"श्रावस्ती": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 17:
== नाम की उत्पत्ति ==
 
* श्रावस्ती कोशल का एक प्रमुख नगर था। भगवान बुद्ध के जीवन काल में यह कोशल देश की राजधानी थी। इसे बुद्धकालीन भारत के 6 महानगरों, चंपाचम्पा, राजगृह, श्रावस्ती, साकेत, कोशांबीकोशाम्बी और वाराणसी में से एक माना जाता था। इसके नाम की व्युत्पत्ति के संबंधसम्बन्ध में कई मत प्रतिपादित है।
* सावत्थी, संस्कृत श्रावस्ती का पालि और अर्द्धमागधी रूप है। बौद्ध ग्रन्थों में इस नगर के नाम की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य उल्लेख भी मिलता है। इनके अनुसार सवत्थ (श्रावस्त) नामक एक ऋषि यहाँ पर रहते थे, जिनकी बड़ी ऊँची प्रतिष्ठा थी। इन्हीं के नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ गया था।
* पाणिनि (लगभग 500 ई.पूर्व) ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' में साफ़ लिखा है कि स्थानों के नाम वहाँ रहने वाले किसी विशेष व्यक्ति के नाम के आधार पर पड़ जाते थे।
* महाभारत के अनुसार श्रावस्ती के नाम की उत्पत्ति का कारण कुछ दूसरा ही था। श्रावस्त नामक एक राजा हुयेहुए जो कि पृथु की छठींछठी पीढ़ी में उत्पन्न हुयेहुए थे। वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है। महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामाणिक मानना उचित बात होगी। बाद में चलचलकर कर कोसलकोशल की राजधानी, अयोध्या से हटाकर श्रावस्ती ला दी गईगयी थी और यही नगर कोसलकोशल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।
* ब्राह्मण साहित्य, महाकाव्यों एवं पुराणों के अनुसार श्रावस्ती का नामकरण श्रावस्त या श्रावस्तक के नाम के आधार पर हुआ था। श्रावस्तक युवनाश्व का पुत्र था और पृथु की छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था। वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था।
* पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है।
* महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामणिक मानना उचित बात होगी।
* मत्स्य एवं ब्रह्मपुराणों में इस नगर के संस्थापक का नाम श्रावस्तक के स्थान पर श्रावस्त मिलता है। बाद में चलचलकर कर कोसलकोशल की राजधानी, अयोध्या से हटाकर श्रावस्ती ला दी गईगयी थी और यही नगर कोसलकोशल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।
* एक बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार वहाँ 57 हज़ार कुल रहते थे और कोसलकोशल-नरेशों की आमदनी सबसे ज़्यादा इसी नगर से हुआ करती थी। गौतम बुद्ध के समय में भारतवर्ष के 6 बड़े नगरों में श्रावस्ती की गणना हुआ करती थी। यह चौड़ी और गहरी खाई से घिरा हुआ था। इसके अतिरिक्त इसके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा-दीवार भी थी, जिसमें हर दिशा में दरवाज़े बने हुयेहुए थे। हमारी प्राचीन कला में श्रावस्ती के दरवाज़ों का अंकन हुआ है। उससे ज्ञात होता है कि वे काफ़ी चौड़े थे और उनसे कई बड़ी सवारियाँ एक ही साथ बाहर निकल सकती थीं। कोसलकोशल के नरेश बहुत सज-धज कर बड़े हाथियों की पीठ पर कसे हुयेहुए चाँदी या सोने के हौदों में बैठ कर बड़े ही शान के साथ बाहर निकला करते थे।
* चीनी यात्री फाहियान और हुयेनसांग ने भी श्रावस्ती के दरवाज़ों का उल्लेख किया है। श्रावस्ती एक समृद्ध, जनाकीर्ण और व्यापारिक महत्त्व वाली नगरी भी।थी। यहाँ मनुष्यों के उपभोग-परिभोग की सभी वस्तुएँ सुलभीसुलभ थीं, अत: इसे सावत्थी कहा जाता था।
पहले यह केवल एक धार्मिक स्थान था, किंतुकिन्तु कालांतरकालान्तर में इस नगर का समुत्कर्ष हुआ। जैन साहित्य में इसके लिए 'चंद्रपुरी' तथा 'चंद्रिकापुरी' नाम भी मिलते हैं।
* महाकाव्यों एवं पुराणों में श्रावस्ती को राम के पुत्र लव की राजधानी बताया गया है।
* कालिदास ने इसे ‘शरावती’ नाम से अभिहित किया है। उच्चारण संबंधीसम्बन्धी समानता के आधार पर ‘श्रावस्ती’ और ‘शरावती’ दोनों एक ही प्रतीत होते हैं और एक निश्चित स्थान की तरफ इंगित भी करते हैं।
* श्रावस्ती न केवल बौद्ध और जैन धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्रकेन्द्र था, अपितु यह ब्राह्मण धर्म एवं वेद विद्या का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्रकेन्द्र था। यहाँ वैदिक शिक्षा केंद्रकेन्द्र के कुलपति के रूप में 'जानुस्सोणि' का नामोल्लेख मिलता है। कालांतरकालान्तर में बुद्ध के जीवन-काल से संबंधितसम्बन्धित तथा प्रमुख व्यापारिक मार्गों से जुड़े होने के कारण श्रावस्ती की भौतिक समृद्धि में वृद्धि हुई।
 
== नगर का विकास ==