भगदत्त प्राग्ज्योतिष (असम) देश के अधिपति, नरकासुर का पुत्र और इंद्र का मित्र था। वह अर्जुन का बहुत बडा़ प्रशंसक था, लेकिन कृष्ण का कट्टर प्रतिद्वंदी।

भगवान कृष्ण नरकासुर के दुर्ग पर आक्रमण करते हुए

एक बार भौमासुर ने इंद्र के कवच और कुंडल छीन लिए। इसपर कृष्ण ने क्रुद्ध होकर भौमासुर के सात पुत्रों का वध कर डाला। भूमि ने कृष्ण से भगदत्त की रक्षा के लिए अभयदान माँगा। भौमासुर की मृत्यु के पश्चात् भगदत्त प्राग्ज्योतिष के अधिपति बने। भगदत्त ने अर्जुन, भीम और कर्ण के साथ युद्ध किया। हस्ति युद्ध में भगदत्त अत्यंत कुशल थे। कृतज्ञ और वज्रदत्त नाम के इनके दो पुत्र थे, इनमें कृतज्ञ की मृत्यु नकुल के हाथ से हुई। वज्रदत्त राजा होने पर अर्जुन से पराजित हुआ।

कुरुक्षेत्र के युद्ध में वह कौरव सेना की ओर से लडा़ और अपने विशालकाय हाथी के साथ उसने दर्शन सहित बहुत से योद्धओं का वध किया। अपने 'सौप्तिक' नामक हाथी पर उसने भीम को भी परास्त किया।

भगदत्त के पास शक्ति अस्त्र और वैश्नव अस्त्र जैसे दिव्यास्त्र थे। उसके पुत्र क वध नकुल ने किया। १२ वें दिन के युद्ध में उसके वैष्णव अस्त्र को श्रीकृष्ण द्वारा विफ़ल किया गया और फिर अर्जुन ने उसका वध किया।

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