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== इतिहास ==
जब बनारस राज्य के स्वामी चेत सिंह वारेन हेस्टिंग्स की सेना से घबरा कर वानर किले में जा छुपे थे, तब हेस्टिंग्स की सेना के खिलाफ हथियार उठाने वाले '''ढ़ढोर''' अहीर स ही थे। '''ग्वालवंश''' ''पूर्वांचल'' , [[अवध]], और [[बिहार]] में अधिक संख्या मे पाए जाते हैं। [[ग्वालवंशीयों]] में कोई विशेष सैन्य गुण नहीं होते हैं,इनकी '''ख़राब नस्ल''' के वजह से '''अंग्रेजी''' हुकूमत के समय आर्मी मे ग्वालो को केवल '''बैल'''-गाड़ी''' '''चालक''' के तौर पर भर्ती किया जाता था; लेकिन गुड़गांव के [[यदुवंशी]] अहीर उत्कृष्ट '''सैनिक''' बनते थे। <ref>https://archive.org/details/dli.csl.5866/page/n49/mode/1up?q=gwalbans+jadubans</ref> <ref>https://archive.org/details/dli.csl.5866/page/n56/mode/1up?q=gwalbans+jadubans</ref>
जब बनारस राज्य के स्वामी चेत सिंह वारेन हेस्टिंग्स की सेना से घबरा कर वानर किले में जा छुपे थे, तब हेस्टिंग्स की सेना के खिलाफ हथियार उठाने वाले ग्वालवंशी अहीर सरदार ही थे। जब वाराणसी में गोस्वामी तुलसीदास जी को अकबर के मुस्लिम सैनिकों के बंधक बना लिया गया था, तब मुस्लिम सेना पे आक्रमण करके उन्हें मुक्त कराने वाले भी यही थे। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश के बस्ती जिलों में अच्छी मात्रा में जमीन होने के कारण इन्हें भूमिदार बनाया गया। इनके उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी , मिर्ज़ापुर और जौनपुर जैसे जिलों में कई छोटे-छोटे जमींदारियां थीं। इन्हें उनकी सामाजिक मान प्रतिष्ठा के कारण सरदार की उपाधि से सम्मानित किया गया है। यह मुख्यतः पहलवान, किसान व जमीनों के मालिक थे। इनका इतिहास हमेशा से हल और हथियार वाला रहा है। अहबरन खैरीगढ़ का ग्वालबंसी अहीर सरदार था। वह खेरीगढ़ की घेराबंदी की थी, जो मुगल साम्राज्य के अधीन थी और इस क्षेत्र पर उनका एक मजबूत स्वतंत्र शासन था। अकबर ने अपने उल्लेख को एक क्रूर राजा के रूप में वर्णित किया। अवध के खैराबाद प्रांत में पाली और बावन के परगनों के मालिक ग्वालबंसी अहीर थे।
जब वाराणसी में गोस्वामी तुलसीदास जी को अकबर के मुस्लिम सैनिकों के बंधक बना लिया गया था, तब मुस्लिम सेना पे आक्रमण करके उन्हें मुक्त कराने वाले भी यही थे। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश के बस्ती जिलों में '''ढ़ढोर''' अहिरो की अच्छी मात्रा में जमीन होने के कारण इन्हें भूमिदार बनाया गया। [[गोंडा]] और [[बस्ती]] जिलो में [[अवध]] के किसी भी अन्य हिस्से या ज़िलों की तुलना में [[ग्वालवंश]] जाती की अधिक संख्या है, फिर भी उनके पास इन '''जिलो ''' में [[कोई] [[भूमि]] नहीं हैं। गोंडा और बस्ती ज़िलों मे ये '''भूमिहीन''' हैं।<ref>https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.181585/page/n147/mode/1up?q=gwalbans</ref><ref>https://books.google.co.in/books?id=tPNrAAAAMAAJ&q=gwalbans+basti&dq=gwalbans+basti&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwjbhJf91KKGAxWf9DgGHTg_CmYQ6wF6BAgNEAU#gwalbans%20basti</ref>इनके उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी , मिर्ज़ापुर और जौनपुर जैसे जिलों में ढ़ढोर अहिरो कई छोटे-छोटे जमींदारियां थीं। <ref>https://books.google.co.in/books?id=zhnsXQOa3KgC&q=%E0%A4%A2%E0%A4%BF%E0%A4%A2%E0%A5%8B%E0%A4%B0&dq=%E0%A4%A2%E0%A4%BF%E0%A4%A2%E0%A5%8B%E0%A4%B0&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwjVl_am87eGAxUbzDgGHbm3CvQQ6wF6BAgPEAU#%E0%A4%A2%E0%A4%BF%E0%A4%A2%E0%A5%8B%E0%A4%B0</ref>इन्हें दूध बेचने के करण सरदार कहा गया है। बनारस के हिंदी भाषी समुदाय में सरदार शब्द का अर्थ दो अलग-अलग तरह के लोगों से है,एक के साथ जी और दुषरे के साथ बिना जी के इस्तेमाल किया जाता है। सरदार नाम से संबोधित व्यक्ति एक दूधवाला ग्वाला होता है, और सरदार ज़ी से सम्बोधित व्यक्ति ढ़ढोर अहीर होते हैं।
<ref>https://books.google.co.in/books?id=p64zAAAAIAAJ&q=sardar+banaras+milkman&dq=sardar+banaras+milkman&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwjNtP6eqLKGAxVF3TgGHbwpCF4Q6wF6BAgNEAU#sardar%20banaras%20milkman</ref>यह मुख्यतःचरवाहा , दूध वाला व बकरियो के मालिक थे। इनका इतिहास हमेशा से दूध बेचने का और बकरी चराने का रहा हैं ग्वाला का मतलब ही चरवाहा और दूध वाला होता हैं
 
गोवाला या [[ग्वाला]] जाती के लोग हर साल ''दिवाली'' के दिन एक त्यौहार मनाते हैं। इस त्यौहार को स्थानीय भाषा में [[गैधर]] और ''संस्कृत'' भाषा में [[गोकरिरा]] कहा जाता है। इस अवसर पर '''ग्वाला''' जाती के लोग एक [[सूअर]] के पैर बांधते हैं और अपने मवेशियों को उस पर तब तक चलाते हैं जब तक वह मर नहीं जाता। उसके बाद वे उसे खेतों में [[उबालते हैं]] और [[खाते हैं]]।<ref>https://archive.org/details/dli.bengal.10689.726/page/n215/mode/1up?q=goyalas</ref>
ये
 
बिरहा व लोरिकी गाते हैं। चित्रांकन ने ही बनारस में नाटी इमली (चौकाघाट) के भरत मिश्रण को शुरू किया है, जिसके कई फुट हिस्से लिए गए हैं। ये राधाकृष्ण के भी अनन्य भक्त हैं जो इनके स्वजातिय देवता हैं। इस कुश्ती के मामले में सबसे आगे, पूर्वी उत्तर प्रदेश में हर साल नागपंचमी के अवसर पर ये अखाड़ा संघर्षरत हैं।