"आल्ह-खण्ड": अवतरणों में अंतर

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[[File:MAHOBA, U.P. - allha.preview.jpg|thumb|आल्हखण्ड के नायकों में से एक वीरवर '''ऊदल''']]
 
'''आल्ह-खण्ड''' लोक कवि [[जगनिक]] द्वारा लिखित एक वीर रस प्रधान गाथागीत है जिसमें [[आल्हा]] और [[ऊदल]] की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=ZOPUZo4fNLAC&pg=PA19&dq=banafar+rajput&hl=en&sa=X&sqi=2&pjf=1&ved=2ahUKEwiDupq7hJjsAhU1xzgGHe1xCu8Q6AEwAXoECAIQAg#v=onepage&q=banafar%20rajput&f=false|title=Alha Khand|last=Gupta|first=Asha|date=1999|publisher=Vani Prakashan.|language=en}}</ref> ये दोनों वीर [[बनाफर]] राजपूत वंश से संबंधित बताये जाते हैं। 12 वीं शताब्दी के दो बनाफर नायकों, आल्हा और उदल, महोबा के चक्रवर्ती सम्राट परमर्दीदेव (परमाल) (1165-1202 सीई) के लिए काम करने वाले सेनापतियों के बहादुर कृत्यों का वर्णन करने वाले कई गाथागीत शामिल हैं, जो दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान (1149-1192 ईस्वी) के खिलाफ थे।
 
पं० ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ '''आल्हखण्ड''' की भूमिका में आल्हा को [[युधिष्ठिर]] और ऊदल को [[भीम]] का साक्षात [[अवतार]] बताते हुए लिखा है -