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[[श्रेणी:अंतरराष्ट्रीय सगठन]] In the globlized world it can play a major role in world economy .
 
 
महात्मा गांधी के देश से दुनिया सांस्कृतिक सद्भाव सीखेंगी
डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
(गांधी है तो भारत है,किताब के लेखक)
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान महात्मा गांधी की याद में बनाएं गए स्मारकों पर अक्सर जाते है और बापू के मूल्यों की दुनिया को याद दिलाते है। अक्टूबर 2021 में इटली में जी-20 के शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का न्यू रोम में स्थित पियाजा गांधी नामक स्थान पर कार्यक्रम हो या वाशिंगटन,ब्रिस्बेन,पुर्तगाल,मॉरीशस,जर्मनी के हनोवर,तुर्कमेनिस्तान के अश्गाबात,किर्गिस्तान के बिश्केक,ब्रिटेन की संसद के बाहर बापू की प्रतिमा,केन्या,दक्षिण कोरिया,दक्षिण अफ्रीका का जोहांसबर्ग शहर जैसे कई देशों के प्रमुख स्थानों में विभिन्न आयोजनों में शामिल हुए है। पिछले कुछ वर्षों में कई देशों की यात्राओं के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बापू की प्रतिमा का अनावरण किया और हमेशा गांधीवादी मूल्यों को हमारे जीवन का अभिन्न अंग बनाने पर जोर दिया है। उन्हें अक्सर अपने भाषणों में महात्मा गांधी की शिक्षाओं का हवाला देते हुए सुना जाता है। भारत में और भारत के बाहर भी प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में वसुधैव कुटुम्बकम् पर आधारित भारतीय जीवन शैली,विचार और बापू के मूल्यों की झलक दिखाई देती है।
 
 
हाल ही में जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमन्त्री मोदी ने बुद्ध तथा महात्मा गांधी का उल्लेख किया और प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे भारत के सभ्यतागत लोकाचार से प्रेरणा लें जो विभाजित करने वाले मुद्दों की बजाय एकजुट करने वाले मुद्दों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है। भारत ने जी-20 की अध्यक्षता शुरू करने के मौके पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया से कहा कि भारत एक पृथ्वी,एक परिवार,एक भविष्य की भावना पर आधारित एकता को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा।
 
 
दरअसल भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अमृत वाक्य वसुधैव कुटुम्बकम है,यहीं जी 20 का ब्रह्म वाक्य बनाया गया है और महात्मा गांधी ने इसी से प्रेरित होकर सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका में सर्वधर्म प्रार्थना की शुरुआत की थी। विभिन्नताओं पर आधारित संघर्षों को रोकने के लिए साझा संस्कृति को बढ़ावा मिलना चाहिए और यह महसूस किया जाता है कि वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से प्रेरित होकर विश्व का कल्याण किया जा सकता है। जी-20 ऐसे देशों का समूह है जिनका आर्थिक सामर्थ्य विश्व की 85 फीसदी जीडीपी का प्रतिनिधित्व करता है तथा इस संगठन में विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या समाहित है। आजादी के अमृतकाल में भारत के समक्ष यह अवसर आया है कि वह दुनिया की अधिकतम आबादी के सामने भारत के वह महान मानवीय मूल्य रख सके जिससे आतंकवाद,हिंसा,जलवायु परिवर्तन,खाद्य संकट की विभीषिका और सांस्कृतिक टकराव से उत्पन्न चुनौतियों को खत्म किया जा सके।
 
यह देखने में आया है कि दुनिया के कई भागों में सांस्कृतिक टकराव बढ़ा है और इससे आसन्न मानवीय संकट उठ खड़ा हुआ है। एशिया,अफ्रीका और यूरोप के कई देशों में आंतरिक और बाह्य रूप से सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान हिंसक संघर्षों का मुख्य कारण बनती जा रही है। दक्षिण एशिया के अपेक्षाकृत शांत देश श्रीलंका में ईसाईयों को निशाना बना कर किए खौफनाक आतंकी हमलों से इस बात को बल मिला है कि आधुनिक समय में सबसे बड़ी चुनौती वह कट्टरता है जो सभ्यताओं को एक दूसरे के सामने खूनी संघर्ष के लिए खड़ा कर रही है। कथित इस्लामिक चरमपंथियों ने ईसाईयों के धार्मिक त्योहार ईस्टर के धार्मिक आयोजन को ठीक उसी तरह निशाना बनाया जैसा हजारों किलोमीटर दूर न्यूजीलैंड में इस घटना के पहले मुस्लिम धर्मावलम्बियों को बनाया गया था। मुस्लिम धर्मावलम्बियों को जुमे के दिन मस्जिद में निशाना बनाया गया था वहीं श्रीलंका में ईस्टर संडे के दौरान बड़ी संख्या में चर्चों में लोग जुटे थे। इसी दौरान राजधानी कोलंबो के तीन चर्चों को निशाना बनाया गया। न्यूजीलैंड और श्रीलंका का भौगोलिक,आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों में जमीन आसमान का अंतर है लेकिन इस सबके बावजूद आतंकी हमलें का प्रमुख सभ्यताओं का संघर्ष ही सामने आया है।
 
इस दौर में वैश्विक समुदाय सुरक्षा को लेकर अस्थिर और भयभीत है। शांति की अनिश्चितता को लेकर संयुक्तराष्ट्र भी लाचार नजर आता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया को युद्द के खतरे से लगातार बचाने में कामयाब संयुक्तराष्ट्र आतंकवाद का सामना करने में बूरी तरह लाचार और नाकाम नजर आ रहा है और उसकी यह बेबसी दुनिया को सभ्यताओं की नई और खतरनाक लड़ाई की और धकेल रही है। न्यूजीलैंड यूरोप के खुले समाज का हिस्सा है लेकिन वहां पर मुस्लिमों के प्रति जो घृणा हत्यारे ने दिखाई थी और उसके बाद मस्जिद में हमले में लोगों के मारे जाने के बाद दुनिया के कई देशों के दक्षिणपंथी इसे जायज़ ठहराने की कोशिश कर रहे थे। वह बिल्कुल वैसा ही था जब अमेरिका पर हमलें को लेकर कई मुस्लिम देशों में खुशियाँ मनाई गई थी और पटाखे फोड़े गए थे। इन घटनाओं में यह साफ प्रतीत हो रहा है कि दुनिया में सभ्यताओं की आपसी प्रतिद्वंदिता पागलपन के रूप में बढती जा रही है और समाज का पढ़ा लिखा तबका भी धर्मान्धता के जाल में बूरी तरह उलझकर आतंकी व्यवहार की ओर बढ़ रहा है।
 
आतंकवाद का अपना एक मनोविज्ञान है। एक विशेष प्रकार की मनोवृत्ति वाला व्यक्ति ही हिंसक हो सकता है,आतंकवादी बन सकता है और हिंसा को अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए सही भी ठहरा सकता है। आधुनिक समाज में सार्वभौमिकता के सारे तर्को पर धर्मान्धता हावी होती दिखाई पड़ रही है और इसे रोकने के वैश्विक स्तर पर कोई विशेष प्रयास भी नहीं किए जा रहे है। इस दौर में धर्मवाद ने राष्ट्रवाद को भी पीछे छोड़ दिया है। वैश्विक घटनाओं का असर किसी भी देश के किसी भी समुदाय पर पड़ सकता है और इससे उपजी नफरत में अपने ही देश के नागरिकों को निशाना बनाने से गुरेज नहीं किया जाता। यह बेहद खतरनाक है और इससे किसी राष्ट्र की मूल संस्कृति और धर्मनिरपेक्षता की भावना के खत्म होने का संकट बढ़ता जा रहा है।
सभ्यताओं की इस लड़ाई को बढ़ावा देने में इंटरनेट का प्रमुख योगदान सामने आ रहा है। डिजिटल दुनिया के आतंकी गठजोड़ से निकले मजहबी ब्रेनवास की एक कड़ी है,जिनके बूते आईएस लोन वुल्फ़ जैसे आतंकी हमलों को अंजाम देता रहा है। वास्तव में इस दौर में सुरक्षा की सबसे बड़ी चुनौती डिजिटल दुनिया से उभरा आतंकवाद ही है जो इंटरनेट के जरिए बेलगाम होकर जानलेवा भी हो जाता है। धर्म के आधार पर दिग्भ्रमित कर आईएस और अल कायदा जैसे आतंकी संगठन ने युवाओं को खतरनाक लक्ष्यों की और मोड़ देने में महारत हासिल कर ली है।
 
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सामूहिक सुरक्षा की अवधारणा को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। विभिन्न देश अपनी सुरक्षा के लिए दूसरे समान सोच वाले राष्ट्रों के साथ मिलकर काम करते है। संकट की घड़ी में,युद्द के समय आदि एक दूसरे के साथ होते है। संयुक्तराष्ट्र,नाटो,सिएटो या वारसा पैक्ट या आर्थिक आधार पर जो देश साथ साथ आये है उनके आर्थिक,सामाजिक या राजनीतिक हित रहे है। लेकिन इसमें से कोई भी संगठन वैश्विक स्तर पर सार्वभौमिकता या सांस्कृतिक समन्वय स्थापित करने में सफल नहीं हो सका है और आज यह सबसे बड़ी जरूरत बन गया है। एक बड़े विद्वान इनिस क्लोड ने कहा था कि वे आज भी सामूहिक सुरक्षा के बारे में आशावादी है और उन्हें लगता है कि एक न एक दिन सभी तलवारों को पिघलाकर खेती के औजारों में बदला जा सकेगा। मानव सभ्यता की सबसे बड़ी जरूरत भी यही है।
 
संकट यही है कि लोगो को यह समझना होगा कि दुनिया का भविष्य इससे तय होगा की हममे क्या समानताये है,उन बातों से नहीं जो हमे अलग करती है या संघर्ष की और ले जाती है। महात्मा गांधी ने दुनिया में विभिन्नता के बीच समानता स्थापित करने के जीवन भर असंख्य सन्देश दिए है। जी 20 में भारत का वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश भारतीय आचार,विचार,आचरण और व्यवहार में भी प्रतीत होता है। कुछ साल पहले भारत की यात्रा पर इजराइल के प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू उस वक्ते भावुक हो गए,जब दिल्लीत में बसे आठ आठ यहूदी परिवार उनसे मिलने पहुंचे। इन परिवारों ने उनसे साफ कहा कि कि उनके दिल में इजरायल जरूर है,लेकिन शरीर में भारत का खून दौड़ रहा है। उन्हें इस मिट्टी से प्यार है और वह यहीं दम तोड़ेंगे। दुनिया भर में यहूदियों पर हिंसा की घटनाओं के बीच भारत में यहूदी करीब ढाई हजार साल से शांतिपूर्वक रह रहे है। भारत में यहूदियों के कई धार्मिक स्थल और ऐतिहासिक इमारतें है। दिल्ली मं यहूदियों का प्रार्थना स्थल है,जहां हर शनिवार पवित्र ग्रंथ तोरा का पाठ होता है। इस दिन यहूदी समुदाय जुटता है। इस मंदिर में इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री शिमोन पेरेस भी आ चुके हैं तथा इजरायल के कई राजनयिक भी आते रहे हैं। मंदिर के पीछे ही पुस्तकालय भी है। इसमें यहूदी व इजरायल के अलावा भारत के इतिहास और धर्म पर प्रकाश डालती काफी पुस्तकें हैं। खास बात कि इसमें हिब्रू भाषा की कक्षा भी चलती है,जिसे सीखने में भारतीय भी रुचि दिखाते हैं। यहां के यहूदी परिवार व्यापार और व्यवसाय करते है। यह भी दिलचस्प है कि इस स्थान पर जनरल जैकब की कब्र भी है। जनरल जैकब ने 1971 में भारतीय सेना का नेतृत्व किया था और बांग्लादेश के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई थी। जनरल जैकब की बहादुरी को इजराइल में भी खूब याद किया जाता है और उनकी वीरता को वहां किताबों में पढ़ाया जाता है। जनरल जैकब को इजराइल सरकार ने वहां रहने के लिए आमंत्रित किया था लेकिन उन्होंने भारत से असीम प्यार का इजहार करते हुए यहीं प्राण त्यागें।
 
जी-20 में भारत के साथ अर्जेंटीना,ऑस्ट्रेलिया,ब्राजील,कनाडा,चीन,यूरोपीय संघ,फ्रांस,जर्मनी,इंडोनेशिया,इटली,जापान,मैक्सिको,रूस,सऊदी अरब,दक्षिण अफ्रीका,दक्षिण कोरिया,तुर्की,यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बड़े देश है। कई देश विकसित है लेकिन भारत जैसी विविधता और लोकतंत्र की कोई बराबरी नहीं हो सकती। इस वैश्विक संगठन के अधिकांश देश एक अवधि में आर्थिक रूप से विकसित हुए है,उनके पास खनिज संपदा है,उच्च जीवन स्तर है और वे बहुत सारी आर्थिक गतिविधियों में लगे हुए है। इन देशों को भारत की अनूठी एकता चमत्कृत करती रही है।
 
भारत अनादि काल से संस्कृति,आस्था,आस्तिकता और धर्म का महान उपदेशक देश है। भारत की चार दिशाओं में हिन्दुओ के प्रमुख तीर्थ स्थल है तो इस्लाम धर्म के प्रसिद्ध दार्शनिक स्थल भी कई स्थानों पर है। दिल्ली की जामा मस्जिद, श्रीनगर की हजरतबल मस्जिद, मुम्बई की हाजी अली दरगाह या अजमेर की ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर दुनिया भर से मुस्लिम तीर्थयात्री बड़ी संख्या में आते है। सिख धर्म के लिए तो सम्पूर्ण भारत भूमि पवित्र मानी जाती है। उत्तराखंड का श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा,नांदेड का श्री हजूर साहिब हो या अमृतसर में स्थित स्वर्ण मन्दिर सिख आस्था के यह बड़े केंद्र है। भारत में प्राचीन गिरिजाघरों की भी कमी नहीं है और उनकी वैभवता और विशालता भारत के गौरव को बढ़ाती है। दिल्ली,गोवा,शिमला,इलाहाबाद जैसे प्रमुख स्थानों पर यह चर्च मौजूद है और हजारों पर्यटक इन्हें देखने रोज जाते है। इसके अतिरिक्त बौद्ध,जैन,पारसी जैसे धर्म भारत में ही फले फूले है। बौद्ध जीवन का प्रभाव जहां करोड़ों भारतीयों पर दिखाई पड़ता है वहीं जैन और पारसी भारत की व्यापरिक गतिविधियों के केंद्र में है। भारत के संविधान में सबको बराबरी का अधिकार है और राष्ट्र सभी को आगे बढ़ने का व्यापक अवसर प्रदान करता है।
 
 
भारत में बहुसंख्यक हिन्दुओं के साथ,करीब 19 करोड़ मुसलमान,3 करोड ईसाई और करीब सवा दो करोड़ सिख रहते है। यह विविधता की व्यापकता को बताता है। दुनियाभर से अलग अलग धर्मों को मानने वाले धार्मिक और पर्यटक के रूप में भारत आते है,रहते है और यहां की साझा विरासत को देखकर चमत्कृत हो जाते है। इस साझा विरासत में शांति है,परस्पर सद्भाव है,आपसी सहयोग और समन्वय है,कृषि की प्रधानता है,पर्यावरण संरक्षण की जीवन मूल्यों वाली वह भावना है जहां वृक्षों और नदियों को पूजा जाता है।
 
भारत के करोड़ों लोगों के जीवन में वसुधैव कुटुम्बकम् की यही भावना जी-20 के देशों के विशाल जनसमूह के साथ पूरी दुनिया को यह संदेश देती है कि गांधी की इस भूमि से मानवीयता को संरक्षित करने वाले अनमोल गुणों को अपनाइए, पूरी दुनिया में शांति,सुख,संपन्नता और खुशहाली आएगी। भारत के अलग अलग क्षेत्रों में जी-20 के विभिन्न आयोजनों से दुनियाभर के लोग यह भी देख पाएंगे कि टकराव से नहीं भारतीय जनमानस द्वारा संकल्पित वसुधैव कुटुम्बकम् से मानव का कल्याण और विश्वशांति कायम हो सकती है। महात्मा गांधी की यह जन्म और कर्मभूमि मानव मानव में भेद की संभावनाओं को खत्म कर मानव जाति को एकाकार करती है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जी-20" से प्राप्त