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'''उद्भट''' [[अलंकार शास्त्र|अलंकार संप्रदाय]] ([[संस्कृत]]) में [[भामह]] और [[दंडी]] के परवर्ती प्रधान प्रतिनिधि आचार्य थे। [[कल्हण]]कृत [[राजतरंगिणी]] के अनुसार ये [[कश्मीर]] के शासक [[जयापीड]] की विद्वत्परिषद् के सभापति थे और इनका वेतन प्रति एक लक्ष दीनार (स्वर्णमुद्रा) था। इतिहासकारों ने जयापीड का शासनकाल सन् ७७९-८१३ ई. माना है। उद्भट जयापीड के शासनकाल के प्रथम चरण में रख जा सकते हैं क्योंकि मान्यता है कि जयापीड ने अपने शासन के अंतिम चरण में प्रजा को पर्याप्त उत्पीड़ित किया था। इससे क्षुब्ध हो ब्राह्मणों ने उसका बहिष्कार कर दिया था। अतएव उद्भट का समय ईसवी सन् की आठवीं शताब्दी में ही संभव हो सकता है।
उद्भट ने 'काव्यलंकारसारसंग्रह' नामक ग्रंथ की रचना की थी। यह ग्रंथ अप्राप्य था किंतु
उद्भट ने अलंकारों का क्रम और उनके वर्ग भामह के काव्यालंकार के अनुरूप रखे हैं और प्राय: संख्या भी वही दी है। भामह द्वारा निरूपति ३९ अलंकारों में से इन्होंने आशी, उत्प्रेक्षावयव, उपमारूपक और यमक इत्यादि चार अलंकारों को छोड़ दिया है तथा पुनरुक्तवदाभास, छेकानुप्रास, लाटानुप्रास, काव्यहेतु, प्रतिवस्तूपमा, दृष्टांत और संकर, इन छह नवीन अलंकारों को लिया है। इतना ही नहीं, उक्त छह अलंकारों में पुनरुक्तवदाभास, काव्यहेतु तथा दृष्टांत तो सर्वप्रथम उद्भट द्वारा ही आविष्कृत हैं, क्योंकि पूर्ववर्ती भामह, दंडी आदि आचार्यों में से किसी ने भी इनका उल्लेख नहीं किया है। [[अनुप्रास]], [[उत्प्रेक्षा]], रसवत् और भाविक के अतिरिक्त और भी १२ अलंकारों के लक्षण इन्होंने भामह के अनुसार ही दिए हैं।
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