग प्रणाली का गहरा अध्ययन किया, कहती हैं कि "बड़े मायनों में, 'गुलाग' का अर्थ सोवियत ज़ुल्मी व्यवस्था ही बन चुका है, वह तरीक़े जिन्हें कैदी कभी 'मांस पीसने की चक्की' बुलाया करते थे: गिरफ़्तारियाँ, कठोर पूछताछ, सर्द जानवर ले जाने वाली गाड़ियों में सफ़र, ज़बरदस्ती मेहनत करवाना, परिवारों का नाश, वर्षों का निर्वासन, छोटी उम्र में बेवजह की मौत आदि।"[4]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "What Were Their Crimes?". Gulaghistory.org. मूल से 20 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 अगस्त 2011.
  2. Zemskov, Gulag, Sociologičeskije issledovanija, 1991, No. 6, pp. 14-15.
  3. Steven Rosefielde. "Red Holocaust". Taylor & Francis, 2010. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780415777575.
  4. Anne Applebaum. "Gulag: a history". Random House Digital, Inc., 2004. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781400034093. मूल से 1 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 अगस्त 2011.