"अमरकांत": अवतरणों में अंतर
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| parents = पिता: सीताराम वर्मा व माता: अनंती देवी
| occupation =कहानीकार, उपन्यासकार
| awards = 2007:[[
| signature =
}}
'''अमरकांत''' (1925 - 17 फ़रवरी 2014) [[कथा साहित्य|हिंदी कथा साहित्य]] में [[प्रेमचंद]] के बाद यथार्थवादी धारा के प्रमुख कहानीकार थे। [[यशपाल]] उन्हें [[गोर्की]] कहा करते थे।<ref name="rk6">रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २०१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-६</ref>
== जीवन वृत्त ==
पंक्ति 28:
=== कहानी संग्रह ===
1. ‘जिंदगी और जोंक’
2. ‘देश के लोग’
3. ‘मौत का नगर’
4. ‘मित्र मिलन तथा अन्य कहानियाँ’
5. ‘कुहासा’
6. ‘तूफान’
7. ‘कला प्रेमी’
8. ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’
9. ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’
10. ‘एक धनी व्यक्ति का बयान’
11. ‘सुख और दुःख के साथ’
12. ‘जांच और बच्चे’
13. ‘अमरकांत की सम्पूर्ण कहानियाँ’ (दो खंडों में)
14. ‘औरत का क्रोध’।
पंक्ति 61:
2. ‘काले-उजले दिन’
3. ‘कंटीली रह के फूल’
4. ‘ग्राम सेविका’
5. ‘पराई डाल का पंछी’ बाद में ‘सुखजीवी’ नाम से प्रकाशित
6. ‘बीच की दीवार’
पंक्ति 71:
7. ‘सुन्नर पांडे की पतोह’
8. ‘आकाश पक्षी’
9. ‘इन्हीं हथियारों से’
10. ‘विदा की रात’
11. लहरें।
=== संस्मरण ===
1. कुछ यादें, कुछ बातें
2. दोस्ती।
=== बाल साहित्य ===
1. ‘नेऊर भाई’
2. ‘वानर सेना’
3. ‘खूँटा में दाल है’
4. ‘सुग्गी चाची का गाँव’
5. ‘झगरू लाल का फैसला’
पंक्ति 99:
7. ‘मँगरी’
8. ‘बाबू का फैसला’
9. दो हिम्मती बच्चे।
पंक्ति 105:
== साहित्यिक वैशिष्ट्य ==
उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन की पक्षधरता का चित्रण मिलता है। वे भाषा की [[सृजनात्मकता]] के प्रति सचेत थे। उन्होंने [[काशीनाथ सिंह]] से कहा था- "बाबू साब, आप लोग साहित्य में किस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं? भाषा, साहित्य और समाज के प्रति आपका क्या कोई दायित्व नहीं? अगर आप लेखक कहलाए जाना चाहते हैं तो कृपा करके सृजनशील भाषा का ही प्रयोग करें।"<ref name="rk6"/>
अपनी रचनाओं में अमरकांत [[व्यंग्य]] का खूब प्रयोग करते हैं। 'आत्म कथ्य' में वे लिखते हैं- "'' उन दिनों वह मच्छर रोड स्थित ' मच्छर भवन ' में रहता था। सड़क और मकान का यह नूतन और मौलिक नामकरण उसकी एक बहन की शादी के निमन्त्रण पत्र पर छपा था। कह नहीं कह सकता कि उसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन खुनिसिपैलिटी पर व्यंग्य करना था अथवा रिश्तेदारों को मच्छरदानी के साथ आने का निमंत्रण।"<ref>रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २0१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-७
उनकी कहानियों में उपमा के भी अनूठे प्रयोग मिलते हैं, जैसे, ' वह लंगर की तरह कूद पड़ता ', ' बहस में वह इस तरह भाग लेने लगा, जैसे भादों की अँधेरी रात में कुत्ते भौंकते हैं ', ' उसने कौए की भाँति सिर घुमाकर शंका से दोनों ओर देखा। '' आकाश एक स्वच्छ नीले तंबू की तरह तना था। '' लक्ष्मी का मुँह हमेशा एक कुल्हड़ की तरह फूला रहता है। ' ' दिलीप का प्यार फागुन के अंधड़ की तरह बह रहा था' आदि- आदि।''<ref>रविंद्र कालिया, नया ज्ञानोदय (मार्च २0१२), भारतीय ज्ञानपीठ, पृ-८
== आलोचना ==
पंक्ति 120:
* [http://www.pustak.org/bs/home.php?author_name=amarkant अमरकांत की पुस्तकों के बारे में और अधिक जानें]
* [http://books.google.co.in/books?id=3V1zvXHxrTMC&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false आकाश पक्षी] (गूगल पुस्तक ; लेखक - अमरकान्त)
{{हिन्दी साहित्यकार (जन्म १९२१-१९३०)}}
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