ओपेक यानी तेल निर्यातक देशों के संगठन की स्थापना 1960 में हुई थी. संगठन में शामिल तेल उत्पादक देश ये सोच कर साझा मंच पर आए कि वो आपूर्ति पर नियंत्रण बना कर क़ीमतें मनमुताबिक तय कर पाएंगे.
लेकिन पिछले कुछ दशकों में ओपेक के लिए स्थितियाँ काफी बदल चुकी हैं. वर्ष 2000 में ओपेक ने 22 से 28 डॉलर प्रति बैरल का भाव तय किया था लेकिन मौजूदा क़ीमतें इससे लगभग साढ़े छह गुना बढ़ चुकी हैं.
ओपेक के सदस्य देश
• ईरान
• इराक़
• कुवैत
• सऊदी अरब
• वेनेज़ुएला
• क़तर
• इंडोनेशिया
• लीबिया
• संयुक्त अरब अमीरात
• अल्जीरिया
• नाईजीरिया
• इक्वाडोर
• अंगोला
तय ये हुआ था कि क़ीमत 22 डॉलर से नीचे जाने पर सदस्य देश उत्पादन में कटौती करेंगे और क़ीमत 28 डॉलर से ऊपर निकलने पर उत्पादन बढ़ाया जाएगा.
लेकिन ओपेक से बाहर रहे तेल उत्पादक देशों के लिए ऐसा करना बाध्य नहीं है. इसलिए वर्ष 2005 में ओपेक ने मूल्य तय करने की परंपरा से ही तौबा कर ली.
ओपेक देशों का मुख्य निर्यात ही कच्चा तेल है और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इसका मूल्य सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था पर असर डालता है.
उदाहरण वर्ष 1998 का है जब तेल क़ीमतें दस डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गईं और ओपेक देशों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई.