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जैन धर्म भारतकी श्रमण परम्परा से निकला धर्मऔर दर्शनहै। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो ' जिन' के अनुयायी हों। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' यानी जीतना। 'जिन' अर्थात जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं 'जिन'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान का धर्म। वस्त्र-हीन बदन, शुद्ध शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी एक जैन-अनुयायी की पहली पहचान है। यहाँतक कि जैन धर्म के अन्य लोग भी शुद्ध शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करते हैं तथा अपने धर्म के प्रति बड़े सचेत रहते हैं।
प्राचीनता
जैन धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि उनका धर्म 'अनादि' [1]और सनातन है। सामान्यत: लोगों में यह मान्यता है कि जैन सम्प्रदाय का मूल उन प्राचीन पंरपराओं में रहा होगा, जो आर्योंके आगमन से पूर्व इस देश में प्रचलित थीं। किंतु यदि आर्यों के आगमन के बाद से भी देखा जाये तो ऋषभदेवऔर अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परंपरा वेदोंतक पहुँचती है। महाभारतके युद्ध के समय इस संप्रदाय के प्रमुख नेमिनाथथे, जो जैन धर्म में मान्य तीर्थंकरहैं। ई. पू. आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथहुए, जिनका जन्म काशी(वर्तमान बनारस) में हुआ था। काशी के पास ही 11वें तीर्थंकर