अवतार
अवतार संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ प्रायः उतरना होता है।[1]
आध्यात्मिक विशेष अर्थ
संपादित करेंपञ्चम भूमि असंसक्ति अवस्था है। इस अवस्था में योगी समाधिस्थ हों या उससे उठे हों, वह ब्रह्मभाव से कभी विचलित नहीं होते या संसार के दृश्यों को देखकर विमुग्ध नहीं होते। यही पक्की योगारूढ़ावस्था है। इस अवस्था में रहकर सब काम किया भी जा सकता है और नहीं भी किया जा सकता है। साधारणतः महायोगीश्वर पुरूष तथा अवतारी पुरुष इसी अवस्था में रहते हैं और इसी अवस्था में रहकर समस्त जगत लीला का सम्पादन करते हैं। [2]
भगवान विष्णु के अवतार
संपादित करेंदशावतार
संपादित करेंभागवत पुराण के अनुसार विष्णु के असंख्य अवतार हुए हैं किन्तु उनके दस अवतारों (दशावतार = दश + अवतार) को प्रमुख अवतार माना जाता है। विष्णु के ये दस अवतार अग्निपुराण, गरुड़पुराण और भागवत पुराण में उल्लिखित हैं।
भगवान विष्णु के दस अवतार हैं :
पहले तीन अवतार, अर्थात् मत्स्य, कूर्म और वराह प्रथम महायुग में अवतीर्ण हुए। पहला महायुग सत्य युग या कृत युग है। नरसिंह, वामन, परशुराम और राम दूसरे अर्थात् त्रेतायुग में अवतरित हुए। श्रीकृष्ण द्वापर युग में अवतरित हुए , श्रीकृष्ण के पश्चात् वेंकटेश्वर अवतरित हुए। इस समय चल रहा युग कलियुग है और भागवत पुराण की भविष्यवाणी के आधार पर इस युग के अंत में कल्कि अवतार होगा। इससे अन्याय और अनाचार का अंत होगा तथा न्याय का शासन होगा जिससे सत्य युग की फिर से स्थापना होगी।
सुखसागर के अनुसार भगवान विष्णु के चौबीस अवतार
संपादित करें- सनकादि ऋषि
- वराहावतार
- नारद मुनि
- हंसावतार
- नर-नारायण
- कपिल
- दत्तात्रेय
- यज्ञ
- ऋषभदेव
- पृथु
- मत्स्यावतार
- कूर्म अवतार
- धन्वन्तरि
- मोहिनी
- हयग्रीव
- नृसिंह
- वामन
- श्रीहरि गजेंद्रमोक्ष दाता
- परशुराम
- वेदव्यास
- राम
- कृष्ण
- वेंकटेश्वर
- कल्कि
- भगवान ने कौमारसर्ग में सनक, सनन्दन, सनातन तथा सनत्कुमार नामक ब्रह्मऋषियों के रूप में अवतार लिया। यह उनका पहला अवतार था।
- पृथ्वी को रसातल से लाने के लिये भगवान ने वराह के रूप में अवतार लिया तथा हिरण्याक्ष का वध किया।
- ऋषियों को सात्वततंत्र, जिसे कि नारद पंचरात्र भी कहते हैं और जिसमें कर्म बन्धनों से मुक्त होने का निरूपण है, का उपदेश देने के लिये नारद जी के रूप में अवतार लिया।
- हंस के रूप में अवतार लेकर भगवान् ने सनकादि ऋषियों को उनके प्रश्नों के उत्तर दिए।
- धर्म की पत्नी मूर्ति देवी के गर्भ से नर-नारायण, जिन्होंने बदरीवन में जाकर घोर तपस्या की, का अवतरण हुआ।
- माता देवहूति के गर्भ से कपिल मुनि के रूप में भगवान् का अवतार हुआ जिन्होंने अपनी माता को सांख्य शास्त्र का उपदेश दिया।
- अनसूया के गर्भ से दत्तात्रेय प्रकट हुए जिन्होंने प्रह्लाद, अलर्क आदि को ब्रह्मज्ञान दिया।
- आकूति के गर्भ से यज्ञ नाम से अवतार धारण किया।
- नाभिराजा की पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभदेव के नाम से भगवान का अवतार हुआ। उन्होंने परमहंस के उत्तम मार्ग का निरूपण किया।
- राजा पृथु के रूप में भगवान ने अवतार लिया और गौ-रूपिणी पृथ्वी से अनेक औषधियों, रत्नों तथा अन्नों का दोहन किया।
- चाक्षुषमन्वन्तर में सम्पूर्ण पृथ्वी के जलमग्न हो जाने पर पृथ्वी को नौका बना कर भावी वैवश्वत मनु की रक्षा और हयग्रीवासुर नामक दैत्य का वध करने हेतु भगवान ने मत्स्यावतार लिया।
- समुद्र मंथन के समय देवता तथा असुरों की सहायता करने के लिये भगवान ने कच्छप के रूप में अवतार लिया।
- भगवान ने धन्वन्तरि के नाम से लिया जिन्होंने समुद्र से अमृत का घट निकाल कर देवताओं को दिया।
- मोहिनी का रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिलाने के लिये भगवान ने अवतार लिया।
- ग्राह से गज को बचाने के लिए भगवान् आये। यद्यपि यह अवतार नहीं था क्योंकि अवतार में नया जन्म लिया जाता है या कम से कम अन्य रूप धारण किया जाता है; फिर भी कई जगह इसे भी अवतार मान लिया गया है।
- भगवान का नृसिंह के रूप में अवतार हुआ जिन्होंने असुरराज हिरण्यकशिपु को मार कर प्रह्लाद की रक्षा की।
- असुरराज बलि को पाताल भेज कर देवराज इन्द्र को स्वर्ग का राज्य प्रदान करने हेतु महर्षि कश्यप की पहली पत्नी अदिति के गर्भ से भगवान ने वामन के रूप में अवतार लिया।
- अभिमानी क्षत्रिय राजाओं का इक्कीस बार विनाश करने के लिये परशुराम के रूप में अवतार लिया।
- पराशर जी के द्वारा सत्यवती के गर्भ से भगवान ने वेदव्यास के रूप में अवतार धारण किया जिन्होंने वेदों का विभाजन कर के अनेक उत्तम ग्रन्थों का निर्माण किया।
- हयग्रीव नाम के दानव को माता पार्वती वरदान था कि उसका अन्त हयग्रीव ही कर सकता है। भगवान ने उसके अंत के लिए हयग्रीव का अवतार लिया और उसका वध किया।
- राम के रूप में भगवान ने अवतार ले कर रावण के अत्याचार से विप्रों, धेनुओं, देवताओं और संतों की रक्षा की।
- भगवान ने सम्पूर्ण कलाओं से युक्त वसुदेव और देवकी के पुत्र कृष्ण के रूप में अवतार लिया और दुराचारी दैत्य कंस का वध किया।
- महर्षि भृगु द्वारा भगवान विष्णु को लात मारने के बाद भगवान विष्णु ने उन्हें क्षमा कर दिया परन्तु अपने पिता का यह आचरण माता लक्ष्मी को सही नहीं लगा तो वे बैकुण्ठ छोड़कर पृथ्वी पर चली गई। भगवान विष्णु ने भी उन्हें खोजने के लिए वेंकटेश्वर अवतार धारण किया और उन्हें खोजने के बाद यक्षराज कुबेर से ॠण लेकर माता लक्ष्मी की पद्मावती अवतार से विवाह किया।
- कलियुग के अन्त में विष्णु यश नामक ब्राह्मण के घर भगवान् का कल्कि अवतार होगा।
सिख धर्म के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार
संपादित करेंसिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दशम ग्रन्थ में विष्णु के २४ अवतारों का वर्णन है जो निम्नलिखित है-
भगवान गणेश के अवतार
संपादित करेंमुद्गल पुराण में गणेश के ८ अवतारों का वर्नन है-
भगवान शिव के अवतार
संपादित करेंयद्यपि पुराणों में यत्र-तत्र शिव के अवतारों का वर्णन है किन्तु शैव सम्प्रदाय में न तो शिव के अवतारों को सभी लोग मानते हैं न ही उनकी संख्या के बारे में मतैत्य है। लिंगपुराण में शिव के कई अवतारों का उल्लेख है। भगवान शिव के कई अवतार हैं जिनमें उन्नीस प्रमुख माने गए हैं वे इस प्रकार हैं -:
- वीरभद्र
- पिप्पलाद
- नन्दी
- भैरव
- शरभ
- गृहपति
- दुर्वासा
- हनुमान
- वृषभ
- येतीनाथ
- कृष्णदर्शन
- अवधूत
- सुरेश्वर
- किरात
- यक्ष
- सुनटनर्तक
- ब्रह्मचारी
- भिक्षुवीर्य
- अश्वत्थामा
अन्य अवतार
गोरखनाथ , नटराज , खंडोबा , बालकनाथ आदि भी भगवान शिव के अवतार हैं।
शिवमहापुरण में भगवान शिव के भी दस अवतारों का उल्लेख है उनके नाम इस प्रकार हैं-:
अवतारों की पत्नियां या शक्तियाँ
- महाकाल की शक्ति महाकाली
- तारा की शक्ति तारा देवी
- बाल भुवनेश की शक्ति बाला भुवनेशा
- भैरव की शक्ति भैरवी
- छिन्नमस्तक की शक्ति छिन्नमस्ता
- द्युमवान की शक्ति द्युमावती
- बगलामुख की शक्ति बगलामुखी
- मातंग की शक्ति मातंगी
- कमल की शक्ति कमला
भगवान शंकर के ग्यारह रुद्रावतार
संपादित करेंभगवान शिव के ग्यारह रुद्रावतार हैं जिनका उल्लेख शिव पुराण के साथ साथ लिंगपुराण में भी है। इन रुद्रों की उत्पत्ति महर्षि कश्यप की पत्नी कामधेनु से हुई थी। उन रुद्रावतारों के नाम इस प्रकार हैं -
- कपाली
- पिन्गल
- भीम
- विरूपाक्ष
- विलोहित
- शास्ता
- अजपाद
- अहिर्बुधन्य
- शम्भू
- चन्ड
- भव
भगवान ब्रह्मा के अवतार
संपादित करेंगुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दशम ग्रन्थ में ब्रह्मा के ७ अवतारों का वर्णन है–
देवी के अवतार
संपादित करेंमहालक्ष्मी के अवतार
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Monier Monier-Williams (1923). [[1]]"संग्रहीत प्रति". मूल से पुरालेखित 17 नवंबर 2023. अभिगमन तिथि 8 सितंबर 2017.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link) A Sanskrit-English Dictionary. Oxford University Prehkss. p. 90.
- ↑ श्री भूपेद्रनाथ, सान्याल (2005). श्रीमद्भगवद्गीता (प्रथम संस्करण). भागलपुर बिहार: गुरूधाम प्रकाशन समिति. पपृ॰ भाग-१, २००.