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'''शेखावाटी''' [[राजस्थान|उत्तर-पूर्वी राजस्थान]] का एक अर्ध-शुष्क ऐतिहासिक क्षेत्र है। [[राजस्थान]] के वर्तमान [[सीकर]] और [[झुंझुनू]] जिले [[शेखावाटी]] के नाम से जाने जाते है इस क्षेत्र पर आजादी से पहले [[शेखावत]] क्षत्रियों का [[शासन]] होने के कारण इस क्षेत्र का नाम शेखावाटी प्रचलन में आया। देशी राज्यों के [[भारतीय]] संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा, [[खंडेला]], [[सीकर]], [[खेतडी,]] बिसाऊ, सुरजगढ, [[नवलगढ़]],[[मंडावा]], मुकन्दगढ़, दांता,खुड,[[खाचरियाबास]],अलसीसर,मलसीसर,[[लक्ष्मणगढ]],[[बीदसर]] आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे। वर्तमान शेखावाटी क्षेत्र पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में [[विश्व]] [[मानचित्र]] में तेजी से उभर रहा है, यहाँ [[पिलानी]] और [[लक्ष्मणगढ]] के भारत प्रसिद्ध [[शिक्षा]] केंद्र है। वही नवलगढ़, फतेहपुर, अलसीसर, मलसीसर, [[लक्ष्मणगढ]], मंडावा आदि जगहों पर बनी प्राचीन बड़ी-बड़ी [[हवेलियाँ]] अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है जिन्हें देखने देशी-विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है। पहाडों में सुरम्य जगहों बने [[जीण माता मंदिर]] , [[शाकम्बरीदेवी]] का मन्दिर, लोहार्ल्गल के अलावा खाटू में बाबा [[खाटूश्यामजी]] का (बर्बरीक) का मन्दिर,[[सालासर]] में [[हनुमान जी]] का मन्दिर आदि स्थान धार्मिक आस्था के ऐसे केंद्र है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनार्थ आते है । इस शेखावाटी प्रदेश ने जहाँ देश के लिए अपने प्राणों को बलिदान करने वाले देशप्रेमी दिए वहीँ उद्योगों व व्यापार को बढ़ाने वाले सैकडो उद्योगपति व व्यापारी दिए जिन्होंने अपने उद्योगों से लाखों लोगों को रोजगार देकर देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दिया। [[भारतीय सेना]] को सबसे ज्यादा सैनिक देने वाला झुंझुनू जिला शेखावाटी का ही भाग है ।
=== भूगोल ===
[[चित्र:Harshnath.jpg|thumb|right|pxl300|]]
राजस्थान का मरुभूमि वाला पुर्वोतरी एवं पश्चिमोतरी विशाल भूभाग वैदिक सभ्यता के उदय का उषा काल माना जाता है। हजारों वर्ष पूर्व भू-गर्भ में विलुप्त वैदिक नदी सरस्वती यहीं पर प्रवाह मान थी , जिसके तटों पर तपस्यालीन आर्य ऋषियों ने वेदों के सूत्रों की सरंचना की थी। सिन्धुघाटी सभ्यता के अवशेषों एवं विभिन्न संस्कृतियों के परस्पर मिलन,विकास उत्थान और पतन की रोचक एवं गौरव गाथाओं को अपने विशाल आँचल में छिपाए यह मरुभूमि भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण अध्याय की श्र्ष्ठा और द्रष्टा रही है। जनपदीय गणराज्यों की जन्म स्थली और क्रीडा स्थली बने रहने का श्रेय इसी मरुभूमि को रहा है। इस मरुभूमि ने ऐसे विशिष्ठ पुरुषों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने कार्यकलापों से भारतीय इतिहास को प्रभावित किया है।
 
इसी मरुभूमि का एक भाग प्रमुख भाग शेखावाटी प्रदेश है जो विशालकाय [[मरुस्थल]] के पुर्वोतरी अंचल में फैला हुआ है। इसका शेखावाटी नाम विगतकालीन पॉँच शताब्दियों में इस भू-भाग पर शासन करने वाले शेखावत क्षत्रियों के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है। उससे से पूर्व अनेक प्रांतीय नामो से इस प्रदेश की प्रसिद्दि रही है। इसी भांति अनेक शासक कुलों ने समय-समय पर यहाँ राज्य किया है।
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<ref>डा.उदयवीर शर्मा, इतिहासकार</ref>
=== २ ===
[[शेखावत]] संघ ने,जो [[आमेर]] राजवंश से उदभूत है , काल और परिस्थितियों के प्रभाव से अपने पैत्रिक राज्य [[आमेर]] के बराबर सम्मान और शक्ति संचय कर ली है।
यधपि इस संघ का न कोई लिखित कानून है और न इसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कोई प्रधानाध्यक्ष है। किन्तु समान हित की भावना से प्रेरित यह संघ अपना अस्तित्व बनाये रखने में सदैव समर्थ रहा है। फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिय कि इस संघ में कोई नीति-कर्म नहीं है। जब कभी एक छोटे से छोटे सामंत के स्वत्वधिकारों के हनन का प्रश्न उपस्थित हुआ तो छोटे-बड़े सभी शेखावत सामंत सरदारों ने उदयपुर नामक अपने प्रसिद्ध स्थान पर इक्कठे होकर स्वत्व-रक्षा का समाधान निकाला है।
<ref>कर्नल जेम्स टोड</ref>
=== ३ ===
 
जिस काल का हम वर्णन कर रहे है,शेखावाटी प्रदेश ठिकानों (छोटे उप राज्यों ) का एक समूह था,जिसके उत्तर पश्चिम में बीकानेर,उत्तर पूर्व में लोहारू और झज्जर , दक्षिण पूर्व में जयपुर और पाटन तथा दक्षिण पश्चिम में [[जोधपुर]] राज्य था। थार्टन के अनुसार शेखावाटी का क्षेत्रफल ३८९० वर्ग मील है जो भारतीय जनगणना रिपोर्ट १९४१ के आंकडों के लगभग बराबर है भारतीय जनगणना रिपोर्ट १९४१ के अनुसार शेखावाटी का क्षेत्रफल ३५८० वर्ग मील है। कर्नल टोड ने शेखावाटी का क्षेत्रफल ५४०० वर्ग मील होने का अनुमान लगाया है जो अतिशयोक्तिपूर्ण एवं अविश्वसनीय है।
अपनी अन-उपजाऊ प्राकृतिक स्थिति के कारण शेखावाटी सदैव से योद्धाओं,साहसिकों और दुर्दांत डाकुओं की भूमि रही है। शेखावाटी जयपुर राज्य में सदैव तूफान का केंद्र बनी रही और समय-समय पर [[जयपुर]] के आंतरिक शासन में ब्रिटिश हस्तेक्षेप के लिए अवसर जुटाती रही।
<ref>एच.सी.बत्रा, M.A. इतिहास</ref>