"सत्येन्द्रनाथ बोस": अवतरणों में अंतर

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== अन्य जानकारी ==
 
कलकत्ता विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में विज्ञान के नए विषयों पर लिखी पुस्तकें नहीं थीं। बोस और साहा को डॉ.डॉ॰ ब्रुह्ल के बारे में पता चला जिनके पास ये पुस्तकें थीं। डॉ.डॉ॰ ब्रुह्ल आस्ट्रिया के रहने वाले थे। उनका विषय जीव-विज्ञान था। आस्ट्रिया में स्वास्थ्य खराब रहने की वजह से चिकित्सकों ने सलाह दी वे ऐसी जगह जाकर रहें जहाँ का मौसम गर्म हो। इसलिए भारतीय पौधों का अध्ययन करने के लिए डॉ.डॉ॰ ब्रुह्ल भारत आ गए थे। कलकत्ता में रहते हुए डॉ.डॉ॰ ब्रुह्ल का विवाह हो गया और उन्हें नौकरी आवश्यक हो गई। इस प्रकार वे बंगाल कॉलेज में शिक्षक बन गए। डॉ.डॉ॰ ब्रुह्ल का विषय वनस्पति विज्ञान था परंतु वह भौतिकी पढ़ाने का कार्य अच्छी तरह से करते थे। डॉ.डॉ॰ ब्रुह्ल के पास बहुत सारी अच्छी पुस्तकें थीं जो बोस और साहा ने पढ़ने के लिए उनसे प्राप्त कीं।
 
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सन् 1921 में ढाका विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। कुलपति डॉ.डॉ॰ हारटॉग ढाका विश्वविद्यालय में अच्छे विभागों की स्थापना करना चाहते थे। उन्होंने भौतिकी विभाग में रीडर के लिए बोस को चुना। सन् 1924 में साहा ढाका आए जोकि उनका गृहनगर था और अपने मित्र बोस से भेंट की। बोस ने साहा को बताया कि वह कक्षा में प्लांक के विकिरण नियम को पढ़ा रहे हैं, परंतु इस नियम के लिए पुस्तकों में दी गई व्युत्पत्ति से वे सहमत नही हैं। इस पर साहा ने आइंस्टाइन और प्लांक के द्वारा हाल ही में किए गए कार्यो के प्रति बोस का ध्यान आकर्षित किया। अब बोस ने अपने तरीके से प्लांक के नियम की नयी व्युत्पत्ति दी। बोस के इस तरीके ने भौतिक विज्ञान को एक बिलकुल ही नयी अवधारणा से परिचित कराया। बोस ने इस शोधपत्र को 'फिलासॉफिकल मेगजीन' में प्रकाशन के लिए भेजा परंतु इस बार उनके शोधपत्र को अस्वीकार कर दिया गया, जिससे बोस हतोत्साहित हुए क्योंकि उनका मानना था कि यह व्युत्पत्ति उनके पहले के कार्यों कहीं ज्यादा तार्किक थी। फिर बोस ने साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने इस शोधपत्र को आइंस्टाइन के पास बर्लिन भेज, इस अनुरोध के साथ कि वे इस शोधपत्र को पढ़ें एवं अपनी टिप्पणी दें और यदि वे इसे प्रकाशन योग्य समझें तो जर्मन जर्नल 'Zeitschrift fur Physik' में प्रकाशन की व्यवस्था करें। इस शोधपत्र को आइंस्टाइन ने स्वयं जर्मन भाषा में अनूदित किया तथा अपनी टिप्पणी के साथ 'Zeitschrift fur Physik' में अगस्त 1924 में प्रकाशित करवाया। आइंस्टाइन ने इस शोधपत्र के सम्बंध में एक पोस्टकार्ड भी भेजा था जो बोस के लिए बहुत अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ।
 
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सत्येन्द्र नाथ बोस ललित कला और संगीत प्रेमी थे। बोस के मित्र बताते थे कि उनके कमरे में किताबों, आइंस्टीन, रमन आदि वैज्ञानिकों के चित्र के अलावा एक वाद्य यंत्र यसराज हमेशा रहता था। बोस यसराज और बांसुरी बजाया करते थे। परंतु यसराज तो किसी विशेषज्ञ की तरह बजाते थे। बोस के संगीत प्रेम का दायरा लोक संगीत, भारतीय संगीत से लेकर पाश्चात् संगीत तक फैला हुआ था। प्रो.प्रो॰ धुरजटी दास बोस के मित्र थे। जब प्रो.प्रो॰ दास भारतीय संगीत पर पुस्तक लिख रहे थे तब बोस ने उन्हें काफी सुझाव दिए थे। प्रो.प्रो॰ दास के अनुसार बोस यदि वैज्ञानिक नही होते तो वह एक संगीत गुरू होते।
निसंदेह आइंस्टाइन ही बोस के जीवन की प्रेरणा थे। कहते हैं जब बोस को आइंस्टाइन की मृत्यु का समाचार मिला था तो वह भावुक होकर रो पड़े थे। आइंस्टाइन विज्ञान के क्षेत्र में एक महानायक के समान थे और बोस उनमें ईश्वर की तरह श्रद्धा रखते थे।
सन् 1974 में बोस के सम्मान में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें देश-विदेश के कई वैज्ञानिक सम्मिलित हुए। इस अवसर उन्होंने कहा "यदि एक व्यक्ति अपने जीवन के अनेक वर्ष संघर्ष में व्यतीत कर देता है और अंत में उसे लगता है कि उसके कार्य को सराहा जा रहा है तो फिर वह व्यक्ति सोचता है कि अब उसे और अधिक जीने की आवश्यकता नहीं है।" और कुछ ही दिनों के बाद 4 फरवरी 1974 को सत्येन्द्र नाथ बोस सचमुच हमारे बीच से हमेशा के लिए चले गए।