"तिलका माँझी": अवतरणों में अंतर
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बांग्ला की सुप्रसिद्ध लेखिका [[महाश्वेता देवी]] ने तिलका मांझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास 'शालगिरर डाके' की रचना की है। अपने इस उपन्यास में महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी को मुर्मू गोत्र का संताल आदिवासी बताया है। यह उपन्यास हिंदी में 'शालगिरह की पुकार पर' नाम से अनुवादित और प्रकाशित हुआ है।<ref name="शालगिरह की पुकार पर"> https://books.google.co.in/books?id=ckreepb_i5AC&printsec=frontcover&dq=Mahasweta+Devi+google+books&hl=en&sa=X&ei=vkndVPOXOojiuQSCj4LACw&ved=0CCIQ6AEwATgK#v=onepage&q&f=false</ref>
हिंदी के उपन्यासकार [[राकेश कुमार सिंह]] ने जबकि अपने उपन्यास ‘हूल पहाड़िया’ में तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है। ‘हूल पहाड़िया’ उपन्यास 2012 में प्रकाशित हुआ है।<ref name="हूल पहाड़िया"> हुल पहाड़िया (उपन्यास) / लेखक – राकेश कुमार सिंह / सामयिक बुक्स, नई दिल्ली</ref>
तिलका मांझी के नाम पर [[भागलपुर]] में [[तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय]] नाम से एक शिक्षा का केंद्र स्थापित किया गया है।
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