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{{Infobox deity
| image = Shri Devnarayan Bhagwan the imperialGurjar.jpg
| name = देवनारायण चौहान([खींची राजपूत]
| affiliation = देव
| weapon = तलवार, भाला
| father = महाराजा सवाई भोज गुर्जरचौहान राजपूत
| mother = माता गुर्जरी साडू
| consort = पीपल दे
| region = राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा
| festivals = '''भादवि छठ'''(घोड़े लीलाधर का अवतार) , '''माहि सातम'''
| festivals = देवनारायण जयन्ती, मकर संक्रांति, देव एकादशी
}}
'''देवनारायण''' जी [[राजस्थान]] के एक [[लोक देवता]],<ref>{{cite book|author=Bhagavatīlāla Rājapurohita|title=Mālavī, saṃskr̥ti aura sāhitya|url=https://books.google.com/books?id=FlduAAAAMAAJ|yeartitle=2004Mālavī, saṃskr̥ti aura sāhitya|author=Bhagavatīlāla Rājapurohita|publisher=ĀDivisionāsī Loka Kalā Akādamī, Madhyapradeśa Saṃskr̥ti Parishad |quoteyear=2004|quote=देवनारायण गुर्जरराजपूत जाति के थे।चौहान गुर्जरोंगोत्र के थे । राजपूतों के प्रभाव से देवनारायणजी की मान्यता अन्य जातियों में प्रचलित हुई।}}</ref><ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=jJNwHFZyl6wC&pg=PA163&dq=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjDhqOp6qTuAhWDgUsFHRJ4DxkQ6AEwAXoECAEQAg#v=onepage&q&f=false|title=Nectar Gaze and Poison Breath: An Analysis and Translation of the Rajasthani Oral Narrative of Devn-ar-aya.n|last=Malik|first=Aditya|date=2005-02-24|publisher=Oxford University Press|isbn=978-0-19-803420-9|language=en}}</ref><ref>{{cite book |last1=Jain |first1=Jyotindra |title=Picture Showmen: Insights Into the Narrative Tradition in Indian Art |date=1998 |publisher=Marg Publications |isbn=978-81-85026-39-8 |url=https://www.google.co.in/books/edition/Picture_Showmen/nxLaAAAAMAAJ?hl=en&gbpv=1&bsq=devnarayan+gurjar&dq=devnarayan+gurjar&printsec=frontcover |accessdate=20 जनवरी 2021 |language=en}}</ref> शासक और महान योद्धा थे।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=jJNwHFZyl6wC&pg=PA163&dq=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjDhqOp6qTuAhWDgUsFHRJ4DxkQ6AEwAXoECAEQAg#v=onepage&q=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%20%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&f=false|title=Nectar Gaze and Poison Breath: An Analysis and Translation of the Rajasthani Oral Narrative of Devn-ar-aya.n|last=Malik|first=Aditya|date=2005-02-24|publisher=Oxford University Press|isbn=978-0-19-803420-9|language=en}}</ref><ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=3TluAAAAMAAJ&q=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&dq=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%AA%E0%A5%82%E0%A4%A4&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjDhqOp6qTuAhWDgUsFHRJ4DxkQ6AEwAHoECAIQAg|title=मेवाड़ का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास|date=2006|publisher=प्रताप शोध प्रतिष्ठान, भूपाल नोबल्स संस्थाल, विद्या प्रचारिणी सभा|language=hi}}</ref><ref>http://www.theindianportrait.com/artwork/maharaja-bisal-dev-warrior-king-of-ajmer/</ref> इनकी पूजा मुख्यतः [[राजस्थान]], [[हरियाणा]] तथा [[मध्यप्रदेश]] में होती है। इनका भव्य मंदिर [[आसीन्द]] में है। [[राजस्थान]], में 27 जनवरी 2023 को [[अशोक गहलोत]] ने देव नारायण जयंती को राजकीय अवकाश घोषित किया। <ref>https://m.timesofindia.com/city/jaipur/holiday-declared-for-devnarayan-jayanti-in-rajasthan/articleshow/97388224.cms</ref>
 
== अवतार ==
उनका जन्म एक लोकप्रिय मंडलजी गुर्जरखींची चौहान (राजपूत) के परिवार में हुआ था। जिन्होंने मेवाड़ में भीलवाड़ा जिले के पास प्रसिद्ध मंडल झील की स्थापना की थी। मंडलजी, अजमेर के राजा बिसाल देव गुर्जरखींची चौहान (विशाल देव चौहान राजपूत) केे भाई थे, जिन्होंने ने संभवत: 8 वीं शताब्दी में अजमेर पर शासन किया था और साथ ही अरब घुसपैठ का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और [[तोमर वंश]] के शासकों को दिल्ली पर नियंत्रण पाने में मदद की।<ref name=exploration>{{Cite book|url=https://books.google.com/books?id=UyI6QWfi7oMC&pg=PA103|title= Shree Devnarayan warrior of chauhan vansh (Page 94-95 )|publisher=oxford university press}}</ref>
<ref>[https://books.google.co.in/books?id=FlduAAAAMAAJ&q=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B0&dq=%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3+%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%B0&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwj6kZ3o5MXtAhWijuYKHT33DH4Q6AEwBXoECAYQAg श्री देवनारायण जी Page.282]</ref><ref>http://www.theindianportrait.com/artwork/maharaja-bisal-dev-warrior-king-of-ajmer/</ref>श्री देवनारायण जी का मूल स्थान वर्तमान में [[अजमेर]] के निकट नाग पहाड़ था।<ref>https://www.indianculture.gov.in/node/2686421 |title=Devnarayan belongs to Gujjar community}}</ref> राजस्थान में प्रचलित लोक कथाओं के माध्यम से शौर्य पुरूष देवनारायण के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से जानकारी मिलती है। देवनारायण की फड़ के अनुसार माण्डलजी के हरिरामजी गुर्जरराजपूत, हरिरामजी के बाघजी और बाघजी के 24 पुत्र हुए जो बगड़ावत कहलाये ।<ref>{{cite book|title=The Encyclopaedia Of Indian Literature (Volume One (A To Devo), Volume 1|author=Amaresh Datta|publisher=Sahitya Akademi|year=2006|id={{ISBN|8126018038}}, {{ISBN|978-81-260-1803-1}}|page=322|url=https://books.google.com/books?id=ObFCT5_taSgC&pg=PA322&dq|quote=Being the son of Baghji Bagrao, they were collectively known as bagaravat. }}</ref> इन्हीं में से बड़े भाई राजा सवाई भोज गुर्जरखींची औरचौहान राजपूत (माता साडू गुर्जरी (सेढू ) खटाणाखताणा के पुत्र के रूप में वि . सं . 968 ( 911 ई.) में माघ शुक्ला सप्तमी को आलौकिक पुरूष देवनारायण का जन्म मालासेरी में हुआ ।
 
== बगडावत भारत ==
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== परिचय ==
देवनारायण पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये । वे शासक भी रहे । उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की।की । चमत्कारों के आधार पर धीरे-धीरे वे देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे। देवनारायण को [[विष्णु]] के अवतार के रूप में गुर्जरराजपूत समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की जाती है।<ref name="Rājapurohita2004">{{cite book|author=Bhagavatīlāla Rājapurohita|title=Mālavī, saṃskr̥ti aura sāhitya|url=https://books.google.com/books?id=FlduAAAAMAAJ|year=2004|publisher=ĀDivisionāsī Loka Kalā Akādamī, Madhyapradeśa Saṃskr̥ti Parishad |quote=|quote=देवनारायणजी देवनारायण गुर्जर जाति के थे।थे । गुर्जरों के प्रभाव से देवनारायणजी की मान्यता अन्य जातियों में प्रचलित हुई।}}</ref> उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया । देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है ।
 
देवनारायणजी का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 कि . मी . दूरी पर स्थित देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा । भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान हुआ । देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन छोड़कर न जाने के आग्रह पर बैकुण्ठ जाने पूर्व पीपलदे से एक पुत्र बीला व पुत्री बीली उत्पन्न हुई । उनका पुत्र ही उनका प्रथम पुजारी हुआ ।
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कृष्ण की तरह देवनारायण भी [[गाय|गायों]] के रक्षक थे । उन्होंने बगड़ावतों की पांच गायें खोजी , जिनमें सामान्य गायों से अलग विशिष्ट लक्षण थे । देवनारायण प्रातःकाल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे । यह गाय बगड़ावतों के गुरू रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी । देवनारायण के पास 98000 पशु धन था । जब देवनारायण की गायें राण भिणाय का राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण गायों की रक्षार्थ राणा से युद्ध करते हैं और गायों को छुड़ाकर लाते थे । देवनारायण की सेना में [[ग्वाला|ग्वाले]] अधिक थे । 1444 ग्वालों का होना बताया गया है , जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था । देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का संदेश दिया ।
 
इन्होंने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया । आतंकवाद से संघर्ष कर सच्चाई की रक्षा की एवं शान्ति स्थापित की । हर असहाय की सहायता की । राजस्थान में जगह-जगह इनके अनुयायियों ने देवालय अलग-अलग स्थानों पर बनवाये हैं जिनको देवरा भी कहा जाता है । ये देवरे अजमेर, चित्तौड़ , भीलवाड़ा , व टोंक में काफी संख्या में है । देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले में आसीन्द कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर महाराजा सवाई भोज में है । देवनारायण का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गाँव में वनस्थली से 9 कि . मी . दूरी पर है । सम्पूर्ण भारत में गुर्जरराजपूत समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है। देवनारायण की पूजा [[भोपा]]ओं द्वारा की जाती है । ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर लपेटे हुये कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा के माध्यम से देवनारायण की गाथा गा कर सुनाते हैं ।
 
==देवनारायण की फड़==
पंक्ति 37:
* ११वीं कला का असवार
* लीला घोडा का असवार
* विष्णु रा अवतार
* त्रिलोकी का नाथ
* देवजी
* देव महाराज
पंक्ति 44:
* उधा जी
*जय देवनारायण
* ऊदल
* राजा सवाई भोज गुर्जर का लाल
== विशेषता==
देवनारायण जी के मंदिरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर ईटों की पूजा की जाती है । ये ईट पुष्कर के निकट नाग पहाड़ से निकाली जाती है ।
 
== मान्यता ==
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== सन्दर्भ ==
{{Reflist}}
 
[[श्रेणी:राजस्थान के लोकदेवता]]
[[श्रेणी:राजस्थान की संस्कृति]]