शताक्षी देवी
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माँ शताक्षी देवी जगतजननी जगदंबा आदिशक्ति भुवनेश्वरी माता का ही एक स्वरूप है। प्राचीन काल मे दुर्गमासुर नामक महादैत्य के उपद्रव से तीनों लोको मे हाहाकार मच गया और सौ वर्षों तक जल की वर्षा नही हुई। संपूर्ण पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड गया। तब देवता महादेवी का ध्यान, जप, पूजन और स्तुति करने के विचार से हिमालय पर्वत पर गये। देवी भुवनेश्वरी के प्रकट होने पर स्तुति करते हुए बोले: महेशानी घोर संकट उपस्थित हैं तुम इससे हमारी रक्षा करो। तब देवी ने अपने अद्भुत रूप के दर्शन कराये जिनकी देह पर सौ आंखे थी। माता पार्वती ये स्वरूप नीले रंग का था और आंखे नीलकमल के सदृश्य थी दोनो स्तन पर्वत के समान थे। चारों भुजाओं मे कमल धनुष बाण और शाक- समूह धारण किये हुए थी। माता के सौ नेत्रों से नौ दिन तक अश्रुवृष्टि हुई और संपूर्ण धरातल हरी- भरी हो गई। नदियाँ, तालाब आदि जल से परिपूर्ण हो गये। सौ नयनों से देखने के कारण देवी का स्वरूप शताक्षी देवी नाम से सदा के लिए अमर हो गया। देवी शताक्षी ने उसके बाद दिव्य रूप धारण किया और अपने शरीर से विभिन्न कंदमूल, शाक, फल इत्यादि प्रकट कर सब जीवो की बुभुक्षा को शांत किया और शाकम्भरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। उसके बाद मा पार्वती ने दुर्गमासुर दैत्य का वध कर दिया और दुर्गा देवी के नाम से अमर हो गई। वास्तव मे लोक प्रसिद्ध शताक्षी, शाकम्भरी तथा दुर्गा ये एक ही देवी के नाम है। माता का प्रख्यात सिद्धपीठ उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर से ४० किमी दूर शिवालिक पर्वतमाला के वनाच्छादित क्षेत्र मे स्थित है। जो भगवती शताक्षी, शाकम्भरी का सिद्ध स्थान है।
देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं (सावित्री, लक्ष्मी एव पार्वती से अलग)। मुख्य रूप उनका "गौरी" है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप। उनका सबसे भयानक रूप "काली" है, अर्थात काला रूप। विभिन्न रूपों में दुर्गा भारत और नेपाल के कई मन्दिरों और तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं।