कुबेर
कुबेर (संस्कृत : कुबेर ,इंग्रजी : Kubera ) एक हिन्दू पौराणिक पात्र हैं जो धन के स्वामी (धनेश) व धनवानता के देवता माने जाते हैं। वे यक्षों के राजा भी हैं। वे उत्तर दिशा के दिक्पाल हैं और लोकपाल (संसार के रक्षक) भी हैं।
कुबेर | |
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धन और ऐश्वर्य के देवता | |
कुबेर | |
अन्य नाम | धनेश्वर , वैश्रावण , भद्राकान्त , देववर्णिणीनन्दन , यक्षेश्वर धनदाय आदि |
संस्कृत लिप्यंतरण | Kubēra |
संबंध | देवता, लोकपाल, दिकपाल |
निवासस्थान | लंका और बाद में अलकापुरी |
मंत्र | ॐ श्री कुबेराय नमः |
अस्त्र | गदा |
जीवनसाथी | भद्रा |
माता-पिता |
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संतान | नलकुबेर, मणिभद्र, गंधमदन |
सवारी | वराह (देशी सुअर), नकुल (नेवला) |
। इनके सौतेले छोटे भाई रावण , कुम्भकर्ण और विभीषण थे। इनमें रावण ही बाद में असुरों का सम्राट बना।
भद्रा
संपादित करेंभद्रा ,सूर्य देवता और छायदेवी की पुत्री थीं। वह बहुत सुन्दर थीं। धनवनता के देवता कुबेर ने उनसे विवाह किया।[1]
रामायण में कुबेर
संपादित करेंरामायण में कुबेर भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने हिमालय पर्वत पर तप किया। तप के अंतराल में शिव तथा पार्वती दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चला गया। वह घोर तप या तो शिव ने किया था या फिर कुबेर ने किया, अन्य कोई भी देवता उसे पूर्ण रूप से संपन्न नहीं कर पाया था। कुबेर से प्रसन्न होकर शिव ने कहा-'तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: तुम एकाक्षीपिंगल कहलाओंगे।
कुबेर ने रावण के अनेक अत्याचारों के विषय में जाना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का संदेश दिया कि रावण अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़ दे। रावण के नंदनवन उजाड़ने के कारण सब देवता उसके शत्रु बन गये हैं। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी खड्ग से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर का यह सब जानकर बहुत बुरा लगा। रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष बल से लड़ते थे और राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। रावण ने माया से अनेक रूप धारण किये तथा कुबेर के सिर पर प्रहार करके उसे घायल कर दिया और बलात उसका पुष्पक विमान ले लिया।
विश्वश्रवा की दो पत्नियां थीं। पुत्रों में कुबेर सबसे बड़े थे। शेष रावण, कुंभकर्ण और विभीषण सौतेले भाई थे। उन्होंने अपनी मां से प्रेरणा पाकर कुबेर का पुष्पक विमान लेकर लंका पुरी तथा समस्त संपत्ति छीन ली। कुबेर अपने पितामह के पास गये। उनकी प्रेरणा से कुबेर ने शिवाराधना की। फलस्वरूप उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ। गौतमी के तट का वह स्थल धनदतीर्थ नाम से विख्यात है। [2]
सन्दर्भ सूची
संपादित करें- ↑ "Bhadra", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2019-09-14, अभिगमन तिथि 2019-09-23
- ↑ "कुबेर - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर". bharatdiscovery.org. मूल से 20 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2019-09-23.