गणेश
भगवान गणेश देवो के देव भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे छोटे पुत्र हैं। भगवान गणेश की पत्नी का नाम रिद्धि और सिद्धि है। रिद्धि और सिद्धि भगवान विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। भगवन गणेश का नाम हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य करने से पहले लिया जाता है।
- जन्म समय
भाद्रपद की चतुर्थी को मध्यान्ह के समय। जन्म समय माथुर ब्राह्मणों के इतिहास अनुसार अनुमानत: 9938 विक्रम संवत पूर्व भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय हुआ था। पौराणिक मत के अनुसार सतुयग में हुआ था।
- स्थान
कैलाश मानसरोवार या उत्तरकाशी जिले का डोडीताल।
गणेश |
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अवतार
संपादित करेंपुराणों में उनके 64 अवतारों का वणर्न है। सतयुग में कश्यप व अदिति के यहां महोत्कट विनायक नाम से जन्म लेकर देवांतक और नरांतक का वध किया। त्रेतायुग में उन्होंने उमा के गर्भ जन्म लिया और उनका नाम गुणेश रखा गया। सिंधु नामक दैत्य का विनाश करने के बाद वे मयुरेश्वर नाम से विख्यात हुए। द्वापर में माता पार्वती के यहां पुन: जन्म लिया और वे गणेश कहलाए। ऋषि पराशर ने उनका पालन पोषण किया और उन्होंने वेदव्यास के विनय करने पर सशर्तमहाभारत लिखी।
गणेश जी का मस्तक
संपादित करेंउन्हें गजानन इसलिए कहा गया कि उनके सिर को भगवान शंकर ने काट दिया था। बाद में उनके धड़ पर हाथी का सिर लगा कर उन्हें पुन: जीवित किया गया। यह भी कहा जाता है कि शनिदेव जब बाल गणेश को देखने गए तो उनकी दृष्टि से उनका मस्तक भस्म हो गया था बाद में विष्णुजी ने एक हाथी का सिर उनके धड़ पर लगाकर उन्हें पुनर्जिवित कर दिया था।
अग्रपूजक कैसे बने
संपादित करेंएक बार देवताओं में धरती की परिक्रमा की प्रतियोगिता हुई जिसमें जो सबसे पहले परिक्रमा करके आ जाता उसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता। प्रतियोगिता प्रारंभ हुई परंतु गणेश जी का वाहन तो मूषक था तब उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और उन्होंने अपने माता पिता शिव एवं पार्वती की ही परिक्रमा कर ली। ऐसा करके उन्होंने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की ही परिक्रमा कर ली। तब सभी देवों की सर्वसम्मति और ब्रह्माजी की अनुशंसा से उन्हें अग्रपूजक माना गया। इसके पीछे और भी कथाएं हैं। पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं।
गणेशजी की पसंद
संपादित करेंउनका प्रिय भोग मोदक लड्डू, प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल, प्रिय वस्तु दुर्वा (दूब), प्रिय वृक्ष शमी-पत्र, केल, केला आदि हैं। केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती की जाती है। उनको मोदक का लड्डू अर्पित किया जाता है। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
गणेशजी का स्वरूप
संपादित करेंजल तत्व के अधिपति, बुधवार और चतुर्थी के स्वामी और केतु एवं बुध के ग्रहाधिपति गणेश जी के प्रभु अस्त्र पाश और अंकुश है। वे मूषक वाहन पर सवार रहते हैं। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं।
भगवान गणेशजी का सतयुग में वाहन सिंह है और उनकी भुजाएं 10 हैं तथा नाम विनायक। श्री गणेशजी का त्रेतायुग में वाहन मयूर है इसीलिए उनको मयूरेश्वर कहा गया है। उनकी भुजाएं 6 हैं और रंग श्वेत। द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं। इस युग में वे गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका वर्ण लाल है। कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। इनकी 2 भुजाएं हैं और इस युग में उनका नाम धूम्रकेतु है।
गणेशजी के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंग
संपादित करेंमस्तक प्रसंग, पृथ्वी प्रदक्षिणा प्रसंग, मूषक (गजमुख) वाहन प्राप्ति प्रसंग, गणेश विवाह प्रसंग, संतोषी माता उत्पत्ति प्रसंग, विष्णु विवाह में उन्हें नहीं बुलाने का प्रसंग, असुर (देवतान्तक, सिंधु दैत्य, सिंदुरासुर, मत्सरासुर, मदासुर, मोहासुर, कामासुर, लोभासुर, क्रोधासुर, ममासुर, अहंतासुर) वध प्रसंग, महाभारत लेखन प्रसंग आदि। उन्होंने अपने भाई कार्तिकेय के साथ कई युद्धों में लड़ाई की थी।
गणेश ग्रंथ
संपादित करेंगणेश का गाणपतेय संप्रदाय है। उनके ग्रंथों में गणेश पुराण, गणेश चालीसा, गणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनामावली, गणेशजी की आरती, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणपति अथर्वशीर्ष, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र आदि।
शारीरिक संरचना
संपादित करेंगणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।
चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।
गणेश जी के प्रतीक और उनका महत्व
संपादित करेंगणेशजी का बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार को दर्शाता है। गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे। गणेशजी एकदंत हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता।
वे अपने हाथ में जो भी लिए हुए हैं, उन सबका भी अर्थ है। वे अपने एक हाथ में अंकुश लिए हुए हैं, जिसका अर्थ है जागृत होना और एक हाथ में पाश लिए हुए हैं जिसका अर्थ है नियंत्रण। जागृति के साथ, बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है। गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान, भला क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब नहीं है! फिर से, इसका एक गहरा रहस्य है। एक चूहा उन रस्सियों को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं। चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर सकता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं।
हमारे प्राचीन ऋषि इतने गहन बुद्धिशाली थे कि उन्होंने दिव्यता को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते। तो जब भी हम उस सर्वव्यापी का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिए, जैसे हाथी के सिर वाले भगवान, और उसी समय यह भी याद रखें कि गणेशजी हमारे भीतर ही हैं। यही वह ज्ञान है जिसके साथ हमें गणेश चतुर्थी मनानी चाहिए।
भगवान गणेश जी के जन्म की कहानी
संपादित करेंहम सभी उस कथा को जानते हैं, कि कैसे गणेश जी हाथी के सिर वाले भगवान बने। जब पार्वती शिव के साथ उत्सव क्रीड़ा कर रहीं थीं, तब उन पर थोड़ा मैल लग गया। जब उन्हें इस बात की अनुभूति हुई, तब उन्होंने अपने शरीर से उस मैल को निकाल दिया और उससे एक बालक बना दिया। फिर उन्होंने उस बालक को कहा कि जब तक वे स्नान कर रहीं हैं, वह वहीं पहरा दे।
जब शिवजी वापिस लौटे, तो उस बालक ने उन्हें पहचाना नहीं और उनका रास्ता रोका। तब भगवान शिव ने उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए।
यह देखकर पार्वती बहुत हैरान रह गयीं। उन्होंने शिवजी को समझाया कि वह बालक तो उनका पुत्र था, और उन्होंने भगवान शिव से विनती करी कि वे किसी भी कीमत पर उसके प्राण बचाएं।
तब भगवान शिव ने अपने सहायकों को आज्ञा दी कि वे जाएं और कहीं से भी कोई ऐसा मस्तक लेकर आएं जो उत्तर दिशा की ओर मुहँ करके सो रहा हो। तब शिवजी के सहायक एक हाथी का सिर लेकर आए, जिसे शिवजी ने उस बालक के धड़ से जोड़ दिया और इस तरह भगवान गणेश का जन्म हुआ।
गणेश जी की कहानी में विचार के तथ्य
संपादित करेंपार्वती जी के शरीर पर मैल क्यों था?
संपादित करेंपार्वती प्रसन्न ऊर्जा का प्रतीक हैं। उनके मैले होने का अर्थ है कि कोई भी उत्सव राजसिक हो सकता है, उसमें आसक्ति हो सकती है और आपको, आपके केन्द्र से हिला सकता है। मैल अज्ञान का प्रतीक है, और भगवान शिव सर्वोच्च सरलता, शान्ति और ज्ञान के प्रतीक हैं।
क्या भगवान शिव, जो शान्ति के प्रतीक थे, इतने गुस्से वाले थे कि उन्होंने अपने ही पुत्र का सिर धड़ से अलग कर दिया!
भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर क्यों?
संपादित करेंतो जब गणेशजी ने भगवान शिव का मार्ग रोका, इसका अर्थ हुआ कि अज्ञान, जो कि मस्तिष्क का गुण है, वह ज्ञान को नहीं पहचानता, तब ज्ञान को अज्ञान से जीतना ही चाहिए। इसी बात को दर्शाने के लिए शिवजी ने गणेशजी के सिर को काट दिया था।
हाथी का ही सिर क्यों?
संपादित करेंहाथी ‘ज्ञान शक्ति’ और ‘कर्म शक्ति’, दोनों का ही प्रतीक है। एक हाथी के मुख्य गुण होते हैं – बुद्धि और सहजता। एक हाथी का विशालकाय सिर बुद्धि और ज्ञान का सूचक है। हाथी कभी भी अवरोधों से बचकर नहीं निकलते, न ही वे उनसे रुकते हैं। वे केवल उन्हें अपने मार्ग से हटा देते हैं और आगे बढ़ते हैं – यह सहजता का प्रतीक है। इसलिए, जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये सभी गुण जागृत हो जाते हैं, और हम ये गुण ले लेते हैं।
गणेश के सभी 32 रूप
संपादित करेंगणेश शुभारंभ की बुद्धि देते हैं और काम को पूरा करने की शक्ति भी। वे बाधाएं मिटाकर अभय देते हैं और सही- गलत का भेद बताकर न्याय भी करते हैं। गणेश के इन रूपों में उनके प्रथम पूज्य होने का कारण छिपा है।
भगवान गणेश वास्तव में प्रकृति की शक्तियों का विराट रूप हैं। मुद्गल और गणेश पुराण में विघ्नहर्ता गणेशजी के 32 मंगलकारी रूप बताए गए हैं। इनमें वे बाल रूप में हैं, तो किशोरों वाली ऊर्जा भी उनमें मौजूद है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश की शक्ति उनमें समाहित है, तो वे सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का रूप भी हैं। वे पेड़, पौधे, फल, पुष्प के रूप में सारी प्रकृति खुद में समेटे हैं। वे योगी भी हैं और नर्तक भी।
नंजनगुड शिव मंदिर में गणेश के 32 रूप विराजित कर्नाटक में मैसूर के पास नंजनगुड शिव मंदिर में भगवान गणेश के सभी 32 रूप मौजूद हैं। इस मंदिर में देवी-देवताओं की 100 से अधिक प्रतिमाएं विभिन्न रूपों में हैं। इस मंदिर की गिनती कर्नाटक के सबसे बड़े मंदिरों में होती है। तस्वीर भगवान गणेश के पंचमुख रूप की मूर्ति की है। यहां उन्हें कदरीमुख गणपति कहा जाता है।
1. श्री बाल गणपति - यह भगवान गणेश का बाल रूप है। यह धरती पर बड़ी मात्रा में उपलब्ध संसाधनों का और भूमि की उर्वरता का प्रतीक है। उनके चारों हाथों में एक-एक फल है- आम, केला, गन्ना और कटहल। गणेश चतुर्थी पर भगवान के इस रूप की पूजा भी की जाती है।
प्रेरणा यह रूप संकट में भी बाल सुलभ सहजता की प्रेरणा प्रेरणा देता है। इंसान की आगे बढ़ने की क्षमता दर्शाता है।
2. तरुण गणपति - यह गणेशजी का किशोर रूप है। उनका शरीर लाल रंग में चमकता है। इस रूप में उनकी 8 भुजाएं हैं। उनके हाथों में फलों के साथ-साथ मोदक और अस्त्र-शस्त्र भी हैं। यह रूप आंतरिक प्रसन्नता देता है। यह युवावस्था की ऊर्जा का प्रतीक है।
प्रेरणा - इस रूप में गणपति अपनी पूरी क्षमता से काम करने और उपलब्धियों के लिए संघर्ष की प्रेरणा देते हैं।
3. भक्त गणपति - इस रूप में वे श्वेतवर्ण हैं। उनका रंग पूर्णिमा के चांद की तरह चमकीला है। आमतौर पर फसल के मौसम में किसान
उनके इस रूप की पूजा करते हैं। यह रूप भक्तों को सुकून देता है। उनके चार हाथ हैं, जिनमें फूल और फल हैं।
प्रेरणा - इस रूप में गणपति इंसान के चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं।
4. वीर गणपति - यह गणेशजी का योद्धा रूप है। इस रूप में उनके 16 हाथ हैं। उनके हाथों में गदा, चक्र, तलवार, अंकुश सहित कई अस्त्र हैं। इस रूप में गणेश युद्ध कला में पारंगत बनाते हैं। इस रूप की उनकी पूजा साहस पैदा करती है। हार न मानने के लिए प्रेरित करती है।
प्रेरणा - इस रूप में गजानन बुराई और अज्ञानता पर विजय पाने के लिए पूरी क्षमता से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
5. शक्ति गणपति - इस रूप में उनके चार हाथ हैं। एक हाथ से वे सभी भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं। उनके अन्य हाथों में अस्त्र-शस्त्र भी हैं और माला भी। इस रूप में उनकी शक्ति भी साथ हैं। वे सभी भक्तों को शक्तिशाली बनने का आशीर्वाद देते हुए ‘अभय मुद्रा’ में हैं।
प्रेरणा - गणेश जी का यह रूप इस बात प्रतीक है कि इंसान के भीतर शक्ति पुंज है, जिसका उसे इस्तेमाल करना है।
6. द्विज गणपति - इस रूप में उनके दो गुण अहम हैं- ज्ञान और संपत्ति। इन दो को पाने के लिए गणपति के इस रूप को पूजा जाता है।
उनके चार मुख हैं। वे चार हाथों वाले हैं। इनमें कमंडल, रुद्राक्ष, छड़ी और ताड़पत्र में शास्त्र लिए हुए हैं।
प्रेरणा - द्विज इसलिए हैं क्योंकिवे ब्रह्मा की तरह दो बार जन्मे हैं। उनके चार हाथ चार वेदों की शिक्षाओं का प्रतीक हैं।
7. सिद्धि गणपति - इस रूप में गणेशजी पीतवर्ण हैं। उनके चार हाथ हैं। वे बुद्धि और सफलता के प्रतीक हैं। इस रूप में वे आराम की मुद्रा में बैठे हैं। अपनी सूंड में मोदक लिए हैं। मुंबई के प्रसिद्ध सिद्धि विनायक मंदिर में गणेशजी का यही स्वरूप विराजित है।
प्रेरणा - भगवान गणेश का यह रूप किसी भी काम को दक्षता से करने की प्रेरणा देता है। यह सिद्धि पाने का प्रतीक है।
8. उच्छिष्ट गणपति - इस रूप में गणेश नीलवर्ण हैं। वे धान्य के देवता हैं। यह रूप मोक्ष भी देता है और ऐश्वर्य भी। एक हाथ में वे एक वाद्य यंत्र लिए विराजित हैं। उनकी शक्ति साथ में पैरों पर विराजित हैं। गणेशजी के इस रूप का एक मंदिर तमिलनाडु में है।
प्रेरणा - यह रूप ऐश्वर्य और मोक्ष में संतुलन का प्रतीक है। वे कामना और धर्म में संतुलन के लिए प्रेरित करते हैं।
9. विघ्न गणपति - इस रूप में गणेशजी का रंग स्वर्ण के समान है। उनके आठ हाथ हैं। वे बाधाओं को दूर करने वाले भगवान हैं। इस रूप में वे भगवान विष्णु के समान दिखाई देते हैं। उनके हाथों में शंख और चक्र हैं। वे कई तरह के आभूषण भी पहने हुए हैं।
प्रेरणा - यह रूप सकारात्मक पक्ष देखने की प्रेरणा देता है। यह नकारात्मक प्रभाव और विचारों को भी दूर करता है।
10. क्षिप्र गणपति - इस रूप में गणेश जी रक्तवर्ण हैं। उनके चार हाथ हैं। वे आसानी से प्रसन्न होते हैं और भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं। उनके चार हाथों में से एक में कल्पवृक्ष की शाखा है। अपनी सूंड में वे एक कलश लिए हैं, जिसमें रत्न हैं।
प्रेरणा - यह रूप कामनाओं की पूर्ति का प्रतीक है। कल्पवृक्ष इच्छाएं पूरी करता है और कलश समृद्धि देता है।
11. हेरम्ब गणपति - पांच सिरों वाले हेरम्ब गणेश दुर्बलों के रक्षक हैं। यह उनका विलक्षण रूप है। इस रूप में वे शेर पर सवार हैं। उनके दस हाथ हैं, जिनमें वे फरसा, फंदा, मनका, माला, फल, छड़ी और मोदक लिए हुए हैं। उनके सिर पर मुकुट है।
प्रेरणा - इस रूप में गणेश कमजोर को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देते हैं। वे डर पर विजय पाने की प्रेरणा बनते हैं।
12. लक्ष्मी गणपति - इस रूप में गणेशजी बुद्धि और सिद्धि के साथ हैं। उनके आठ हाथ हैं। उनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, जो सभी को सिद्धि और बुद्धि दे रहा है। उनके एक हाथ में तोता बैठा है। तमिलनाडु के पलानी में गणेशजी के इस रूप का मंदिर है।
प्रेरणा - गणेशजी इस रूप में उपलब्धियां और किसी काम में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए प्रेरित करते हैं।
13. महागणपति - रक्तवर्णहैं और भगवान शिव की तरह उनके तीन नेत्र हैं। उनके दस हाथ हैं और उनकी शक्ति उनके साथ विराजित हैं। भगवान गणेश के इस रूप का एक मंदिर द्वारका में है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने यहां गणेश आराधना की थी।
प्रेरणा - इस रूप में महागणपति दसों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे भ्रम से बचाते हैं।
14.विजय गणपति - इस रूप में वे अपने मूषक पर सवार हैं, जिसका आकार सामान्य से बड़ा दिखाया गया है। महाराष्ट्र में पुणे के अष्टविनायक मंदिर में भगवान का यह रूप मौजूद है। मान्यता है कि भगवान के इस रूप की पूजा से तुरंत राहत मिलती है।
प्रेरणा - इस रूप में गणपति विजय पाने और संतुलन कायम करने के लिए प्रेरित करते हैं।
15. नृत्त गणपति - इस रूप में गणेशजी कल्पवृक्ष के नीचे नृत्य करते दिखाए गए हैं। वे प्रसन्न मुद्रा में हैं। उनके चार हाथ हैं। एक हाथ में युद्ध का अस्त्र परशु भी है। उनके इस रूप का तमिलनाडु के कोडुमुदी में अरुलमिगु मगुदेश्वरर मंदिर है।
प्रेरणा - इस रूप का पूजन ललित कलाओं में सफलता दिलाता है। वे कलाओं में प्रयोग के लिए प्रेरित करते हैं।
16. उर्ध्व गणपति - इस रूप में उनके आठ हाथ हैं। उनकी शक्ति साथ में विराजित हैं, जिन्हें उन्होंने एक हाथ से थाम रखा है। एक हाथ में टूटा हुआ दांत है। बाकी हाथों में कमल पुष्प सहित प्राकृतिक सम्पदाएं हैं। वे तांत्रिक मुद्रा में विराजित हैं।
प्रेरणा - इस रूप में गणेशजी की आराधना भक्त को अपनी स्थिति से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करती है।
17. एकाक्षर गणपति - इस रूप में गणेशजी के तीन नेत्र हैं और मस्तक पर भगवान शिव के समान चंद्रमा विराजित है। मान्यता है कि इस रूप की पूजा से मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण में मदद मिलती है। गणपति के इस रूप का मंदिर कनार्टक के हम्पी में है।
प्रेरणा - एकाक्षर गणपति का बीज मंत्र है ‘गं’ है। यह हर तरह के शुभारंभ का प्रतीक है।
18. वर गणपति - गणपति का यह रूप वरदान देने के लिए जाना जाता है। अपनी सूंड में वे रत्न कुंभ थामे हुए हैं। वे सफलता और समृद्धि का वरदान देते हैं। कर्नाटक के बेलगाम में रेणुका येलम्मा मंदिर में भगवान का यह रूप विराजित है।
प्रेरणा - इस रूप में उनके साथ विराजित देवी के हाथों में विजय पताका है। वे विजयी होने के वरदान का प्रतीक हैं।
19. त्र्यक्षर गणपति - यह भगवान गणेश का ओम रूप है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश समाहित हैं। यानी वे सृष्टि के निर्माता, पालनहार और संहारक भी हैं। कर्नाटक के नारसीपुरा में गणेश के इस रूप का मंदिर है, जिसे तिरुमाकुदालु मंदिर के नाम से जाना जाता है।
प्रेरणा - इस रूप में उनकी आराधना आध्यात्मिक ज्ञान देती है। यह रूप स्वयं को पहचानने के लिए प्रेरित करता है।
20. क्षिप्रप्रसाद गणपति - इस रूप में गणेश इच्छाओं को शीघ्रता से पूरा करते हैं और उतनी ही तेजी से गलतियों की सजा भी देते हैं। वे पवित्र घास से बने सिंहासन पर बैठे हैं। तमिलनाडु के कराईकुडी और मैसूर में भगवान के इस रूप का मंदिर है।
प्रेरणा - गणेश जी का यह रूप सभी की शांित और समृद्धि के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।
21. हरिद्रा गणपति - इस रूप में गणेशजी हल्दी से बने हैं और राजसिंहासन पर बैठे हैं। इस रूप के पूजन से इच्छाएं पूरी होती हैं। कर्नाटक में श्रंगेरी में रिष्यश्रंग मंदिर में गणेशजी का यह रूप विराजित है। माना जाता है कि हल्दी से बने गणेश रखने से व्यापार में फायदा होता है।
प्रेरणा - इस रूप में गणेश प्रकृति और उसमें मौजूद निरोग रहने की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
22. एकदंत गणपति - इस रूप में गणेशजी का पेट अन्य रूपों के मुकाबले बड़ा है। वे अपने भीतर ब्रह्मांड समाए हुए हैं। वे रास्ते में आने वाली बाधाओं को हटाते हैं और जड़ता को दूर करते हैं। इस रूप का पूजन पूरे देश में व्यापक रूप से होता है।
प्रेरणा - इस रूप में गणेश अपनी कमियों पर ध्यान देने और खूबियों को निखारने के लिए प्रेरित करते हैं।
23. सृष्टि गणपति - गणेशजी का यह रूप प्रकृति की तमाम शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। उनका यह रूप ब्रह्मा के समान ही है। यहां वे एक बड़े मूषक पर सवार दिखाई देते हैं। तमिलनाडु के कुंभकोणम में अरुलमिगु स्वामीनाथन मंदिर में उनका यह रूप विराजित है।
प्रेरणा - यह रूप सही-गलत और अच्छे-बुरे में फर्क करने की प्रेरणा समझ देता है। इस रूप में गणेश निर्माण के प्रेरणा देते हैं।
24. उद्दंड गणपति - इस रूप में गणेश न्याय की स्थापना करते हैं। यह उनका उग्र रूप है, जिसके 12 हाथ हैं। उनकी शक्ति उनके साथ विराजित हैं। इस रूप में गणेश का देश में कहीं और मंदिर नहीं है। चमाराजनगर और नंजनगुड में गणपति के 32 रूपों की प्रतिमा मौजूद है।
प्रेरणा - गणेशजी का यह रूप सांसारिक मोह छोड़ने और बंधनों से मुक्त होने के लिए प्रेरित करता है।
25. ऋणमोचन गणपति - गणेशजी का यह रूप अपराधबोध और कर्ज से मुक्ति देता है। यह रूप भक्तों को मोक्ष भी देता है। वे श्वेतवर्ण हैं और उनके चार हाथ हैं। इनमें से एक हाथ में मीठा चावल है। इस रूप का मंदिर तिरुवनंतपुरम में है।
प्रेरणा - इस रूप में गणेशजी परिवार, पिता और गुरू के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए प्रेरित करते हैं।
26. ढुण्ढि गणपति - रक्तवर्ण गणेशजी के इस रूप में उनके हाथ में रुद्राक्ष की माला है। रुद्राक्ष उनके पिता शिव का प्रतीक माना जाता है। यानी इस रूप में वे पिता के संस्कारों को लिए विराजित हैं। उनके एक हाथ में लाल रंग का रत्न-पात्र भी है।
प्रेरणा - गणेशजी का यह रूप आध्यात्मिक विचारों के लिए प्रेरित करता है। जीवन को स्वच्छ बनाता है।
27. द्विमुख गणपति - गणेशजी के इस स्वरूप में उनके दो मुख हैं, जो सभी दिशाओं में देखने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करते हैं। दोनों मुखों में वे सूंड ऊपर उठाए हैं। इस रूप में उनके शरीर के रंग में नीले और हरे का मिश्रण है। उनके चार हाथ हैं।
प्रेरणा - यह रूप दुनिया और व्यक्ति के आंतरिक और बाहरी, दोनों रूपों को देखने के लिए प्रेरित करता है।
28. त्रिमुख गणपति - इस रूप में गणेशजी के तीन मुख और छह हाथ हैं। दाएं और बाएं तरफ के मुख की सूंड ऊपर उठी हुई है। वे स्वर्ण कमल पर विराजित हैं। उनका एक हाथ रक्षा की मुद्रा और दूसरा वरदान की मुद्रा में है। इस रूप में उनके एक हाथ में अमृत-कुंभ है।
प्रेरणा - गणेश जी का यह रूप भूत, वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखकर कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।
29. सिंह गणपति - इस रूप में गणेशजी शेर के रूप में विराजमान हैं। उनका मुख भी शेरों के समान है, साथ ही उनकी सूंड भी है। उनके आठ हाथ हैं। इनमें से एक हाथ वरद मुद्रा में है, तो दूसरा अभय मुद्रा में है।
प्रेरणा - गणेश जी का यह रूप निडरता और आत्मविश्वास का प्रतीक है, जो शक्ति और समृद्धि देता है।
30. योग गणपति - इस रूप में भगवान गणेश एक योगी की तरह दिखाई देते हैं। वे मंत्र जाप कर रहे हैं। उनके पैर योगिक मुद्रा में है। मान्यता है कि इस रूप की पूजा अच्छा स्वास्थ्य देती है और मन को प्रसन्न बनाती है। उनके इस रूप का रंग सुबह के सूर्य के समान है।
प्रेरणा - भगवान गणेश का रूप अपने भीतर छिपी शक्तियों को पहचानने के लिए प्रेरित करता है।
31. दुर्गा गणपति - भगवान गणेश का यह रूप अजेय है। वे शक्तिशाली हैं और हमेशा अंधकार पर विजय प्राप्त करते हैं। यहां वे अदृश्य देवी दुर्गा के रूप में हंै। इस रूप में वे लाल वस्त्र धारण करते हैं। यह रंग ऊर्जा का प्रतीक है। उनके हाथ में धनुष है।
प्रेरणा - भगवान गणेश का यह रूप विजय मार्ग में आने वाली बाधाओं को हटाने के लिए प्रेरित करता है।
32.संकष्टहरण गणपति - इस रूप मेंगणेश डर और दुख को दूर करते हैं। मान्यता है कि इनकी आराधना संकट के समय बल देती है। उनके साथ उनकी शक्ति भी मौजूद है। शक्ति के हाथ में भी कमल पुष्प है। गणेशजी का एक हाथ वरद मुद्रा में है।
प्रेरणा - यह रूप इस बात का प्रतीक है कि हर काम में संकट आएंगे, लेकिन उन्हें हटाने की शक्ति इंसान में है।
कथा
संपादित करेंप्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवती और पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहाँ आया और उसने अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया।
कौंच ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और काँपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख माँगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा 'तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरेगा।[1]
काँपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की-'दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे (हर युग में गणेशजी ने अलग-अलग अवतार लिए) तब तू उनका डिंक नामक वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे। सारे विश्व तब तुझें श्रीडिंकजी कहकर वंदन करेंगे।
गणेश को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिये गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शंकर आए और बोले "पुत्र यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो।" गणेश के रोकने पर प्रभु ने गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला इसीलिए सर्वप्रथम गणेश की पूजा होती है। गणेशजी को सिन्दूर और दूब चढ़ाने से विशेष फल मिलता है। इसके अतिरिक्त उन्हें गुड़ के मोदक और बूंदी के लड्डू , शामी वृक्ष के पत्ते तथा सुपारी भी प्रिय है। गणेश जी को लाल धोती तथा हरा वस्त्र चढ़ाने का भी विधान है।
विवाह
संपादित करेंशास्त्रों के अनुसार गणेश जी का विवाह भी हुआ था इनकी दो पत्नियां हैं[2] जिनका नाम रिद्धि और सिद्धि है तथा इनसे गणेश जी को दो पुत्र और एक पुत्री हैं जिनका नाम शुभ और लाभ नाम बताया जाता है,[2] यही कारण है कि शुभ और लाभ ये दो शब्द आपको अक्सर उनकी मूर्ति के साथ दिखाई देते हैं तथा ये सभी जन्म और मृत्यु में आते है, गणेश जी की पूजा करने से केवल सिद्धियाँ प्राप्त होती है लेकिन इनकी भक्ति से पूर्ण मोक्ष संभव नहीं है। गणेश जी के इन दो पुत्रों के अलावा एक पुत्री भी हैं वे संतोषी माता के नाम से विख्यात हैं।
श्री गणेश आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।। |
एकदंत, दयावंत, चार भुजाधारी।
मस्तक सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी। पान चढ़ें, फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा। लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा। |
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।। |
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।। दीनन की लाज राखो, शम्भु-सुत वारी। कामना को पूरा करो, जग बलिहारी।। जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।। सूर श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा । माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।। |
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।। |
गणेश चालीसा
संपादित करें॥ दोहा ॥ जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल । विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ॥
जै गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायका बुद्धि विधाता ॥
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥
राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता । गौरी लालन विश्व-विख्याता ॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे । मुषक वाहन सोहत द्वारे ॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी । अति शुची पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ॥ 10 ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला । बिना गर्भ धारण यहि काला ॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम रूप भगवाना ॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै । पालना पर बालक स्वरूप हवै ॥
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥ 20 ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहयऊ ॥
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा । बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी । सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा । शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटी चक्र सो गज सिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ॥ 30 ॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई । रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै । अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ॥ 38 ॥
॥ दोहा ॥ श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान । नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश । पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ॥
बारह नाम
संपादित करेंगणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुराण में पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि में आया है।
- पिता- भगवान शंकर
- माता- भगवती पार्वती
- भाई- श्री कार्तिकेय, अय्यप्पा (बड़े भाई)
- बहन- अशोकसुन्दरी , मनसा देवी , देवी ज्योति ( बड़ी बहन )
- पत्नी- दो (१) ऋद्धि (२) सिद्धि (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
- पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ
- पुत्री - संतोषी माता
- प्रिय भोग (मिष्ठान्न)- मोदक, लड्डू
- प्रिय पुष्प- लाल रंग के
- प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब), शमी-पत्र
- अधिपति- जल तत्व के
- मुख्य अस्त्र - परशु , रस्सी
- वाहन - मूषक
- प्रिय वस्त्र - हरा और लाल
भगवान गणेश के 108 नाम
संपादित करें1. बालगणपति : सबसे प्रिय बालक
2. भालचन्द्र : जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो
3. बुद्धिनाथ : बुद्धि के भगवान
4. धूम्रवर्ण : धुंए को उड़ाने वाले
5. एकाक्षर : एकल अक्षर
6. एकदन्त: एक दांत वाले
7. गजकर्ण : हाथी की तरह आंखों वाले
8. गजानन: हाथी के मुख वाले भगवान
9. गजवक्र : हाथी की सूंड वाले
10. गजवक्त्र: हाथी की तरह मुंह है
11. गणाध्यक्ष : सभी जनों के मालिक
12. गणपति : सभी गणों के मालिक
13. गौरीसुत : माता गौरी के बेटे
14. लम्बकर्ण : बड़े कान वाले देव
15. लम्बोदर : बड़े पेट वाले
16. महाबल : अत्यधिक बलशाली
17. महागणपति : देवादिदेव
18. महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान
19. मंगलमूर्ति : सभी शुभ कार्यों के देव
20. मूषकवाहन : जिनका सारथी मूषक है
21. निदीश्वरम : धन और निधि के दाता
22. प्रथमेश्वर : सब के बीच प्रथम आने वाले
23. शूपकर्ण : बड़े कान वाले देव
24. शुभम : सभी शुभ कार्यों के प्रभु
25. सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी
26. सिद्दिविनायक : सफलता के स्वामी
27. सुरेश्वरम : देवों के देव।
28. वक्रतुण्ड : घुमावदार सूंड वाले
29. अखूरथ : जिसका सारथी मूषक है
30. अलम्पता : अनन्त देव।
31. अमित : अतुलनीय प्रभु
32. अनन्तचिदरुपम : अनंत और व्यक्ति चेतना वाले
33. अवनीश : पूरे विश्व के प्रभु
34. अविघ्न : बाधाएं हरने वाले।
35. भीम : विशाल
36. भूपति : धरती के मालिक
37. भुवनपति: देवों के देव।
38. बुद्धिप्रिय : ज्ञान के दाता
39. बुद्धिविधाता : बुद्धि के मालिक
40. चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले
41. देवादेव : सभी भगवान में सर्वोपरि
42. देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक
43. देवव्रत : सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले
44. देवेन्द्राशिक : सभी देवताओं की रक्षा करने वाले
45. धार्मिक : दान देने वाले
46. दूर्जा : अपराजित देव
47. द्वैमातुर : दो माताओं वाले
48. एकदंष्ट्र: एक दांत वाले
49. ईशानपुत्र : भगवान शिव के बेटे
50. गदाधर : जिनका हथियार गदा है
51. गणाध्यक्षिण : सभी पिंडों के नेता
52. गुणिन: सभी गुणों के ज्ञानी
53. हरिद्र : स्वर्ण के रंग वाले
54. हेरम्ब : मां का प्रिय पुत्र
55. कपिल : पीले भूरे रंग वाले
56. कवीश : कवियों के स्वामी
57. कीर्ति : यश के स्वामी
58. कृपाकर : कृपा करने वाले
59. कृष्णपिंगाश : पीली भूरी आंख वाले
60. क्षेमंकरी : माफी प्रदान करने वाला
61. क्षिप्रा : आराधना के योग्य
62. मनोमय : दिल जीतने वाले
63. मृत्युंजय : मौत को हराने वाले
64. मूढ़ाकरम : जिनमें खुशी का वास होता है
65. मुक्तिदायी : शाश्वत आनंद के दाता
66. नादप्रतिष्ठित : जिन्हें संगीत से प्यार हो
67. नमस्थेतु : सभी बुराइयों पर विजय प्राप्त करने वाले
68. नन्दन: भगवान शिव के पुत्र
69. सिद्धांथ: सफलता और उपलब्धियों के गुरु
70. पीताम्बर : पीले वस्त्र धारण करने वाले
71. प्रमोद : आनंद 72. पुरुष : अद्भुत व्यक्तित्व
73. रक्त : लाल रंग के शरीर वाले
74. रुद्रप्रिय : भगवान शिव के चहेते
75. सर्वदेवात्मन : सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकर्ता
76) सर्वसिद्धांत : कौशल और बुद्धि के दाता
77. सर्वात्मन : ब्रह्मांड की रक्षा करने वाले
78. ओमकार : ओम के आकार वाले
79. शशिवर्णम : जिनका रंग चंद्रमा को भाता हो
80. शुभगुणकानन : जो सभी गुणों के गुरु हैं
81. श्वेता : जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध हैं
82. सिद्धिप्रिय : इच्छापूर्ति वाले
83. स्कन्दपूर्वज : भगवान कार्तिकेय के भाई
84. सुमुख : शुभ मुख वाले
85. स्वरूप : सौंदर्य के प्रेमी
86. तरुण : जिनकी कोई आयु न हो
87. उद्दण्ड : शरारती
88. उमापुत्र : पार्वती के पुत्र
89. वरगणपति : अवसरों के स्वामी
90. वरप्रद : इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता
91. वरदविनायक: सफलता के स्वामी
92. वीरगणपति : वीर प्रभु
93. विद्यावारिधि : बुद्धि के देव
94. विघ्नहर : बाधाओं को दूर करने वाले
95. विघ्नहत्र्ता: विघ्न हरने वाले
96. विघ्नविनाशन : बाधाओं का अंत करने वाले
97. विघ्नराज : सभी बाधाओं के मालिक
98. विघ्नराजेन्द्र : सभी बाधाओं के भगवान
99. विघ्नविनाशाय : बाधाओं का नाश करने वाले
100. विघ्नेश्वर : बाधाओं के हरने वाले भगवान
101. विकट : अत्यंत विशाल
102. विनायक : सब के भगवान
103. विश्वमुख : ब्रह्मांड के गुरु
104. विश्वराजा : संसार के स्वामी
105. यज्ञकाय : सभी बलि को स्वीकार करने वाले
106. यशस्कर : प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107. यशस्विन : सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव
108. योगाधिप : ध्यान के प्रभु
ज्योतिष के अनुसार
संपादित करेंज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेशजी को केतु के रूप में जाना जाता है। केतु एक छाया ग्रह है, जो राहु नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध में रहता है, बिना विरोध के ज्ञान नहीं आता है और बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं है। गणेशजी को मानने वालों का मुख्य प्रयोजन उनको सर्वत्र देखना है, गणेश अगर साधन है तो संसार के प्रत्येक कण कण में वह विद्यमान है। उदाहरण के लिये तो जो साधन है वही गणेश है, जीवन को चलाने के लिये अनाज की आवश्यकता होती है, जीवन को चलाने का साधन अनाज है, तो अनाज गणेश है। अनाज को पैदा करने के लिये किसान की आवश्यकता होती है, तो किसान गणेश है। किसान को अनाज बोने और निकालने के लिये बैलों की आवश्यक्ता होती है तो बैल भी गणेश है। अनाज बोने के लिये खेत की आवश्यक्ता होती है, तो खेत गणेश है। अनाज को रखने के लिये भण्डारण स्थान की आवश्यक्ता होती है तो भण्डारण का स्थान भी गणेश है। अनाज के घर में आने के बाद उसे पीस कर चक्की की आवश्यकता होती है तो चक्की भी गणेश है। चक्की से निकालकर रोटी बनाने के लिये तवे, चीमटे और रोटी बनाने वाले की आवश्यक्ता होती है, तो यह सभी गणेश है। खाने के लिये हाथों की आवश्यक्ता होती है, तो हाथ भी गणेश है। मुँह में खाने के लिये दाँतों की आवश्यकता होती है, तो दाँत भी गणेश है। कहने के लिये जो भी साधन जीवन में प्रयोग किये जाते वे सभी गणेश है, अकेले शंकर पार्वती के पुत्र और देवता ही नही अपितु हमारे हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य होने का स्थान प्राप्त है, बिना इनकी आराधना के कोई भी हिन्दू धार्मिक कार्य पूर्ण नही होता है |
प्रिय वस्तुएं
संपादित करें- सिन्दूर - सिंधु नामक दैत्य का वध श्री गणेश जी ने किया था उसके शरीर के रक्त को उन्होंने अपने शरीर पर लेप की तरह लगाया तभी से गणेश को सिन्दूर चढ़ाया जाता है।
- दूर्वा अथवा दूब - अनलासुर नामक दानव को निगलने के बाद श्री गणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी। सभी उपचारों के बाद भी वे ठीक नहीं हुए जिसके बाद कश्यप मुनि ने उन्हें २१ गाठें बनाकर दूर्वा खाने को दी उसके बाद से ही गणेश जी ने दूर्वा को अपनी प्रिय वस्तु बना लिया।
- लाल धोती और हरा वस्त्र
- शमी पत्र
- लड्डू
- गुड़ के मोदक
- केसर दूध
- केला
संसार में गणेश
संपादित करेंदीर्घा
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "गणेश चतुर्थी व्रत की कथा जुड़ी है चंद्रदेव से, इस दिन चंद्र दर्शन करने की है परंपरा". Dainik Bhaskar. 2020-03-11. अभिगमन तिथि 2020-08-02.
- ↑ अ आ नवभारतटाइम्स.कॉम (2019-08-29). "जानिए क्यों हुए थे गणेशजी के दो विवाह और रिद्धि सिद्धि कैसे बनीं उनकी पत्नी". नवभारत टाइम्स. अभिगमन तिथि 2020-08-04.