"अवतार": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
छो Robot: Interwiki standardization; अंगराग परिवर्तन |
|||
पंक्ति 35:
तीसरी बार ऋषियों को [[साश्वततंत्र]], जिसे कि [[नारद पाँचरात्र]] भी कहते हैं और जिसमें कर्म बन्धनों से मुक्त होने का निरूपन है, का उपदेश देने के लिये नारद जी के रूप में अवतार लिया।
[[धर्म]] की पत्नी [[मूर्ति देवी]] के गर्भ से
पाँचवाँ अवतार माता [[देवहूति]] के गर्भ से कपिल मुनि का हुआ जिन्होंने अपनी माता को [[सांख्य शास्त्र]] का उपदेश दिया।
पंक्ति 76:
* [http://v-k-s-c.blogspot.com/2008/08/buddhist-philosphy-buddhism.html अवतारों की कथा] - '''मेरी कलम से''' हिन्दी चिट्ठे पर सभी अवतारों की कथा अवतार यानि अवतरित होना ना कि जन्म लेना ,प्रकट होना जिस प्रकार क्रोध प्रकट होता है वह अवतरित नही होता उसे तो अहंकार जन्म देता है परन्तु अवतार का जन्म नही होता जन्म दो के संयोग से प्राप्त होता है ,जेसे अहंकार और इर्षा का संयोग क्रोध जन्मता है |अवतार अपनी लीला के द्वारा प्रेक्टिकली कर के दिखाता है |जो - जो कर्म अवतार करता है ,उसे अन्य सहायक अवतार नही कर पाते वह उनका बखान प्रचार करने वाले प्रचारक भर होते हैं बाकि रही बात अंश की हर जड़-चेतन भूत प्राणी उसी का अंश मात्र होता है |अवतार लेने के समय भगवान माया को अपने आधीन कर लेते हैं |
...............................................................................................................................................................................................................................................................
अवतार का अर्थ है अवतरण अर्थात जो अपनी इच्छा से अवतरित हुआ हो. परम बोध को प्राप्त सिद्ध अपनी इच्छा से किसी संकल्प को पूरा करने के लिए जन्म लेता है वह अवतार कहलाता है. अवतार
बसंत प्रभात जोशी के आलेख से
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
|