"महात्मा गांधी": अवतरणों में अंतर
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सबसे पहले गान्धी जी ने प्रवासी वकील के रूप में [[दक्षिण अफ़्रीका|दक्षिण अफ्रीका]] में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना आरम्भ किया। [[१९१५|1915]] में उनकी भारत वापसी हुई।<ref>{{Cite web|url=https://theprint.in/opinion/ramachandra-guha-is-wrong-a-middle-aged-gandhi-was-racist-and-no-mahatma/168222/|title=Ramachandra Guha is wrong. Gandhi went from a racist young man to a racist middle-aged man|access-date=24 दिसंबर 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20181225031058/https://theprint.in/opinion/ramachandra-guha-is-wrong-a-middle-aged-gandhi-was-racist-and-no-mahatma/168222/|archive-date=25 दिसंबर 2018|url-status=dead}}</ref> उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, श्रमिकों और नगरीय श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। [[१९२१|1921]] में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में दरिद्रता से मुक्ति दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये [[दलित|अस्पृश्यता]] के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला [[स्वराज]] की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये लवण कर के विरोध में [[१९३०|1930]] में [[नमक सत्याग्रह]] और इसके बाद [[१९४२|1942]] में अंग्रेजो [[भारत छोड़ो आन्दोलन]] से विशेष विख्याति प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें कारागृह में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में [[अहिंसा]] और [[सत्य]] का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने [[साबरमती आश्रम]] में अपना जीवन बिताया और परम्परागत भारतीय पोशाक [[धोती]] व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं [[चर्खा|चरखे]] पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा [[शाकाहार|शाकाहारी]] भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे [[उपवास]] रखे। 12 फरवरी वर्ष 1948 में [[महात्मा गांधी]] के अस्थि कलश जिन 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, [[त्रिमोहिनी संगम]] भी उनमें से एक है |
== प्रारम्भिक जीवन ==
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[[30 जनवरी|३० जनवरी]], [[1948|१९४८]], गांधी की उस समय नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई जब वे [[नई दिल्ली]] के ''बिड़ला भवन'' (बिरला हाउस के मैदान में रात चहलकदमी कर रहे थे। गांधी का हत्यारा [[नाथूराम गोडसे|नाथूराम गौड़से]] हिन्दू राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी [[हिंदू महासभा|हिंदु महासभा]] के साथ संबंध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान<ref>आरगांधी, ''पटेल : एक जीवन'', पी.४७२ .</ref> को भुगतान करने के मुद्दे को लेकर भारत को कमजोर बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था। गोड़से और उसके उनके सह षड्यंत्रकारी [[नारायण आप्टे]] को बाद में केस चलाकर सजा दी गई तथा [[15 नवंबर|१५ नवंबर]] [[1949|१९४९]] को इन्हें फांसी दे दी गई। राज घाट, [[नई दिल्ली]], में गांधी जी के स्मारक पर "[[देवनागरी]] में '' हे राम " लिखा हुआ है। ऐसा व्यापक तौर पर माना जाता है कि जब गांधी जी को गोली मारी गई तब उनके मुख से निकलने वाले ये अंतिम शब्द थे। हालांकि इस कथन पर विवाद उठ खड़े हुए हैं।<ref>विनय लाल .[http://www.sscnet.ucla.edu/southasia/History/Gandhi/HeRam_gandhi.html ' हे राम ' : गांधी के अंतिम शब्दों की राजनीति] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20040604013327/http://www.sscnet.ucla.edu/southasia/History/Gandhi/HeRam_gandhi.html |date=4 जून 2004 }} ह्यूमेन ८, संख्या. १ (जनवरी २००१): पीपी३४ - ३८ .</ref>[[जवाहरलाल नेहरू]] ने रेडियो के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित किया :
गांधी जी की राख को एक अस्थि-रख दिया गया और उनकी सेवाओं की याद दिलाने के लिए संपूर्ण भारत में ले जाया गया। इनमें से अधिकांश को इलाहाबाद में संगम पर [[12 फरवरी|१२ फरवरी]] [[1948|१९४८]] को जल में विसर्जित कर दिया गया किंतु कुछ को अलग<ref name="Guardian-2008-ashes">[http://www.guardian.co.uk/world/2008/jan/16/india.international "गांधी जी की राख को समुद्र में आराम करने के लिए रखा गया"] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20081207011900/http://www.guardian.co.uk/world/2008/jan/16/india.international |date=7 दिसंबर 2008 }} [[The Guardian]] ([[:en:The Guardian|The Guardian]]), [[16 जनवरी|१६ जनवरी]] [[२००८]]</ref> पवित्र रूप में रख दिया गया। १९९७ में, तुषार गाँधी ने बैंक में नपाए गए एक अस्थि-कलश की कुछ सामग्री को अदालत के माध्यम से, इलाहाबाद में संगम<ref name="Guardian-2008-ashes" /><ref>[http://www.highbeam.com/doc/1G1-67892813.html गांधी जी की राख को
{{cite news | last =Ferrell | first =David | title =A Little Serenity in a City of Madness | newspaper = Los Angeles Times | pages =B 2 | date = 2001-09-27}}
--></ref> रखा हुआ है। इस परिवार को पता है कि इस पवित्र राख का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दुरूपयोग किया जा सकता है लेकिन उन्हें यहां से हटाना नहीं चाहती हैं क्योंकि इससे मन्दिरों .<ref name="Guardian-2008-ashes"/> को तोड़ने का खतरा पैदा हो सकता है।
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गाँधी की इन वक्तव्यों के कारण काफ़ी आलोचना हुयी जिनका जवाब उन्होंने "यहूदियों पर प्रश्न" लेख में दिया साथ में उनके मित्रों ने यहूदियों को किए गए मेरे अपील की आलोचना में समाचार पत्र कि दो कर्तने भेजीं दो आलोचनाएँ यह संकेत करती हैं कि मैंने जो यहूदियों के खिलाफ हुए अन्याय का उपाय बताया, वह बिल्कुल नया नहीं है।...मेरा केवल यह निवेदन हैं कि अगर हृदय से हिंसा को त्याग दे तो निष्कर्षतः वह अभ्यास से एक शक्ति सृजित करेगा जो कि बड़े त्याग कि वजह से है।<ref name="Homer-322">जैक होमर.'' गाँधी के पाठक'', पी ३२२</ref> उन्होंने आलोचनाओं का उत्तर "यहूदी मित्रो को जवाब"<ref name="Homer-323-324">जैक होमर .''गाँधी के पाठक'', पी पी ३२३-४</ref> और "यहूदी और फिलिस्तीन"<ref name="Homer-324-326">जैक होमर '', गाँधी के पाठक '', पी पी ३२४-६</ref> में दिया यह जाहिर करते हुए कि "मैंने हृदय से हिंसा के त्याग के लिए कहा जिससे निष्कर्षतः अभ्यास से एक शक्ति सृजित करेगा जो कि बड़े त्याग कि वजह से है।<ref name="Homer-322" />
यहूदियों की [[यहूदी अग्निकांड|आसन्न आहुति]] को लेकर गाँधी के बयान ने कई टीकाकारों की आलोचना को आकर्षित किया।<ref>डेविड लुईस स्केफर [http://www.nationalreview.com/comment/comment-schaefer042803.asp गाँधी ने क्या किया?] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20081022074713/http://www.nationalreview.com/comment/comment-schaefer042803.asp |date=22 अक्तूबर 2008 }} .''''२८ [[28 अप्रैल|अप्रैल]] [[2003|२००३]] को राष्ट्रीय समीक्षा [[21 मार्च|२१]] [[2006|मार्च २००६]], रिचर्ड ग्रेनिएर द्वारा पुनः प्राप्त किया गया।[http://eserver.org/history/ghandi-nobody-knows.txt "द गाँधी नोबडी नोस"] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20080516231847/http://eserver.org/history/ghandi-nobody-knows.txt |date=16 मई 2008 }}.''[[टीका पत्रिका|कमेंटरी पत्रिका]] ([[:en:Commentary Magazine|Commentary Magazine]])''. मार्च १९८३ .[[21 मार्च|२१]] [[2006|मार्च २००६]] को पुनः समीक्षा किया गया
गाँधी ने १९३० में [[जर्मनी में यहूदियों का इतिहास#यहूदी नाजियों के अधीन (१९३०-१९४०)|जर्मनी में यहूदियों]] ([[:en:History of the Jews in Germany#Jews under the Nazis (1930s-1940)|persecution of the Jews in Germany]]) के उत्पीडन को [[सत्याग्रह]] के भीतर ही सन्दर्भित कहा। नवम्बर १९३८ में उपरावित यहूदियों के नाजी उत्पीडन के लिए उन्होंने अहिंसा के उपाय को सुझाया:
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