"कालका मेल": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
कालका मेल (1 अप / 2 डाउन) सन 1866 में [[हावड़ा स्टेशन|कलकत्ता]] और [[पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन|दिल्ली]] के बीच चलनी शुरु हुई और 1891 में इसे दिल्ली से लेकर कालका तक बढ़ाया गया। यह रेलगाड़ी मुख्य रूप से ब्रिटिश सिविल सेवकों को राजधानी कलकत्ता से ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला ले जाने के लिए चलाई गयी थी। ईस्ट इंडियन रेलवे ने एक जनवरी 1866 को हरी झंडी दिखाकर हावड़ा-कालका मेल को वन अप व टू डाउन नाम से शुरू किया था। तब हावड़ा-कालका मेल को कोलकाता से दिल्ली तक चलाया गया था। तब इस ट्रेन में अंग्रेजी हुकूमत के हाई रैंक के अधिकारी सफर करते थे। अन्य यात्रियों के लिए इस ट्रेन में यात्रा संभव नहीं थी। शिमला में गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए अंग्रेजों ने 1891 में रेलवे लाइन का विस्तार कर इसे कालका तक बढ़ाया। तब से यह ट्रेन गौरवमयी सेवा दे रही है। गत शुक्रवार 01 जनवरी 2016 को हावड़ा में कालका मेल के गौरवमयी 150 वर्ष पूरे होने जश्न मनाया गया। केक काटकर हावड़ा से ट्रेन को चलाया गया।<ref>(अनिल http://wwwसक्सेना,एक्स टूरिस्ट गाइड,बिहार टूरिस्म,ए.tribuneindiaपि.com/2002/20020420/windows/main2.htmकोलोनी,गया,बिहार) </ref>
 
इसका संचालन [[ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी]], द्वारा किया जाता था और इसका मूल नाम "ईस्ट इंडिया रेलवे मेल" था। इस रेलगाड़ी की संख्या अब हावड़ा से [[कालका मेल 12311|12311]] है और हावड़ा की ओर [[कालका मेल 12312|12312]] है। दरअसल, पूर्वी भारत में सबसे पहली ट्रेन 15 अगस्त १८५४ को चलाई गेठी. यह हावरा से पश्चिम बंगाल के ही हुगली तक की दुरी तय करती थी. इसके बाद रेलवे नेटवर्क को पूरब से पश्चिम की तरफ फैलाव देने की प्रक्रिया शुरू हुई. 1856 आते आते हावरा से दिल्ली के बीच रेलवे लाइन बिछ गई.उन दिनों ब्रिटिश शाशन कल में अंगरेजी हुकूमत की कलकत्ता स्थित राजधानी को गर्मी के दिनों में शिमला पहुचने और गर्मी ख़तम होने पर वायसराय के साथ साथ पूरी राजधानी कलकत्ता वापस लेन के लिए यही ट्रेन एकमात्र साधन थी. वायसराय अपने वहां से सीधे ट्रेन के कोच तक पहुच सकें, इसके लिए होवर और कालका, दोनों ही स्टेशन पर इंटरनल कैरेज की ब्यस्था की गई थी. कालका में तो नहीं, पर हावड़ा में प्लेटफोर्म 8 और 9 के बीच आज भी यह सुविधा मौजूद है, अब इसका उपयोग आमलोग करते हैं.रेलवे के मुताबिक , कालका मेल का नाम न्तेराजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ भी जुड़ा है . धनबाद गया के बीच स्थित गोमो स्टेशन पर नेताजी इसी ट्रेन में 18 जनवरी,1941 को सवार होकर अंगरेजी हुकूमत की आँखों में धूल झोंककर गायब हो गए थे.<ref>(अनिल सक्सेना,एक्स टूरिस्ट गाइड,बिहार टूरिस्म,ए.पि.कोलोनी,गया,बिहार)
इसका संचालन [[ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी]], द्वारा किया जाता था और इसका मूल नाम "ईस्ट इंडिया रेलवे मेल" था। इस रेलगाड़ी की संख्या अब हावड़ा से [[कालका मेल 12311|12311]] है और हावड़ा की ओर [[कालका मेल 12312|12312]] है।
 
== लोकप्रिय संस्कृति में ==