"अमरकांत": अवतरणों में अंतर
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== साहित्यिक वैशिष्ट्य ==
उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन की पक्षधरता का चित्रण मिलता है। वे भाषा की [[सृजनात्मकता]] के प्रति सचेत थे। उन्होंने [[काशीनाथ सिंह]] से कहा था- "बाबू साब, आप लोग साहित्य में किस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं? भाषा, साहित्य और समाज के प्रति आपका क्या कोई दायित्व नहीं? अगर आप लेखक कहलाए जाना चाहते हैं तो कृपा करके सृजनशील भाषा का ही प्रयोग करें।"<ref name="rk6"/>
अपनी रचनाओं में अमरकांत [[व्यंग्य]] का खूब प्रयोग करते हैं। 'आत्म कथ्य' में वे लिखते हैं- "'' उन दिनों वह मच्छर रोड स्थित ' मच्छर भवन ' में रहता था। सड़क और मकान का यह नूतन और मौलिक नामकरण उसकी एक बहन की शादी के
उनकी कहानियों में उपमा के भी अनूठे प्रयोग मिलते हैं, जैसे, ' वह लंगर की तरह कूद पड़ता ', ' बहस में वह इस तरह भाग लेने लगा, जैसे भादों की अँधेरी रात में कुत्ते भौंकते हैं ', ' उसने कौए की भाँति सिर घुमाकर शंका से दोनों ओर देखा। '' आकाश एक स्वच्छ नीले तंबू की तरह तना था। '' लक्ष्मी का मुँह हमेशा एक कुल्हड़ की तरह फूला रहता है। ' ' दिलीप का प्यार फागुन के अंधड़ की तरह बह रहा था' आदि- आदि ।''<ref>रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २0१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-८ </ref>
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