"रामभद्राचार्य": अवतरणों में अंतर
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{{Cquote|केवल दूध और फलों का आहार लेते हुए छः महीने तक राम नाम जपो। तुलसीदास कहते हैं कि ऐसा करने से सारे सुन्दर मंगल और सिद्धियाँ करतलगत हो जाएँगी।}}
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१९८३ ई में उन्होंने चित्रकूट की [[:en:Chitrakuta#Sphatic Shila|स्फटिक शिला]] के निकट अपना द्वितीय षाण्मासिक पयोव्रत अनुष्ठान सम्पन्न किया।<ref name="dinkarlaterlife"/> यह पयोव्रत स्वामी रामभद्राचार्य के जीवन का एक नियमित व्रत बन गया है। २००२ ई में अपने षष्ठ षाण्मासिक पयोव्रत अनुष्ठान में उन्होंने श्रीभार्गवराघवीयम् नामक संस्कृत महाकाव्य की रचना की।
[[चित्र:JagadguruRamabhadracharya002.jpg|thumb|right| अक्टूबर २५, २००९ के दिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट स्थित तुलसी पीठ में संत तुलसीदास की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए]]
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