कालका मेल

भारत की सबसे पुरानी ट्रेन में से एक

कालका मेल, भारतीय रेल द्वारा संचालित एक रेलगाड़ी है जो भारत के पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के निकट स्थित हावड़ा को एक अन्य राज्य हरियाणा के पंचकुला में स्थित कालका, रेलवे स्टेशन से जोड़ती है, जो एक समय भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला, जाने वाली रेलवे लाइन का प्रारंभिक स्टेशन भी है। भारतीय रेल मंत्रालय ने 23 जनवरी 2021 को कालका मेल ट्रेन का नाम बदलकर नेताजी एक्सप्रेस कर दिया है।

1906 में कालका स्टेशन से रवाना होती ईस्ट इंडिया रेलवे मेल।

कालका मेल (1 अप / 2 डाउन) सन 1866 में कलकत्ता और दिल्ली के बीच चलनी शुरु हुई और 1891 में इसे दिल्ली से लेकर कालका तक बढ़ाया गया। यह रेलगाड़ी मुख्य रूप से ब्रिटिश सिविल सेवकों को राजधानी कलकत्ता से ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला ले जाने के लिए चलाई गयी थी। ईस्ट इंडियन रेलवे ने एक जनवरी 1866 को हरी झंडी दिखाकर हावड़ा-कालका मेल को वन अप व टू डाउन नाम से शुरू किया था। तब हावड़ा-कालका मेल को कोलकाता से दिल्ली तक चलाया गया था। तब इस ट्रेन में अंग्रेजी हुकूमत के उच्च अधिकारी सफर करते थे। अन्य यात्रियों के लिए इस ट्रेन में यात्रा संभव नहीं थी। शिमला में गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए अंग्रेजों ने 1891 में रेलवे लाइन का विस्तार कर इसे कालका तक बढ़ाया। तब से यह ट्रेन गौरवमयी सेवा दे रही है। शुक्रवार 01 जनवरी 2016 को हावड़ा में कालका मेल के गौरवमयी 150 वर्ष पूरे होने जश्न मनाया गया। केक काटकर हावड़ा से ट्रेन को चलाया गया।[उद्धरण चाहिए]

इसका संचालन ईस्ट इंडियन रेलवे कंपनी, द्वारा किया जाता था और इसका मूल नाम "ईस्ट इंडिया रेलवे मेल" था। इस रेलगाड़ी की संख्या अब हावड़ा से 12311 है और हावड़ा की ओर 12312 है। दरअसल, पूर्वी भारत में सबसे पहली ट्रेन 15 अगस्त १८५४ को चलाई गई।[उद्धरण चाहिए] यह हावड़ा से पश्चिम बंगाल के ही हुगली तक की दूरी तय करती थी। इसके बाद रेलवे नेटवर्क को पूरब से पश्चिम की तरफ फैलाव देने की प्रक्रिया शुरू हुई। 1856 आते आते हावड़ा से दिल्ली के बीच रेलवे लाइन बिछ गई। उन दिनों ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेज़ी हुकूमत की कलकत्ता स्थित राजधानी को गर्मी के दिनों में शिमला पहुचने और गर्मी ख़त्म होने पर वायसराय के साथ साथ पूरी राजधानी कलकत्ता वापस लाने के लिए यही ट्रेन एकमात्र साधन थी। वायसराय अपने वहां से सीधे ट्रेन के कोच तक पहुच सकें, इसके लिए होवर और कालका, दोनों ही स्टेशन पर इंटरनल कैरेज की व्यवस्था की गई थी। कालका में तो नहीं, पर हावड़ा में प्लेटफोर्म 8 और 9 के बीच आज भी यह सुविधा मौजूद है, अब इसका उपयोग आमलोग करते हैं। रेलवे के मुताबिक, कालका मेल का नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ भी जुड़ा है। धनबाद और गया के बीच स्थित गोमो स्टेशन पर नेताजी इसी ट्रेन में 18 जनवरी,1941 को सवार होकर अंगरेजी हुकूमत की आँखों में धूल झोंककर गायब हो गए थे।[उद्धरण चाहिए]

लोकप्रिय संस्कृति में

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भारतीय फिल्म निर्देशक और लेखक सत्यजीत रे, ने अपनी एक लघु कहानी में कालका मेल को आधार बनाया है। “कालका मेल का रहस्य", नामक कहानी के तीन मुख्य पात्र इस रेलगाड़ी से कलकत्ता से दिल्ली और फिर कालका जाने के लिए सवार होते हैं। कहानी में एक हीरे की चोरी और एक अप्रकाशित पांडुलिपि भी शामिल है।[1] कहानी पर एक रेडियो नाटक भी बनाया गया था।

दुर्घटना

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10 जुलाई 2011 को उत्तर प्रदेश में कानपुर के निकट फतेहपुर के मलवां स्टेशन के पास दोपहर के समय इस रेलगाड़ी के 13 डिब्बे पटरी से उतर गये। इस दुर्घटना में कम से कम अस्सी लोगों की मौत हो गई है। जबकि साढ़े तीन सौ लोग घायल हो गए। प्रधानमंत्री ने रेल मंत्रालय की ओर से मृतकों के परिजनों के लिए पांच-पांच लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की।

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 जुलाई 2011.