"नृत्य अनुसंधान": अवतरणों में अंतर

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'''नृत्य अनुसंधान''' नृत्य के अध्ययन के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला व्यापक शब्द है। इसका उपयोग निम्न अर्थों में किया जाता है:
नृत्य अनुस्ंधान केवल एक अध्य्यन के रूप में पिछले दो दशकों मे पूर्ण रूप से स्थपित हो चुका है। इस्से पह्ले नृत्य को ऐसे अध्य्यन का विषय माना ही नही जाता था जो कि 'नाचने'की सीमा पार कर सके । नृत्य अनुसंधान मानव शास्त्रों के विभिन्न क्षेत्रों में भी लागू किया जाता है-जैसे -समाजशास्त्र , इतिहास ,धर्म्शास्त्र , शिक्षा ,संगीत और पुरतत्व। एक मानव विज्ञानी,नृत्य अनुसंधान कए ज़रिए अतीत की सभ्य्ताओं की संवेदनशीलता को समझने क प्रयास करता है। एसे अनुसंधान के क्षेत्र में नृत्य की परिभाषा में केवल 'डांस' नही होता, अपितु-विभिन्न प्रकार के नाटकीय नृत्य,अनुष्ठान नृत्य इत्यदि जो कि समाज की विभिन्न गतिविधियों का प्रदर्शन क्ररने हेतु उप्युक्त होते हैं। एक नृत्य एतिहास किसी विशेष नृत्य शैली के उद्भव और विकास का अध्य्य्न करता है। नृत्य अनुसंधान कि ओर ऐसी दृष्टिकोण किसी एक प्रकार के नृत्य में बदलाव एवं परिवर्थन की समझ प्रदान करते हुए सामाजिक एवम सांस्कृतिक परिवर्तन तथा सामान्य मुद्दे के बीच आपसी संबंध स्थापित करता है। हालाकि नृत्य के इस प्रकार के अध्य्य्न में ध्यान मुख्य रूप से आंदोलन पर है, पर्ंतु सत्य यह है कि नृत्य एक स्ंस्कृति बद्ध क्रिया है; इसलिए नृत्य पर एक परिणामी अध्य्य्न उसके संदर्भ के अलगाव में आयोजित नही किया जा सकता।
* नृत्य इतिहास
 
* नृत्य विज्ञान
प्रतिमा विज्ञान एक एसा क्षेत्र है जो कि शोधकर्ताओं को अपने विषय के इतिहास की नीव रख्नने में मदद करता है। यह सबसे संक्षिप्त है। इसके अनुसार प्रथिमा विज्ञान की ओर पह्ला कदम है-किसी तस्वीर के औपचारिक तत्वों और इस्की तथ्यात्मक सामग्री का वर्णन। दुसरे कदम के रूप में ऐसे अध्य्य्न का छात्र , तस्वीर के पीचे के तत्वों सांस्कृतिक सम्मेलन का आंकलन कर,कहानी अथवा दृश्य के मूल एव्ं अर्थ का वर्णन करता है। अकसर कला को इस्के अतीत या वर्तमान काम पर निर्धार्रित निहितार्थ में नही, अपितु भविष्य की पीडियों पपर लागु कर, सम्झा जाता है।विवरणात्मक विष्लेशन कि इस पूरी प्रक्रिया को प्रतिमा विज्ञान कहा जाता है।नृत्य विज्ञान को मुख्य रूप से नृत्य छवियों का विश्लेषण करने हेतु संदर्भित किया जाता है।ऐसे में यह संभव है कि आख्यान को शामिल न किया जाए परंतु यह निश्चित है जकि८ नृत्य चित्रों के माध्यम से प्रचलित कथित विषयों और सम्मेलनों के विवरण का उल्लेख होगा।
* नृत्य सिद्धान्त
 
[[श्रेणी:नृत्य]]
सीबास (१९९१-३३) ने नृत्य प्रतिमा विज्ञान की एक संतुलित परिभाषा प्रदान की है क, जिसके अनुसार नृत्य प्रतिमा नृत्य एव्ं कला के इतिहास क एसा अध्य्य्न है जो कि 'नृत्य की सचित्र दस्तावेज़ में अनुसंधान....( और उसका अध्य्य्न )(शाब्दिक और प्रतीकात्मक अर्थ में) कलाकार की दृष्टि से किया जाता है। यहाँ अवधि सचित्र मूर्ति कला सहित ,दृश्य प्रतिनिधि के सभी रूपों को शामिल किया जाता है। इस तरह ने अनुमानों की जवाबदाही एवं सटीकता पर चिंतन जताया गया है क्योंकि एसे अध्य्य्न अपने स्वभाव से ही गतिशील होता है।