"हुसैन इब्न अली": अवतरणों में अंतर

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'''इमाम हुसैन''' (''अल हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब'', यानि अबी तालिब के पोते और अली के बेटे अल हुसैन, [[626]] AH -[[680]] AH) अली अ० के दूसरे बेटे थे और इस कारण से पैग़म्बर [[मुहम्मद]] के नाती। आपका जन्म [[मक्का]] में हुआ। आपकी माता का नाम [[फ़ातिमा ज़हरा]] था |
 
इमाम हुसैन को इस्लाम में एक शहीद का दर्ज़ा प्राप्त है। शिया मान्यता के अनुसार वे [[यज़ीयज़ीद प्रथम]] के कुकर्मी शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए सन् 680 AH में कुफ़ा के निकट [[कर्बला की लड़ाई]] में शहीद कर दिए गए थे। उनकी शहादत के दिन को आशूरा (दसवाँ दिन) कहते हैं और इस शहादत की याद में [[मुहर्रम]] (उस महीने का नाम) मनाते हैं।
 
== जीवन ==
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मुहम्मद (स.अ.व्.) साहब को अपने नातियों से बहुत प्यार था [[मुआविया]] ने अली अ० से खिलाफ़त के लिए लड़ाई लड़ी थी। [[अली]] के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र [[हसन]] को खलीफ़ा बनना था। मुआविया को ये बात पसन्द नहीं थी। वो हसन अ० से संघर्ष कर खिलाफ़त की गद्दी चाहता था। हसन अ० ने इस शर्त पर कि वो मुआविया की अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे, मुआविया को खिलाफ़त दे दी। लेकिन इतने पर भी मुआविया प्रसन्न नहीं रहा और अंततः उसने हसन को ज़हर पिलवाकर मार डाला। मुआविया से हुई संधि के मुताबिक, हसन के मरने बाद 10 साल (यानि 679 तक) तक उनके छोटे भाई हुसैन खलीफ़ा बनेंगे पर मुआविया को ये भी पसन्द नहीं आया। उसने हुसैन साहब को खिलाफ़त देने से मना कर दिया। इस दस साल की अवधि के आखिरी 6 महीने पहले मुआविया की मृत्यु हो गई। शर्त के मुताबिक मुआविया की कोई संतान खिलाफत की हकदार नहीं होगी, फ़िर भी उसका बेटा [[याज़िद प्रथम]] खलीफ़ा बन गया। सन् 680 में वे करबला के मैदान में अपने अनुचरों सहित, कुफ़ा के सूबेदार की सेना के द्वारा शहीद कर दिए ग
इस्लाम में इस दिन (मुहर्रम मास की 10वीं तारीख़) को बहुत पवित्र माना जाता है और [[ईरान]], [[इराक़]], [[पाकिस्तान]], [[भारत]], [[बहरीन]], [[जमैका]] सहित कई देशों में इस दिन सरकारी छुट्टियाँ दी जाती हैं।
==नोहा ख्वानी==
नोहा का अर्थ है दुख प्रकट करना, गम करना या याद करके रोना। करबला की जंग में शहीद हुए लोगों को और उनकी शहादत को याद करना और पद्य रूप में प्रकट करने को नोहा ख्वानी कहते हैं। नोहा ख्वानी की महफ़िलों में नोहा ख्वानी करके अपने अक़ीदे को पेश करते हैं।
 
और पेश हैं नोहे की कुछ पंक्तियाँ जो मुहर्रम के महीने में पढ़ी और पढाई जाती हैं
 
हुसैन जिंदाबाद हुसैन जिंदाबाद
:हुसैन जिंदाबाद हुसैन जिंदाबाद
:जहाँ में सबसे ज्यादा अश्क जिसके नाम पर बहा...ज़माने ला गमे हुसैन का कोई जवाब ला वो कल भी जिंदाबाद थे वो :अब भी जिन्दा बाद हैं...
:यजीद वाले तख़्त पर नसीब के ख़राब हैं हुसैन वाले कैद में भी रहकर कामयाब है
:हुसैनियत की ठोकरें यजीद और इब्ने जियाद हैं हुसैन जिंदाबाद- हुसैन जिंदाबाद...
 
==यह भी देखिये==