चार प्रसिद्ध युगों में सत्ययुग, सद्युग (सत्+युग) या कृतयुग को प्रथम माना गया है।[1] यद्यपि प्राचीनतम वैदिक ग्रंथों में सद्युग, त्रेतायुग आदि युगविभाग का निर्देश स्पष्टतः उपलब्ध नहीं होता, तथापि स्मृतियों एवं विशेषत: पुराणों में चार युगों का विस्तृत प्रतिपादन मिलता है।

पुराणादि में सत्ययुग के विषय में निम्नोक्त विवरण मिलता है -

चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि प्रतिपदा रविवार को इस युग की उत्पत्ति हुई थी। इसका परिमाण 17,28,000 वर्ष है। इस युग में भगवान के मत्स्य, कूर्म, वराह और नृसिंह ये चार अवतार हुए थे। इस काल में स्वर्णमय व्यवहारपात्रों की प्रचुरता थी। मनुष्य अत्यन्त दीर्घाकृति एवं अतिदीर्घ आयुवान् होते थे। इस युग का प्रधान तीर्थ पुष्कर था।

इस युग में ज्ञान, ध्यान या तप का प्राधान्य था। प्रत्येक प्रजा पुरुषार्थसिद्धि कर कृतकृत्य होती थी, अत: यह "कृतयुग" कहलाता है। धर्म चतुष्पाद (सर्वत: पूर्ण) था। मनु का धर्मशास्त्र इस युग में एकमात्र अवलंबनीय शास्त्र था। महाभारत में इस युग के विषय में यह विशिष्ट मत मिलता है कि कलियुग के बाद कल्कि द्वारा इस युग की पुन: स्थापना होगी (वन पर्व 191/1-14)। वन पर्व 149/11-125) में इस युग के धर्म का वर्ण द्रष्टव्य है।

ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं:[1][2]

चारों युग
4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष)सद्युग
3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) त्रेता युग
2 चरण (864,000 सौर वर्ष)द्वापर युग
1 चरण (432,000 सौर वर्ष)कलि युग

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "हिंदू सनातन धर्म: क्या है चार युग?". वेबदुनिया. २३ अक्टूबर २०१०. मूल से 11 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २३ जून २०१४.
  2. बाबा साहेब अम्बेडकर. हिन्दू धर्म की रिडल. गौतम बुक सेंटर. पृ॰ 23. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187733836.