"चिपको आन्दोलन": अवतरणों में अंतर
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में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।<ref name=":0" />
यह भी कहा जाता है कि कामरेड गोविन्द सिंह रावत ही चिपको आन्दोलन के व्यावहारिक पक्ष थे, जब चिपको की मार व्यापक प्रतिबंधों के रूप में स्वयं चिपको की जन्मस्थली की घाटी पर पड़ी तब कामरेड गोविन्द सिंह रावत ने झपटो-छीनो आन्दोलन को दिशा प्रदान की। चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लडाने को तैयार बैठे थे जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।<ref>{{Cite web|url=https://www.livehindustan.com/lifestyle/story-what-is-chipko-movement-know-its-history-significance-and-other-major-facts-3108899.html|title=चिपको आंदोलन : पेड़ों को बचाने की मुहिम के आगे ऐसे झुक गई थी सरकार, ग्रामीणों की हिम्मत को आज भी दुनिया करती हैं सलाम|website=livehindustan.com|language=hindi|access-date=2020-06-30|archive-url=https://web.archive.org/web/20200327174431/https://www.livehindustan.com/lifestyle/story-what-is-chipko-movement-know-its-history-significance-and-other-major-facts-3108899.html|archive-date=27 मार्च 2020|url-status=dead}}</ref>
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