"जगजीवन राम": अवतरणों में अंतर

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'''जगजीवन राम''' (5 अप्रैल 1908-6 जुलाई 1986) [[भारत]] के प्रथम दलित उप-प्रधानमंत्री एवं राजनेता थे।
 
== परिचय ==
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[[द्वितीय विश्वयुद्ध|दूसरे विश्व युद्ध]] के बाद जब अंग्रेज भारत छोड़ने के लिए मजबूर हो गए तो उनकी कोशिश थी पाकिस्तान की तरह भारत के और कई टुकड़े कर दिए जाएं, लेकिन शिमला में [[कैबिनेट मिशन]] के सामने बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए और दलितों और शेष भारतीयों के बीच मतभेद पैदा करने की अंग्रेजों की कोशिश को नाकाम कर दिया। अंतरिम सरकार में जब बारह लोगों को लॉर्ड वॉवेल की कैबिनेट में शामिल होने के लिए बुलाया गया तो उसमें बाबू जगजीवन राम भी थे। उनको श्रम विभाग का जिम्मा दिया गया। इसी दौर में उन्होंने कुछ ऐसे कानून बनाए जो भारत के इतिहास में आम आदमी, मजदूरों और दबे-कुचले वगरें के हित की दिशा में मील का पत्थर माने जाते हैं। उन्होंने मिनिमम वेजेज एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट और ट्रेड यूनियन एक्ट लागू कराए, जिन्हे मजदूरों के हित में सबसे बड़े हथियार के रूप में आज भी इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने इम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट और प्राविडेंट फंड एक्ट भी बनवाया। कल्पना कीजिए अगर बाबूजी ने इन कानूनों को न बनाया होता तो आज मजदूरों और कर्मचारियों की कितनी दुर्दशा होती।
 
भारत की ससद को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे। मत्री के रूप में जगजीवन राम को जो भी काम मिला, उसे बहुत ही अच्छी तरह से निभाया। 1952 के चुनाव के बाद उन्हें नेहरूजी ने संचार मत्री बनाया। उन दिनों सचार मत्रालय में ही विमानन विभाग भी शामिल था। उन्होंने निजी विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांव-गांव तक डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें रेल मत्री बनाया। उन्हीं के कार्यकाल में रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद पड़ी और रेलवे कर्मचारियों के लिए बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गईं। पद की लालसा उन्हें बिलकुल नहीं थी, इसलिए जब [[कामराज योजना]] आई तो उन्होंने सबसे पहले सरकार से अलग होकर सगठन का काम शुरू किया।
 
जब [[लालबहादुर शास्त्री]] की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी ने प्रधानमत्री पद सभाला तो बाबूजी को एक अति कुशल प्रशासक के रूप में अपने साथ लिया। यह भारत के लिए निश्चित रूप से कठिन दौर था। 1962 में [[चीन]] और 1965 में [[पाकिस्तान]] से लड़ाई हो चुकी थी। गरीब आदमी और किसान भुखमरी के कगार पर खड़ा था। [[अमेरिका]] से पीएल-480 के तहत सहायता में मिलने वाला [[गेहूं]] और [[ज्वार]] ही भूख मिटाने का मुख्य साधन बन चुका था। ऐसी विकट परिस्थिति में डॉ॰ नॉरमन बोरलाग भारत आए और [[हरित क्राति]] का सूत्रपात किया। नई सोच और आधुनिक तकनीक के पक्षधर बाबू जगजीवन राम उस समय कृषि मत्री थे। भारत में दो-ढाई साल में ही हालात बदल गए और देश की जरूरत से अधिक खाद्यान्न पैदा होने लगा। भारत में [[हरित क्राति]] के लिए तकनीकी मदद तो निश्चित रूप से डॉ॰ [[नॉरमन बोरलाग]] से मिली, लेकिन भारत के कृषि मत्री बाबू जगजीवन राम ने जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए हरित क्राति के लिए जरूरी प्रशासनिक इंतजाम किया। डॉ॰ बोरलाग का अविष्कार था बौना गेहूं और धान, जिसने भारत और पाकिस्तान में भुखमरी की समस्या को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। बाद में चीन ने भी इस प्रौद्योगिकी का फायदा उठाया। 1962 और 1965 की लड़ाई के बाद उपजी भूख की समस्या को उन्होंने बहुत ही सूझ-बूझ से परास्त किया। 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में बाबूजी ने जिस तरह से अपनी सेनाओं के लिए राजनीतिक समर्थन दिया वह सैन्य इतिहास में मिसाल बन गया है। बाद में भी जब [[इंदिरा गांधी]] का सबसे बुरा दौर था, काग्रेस के पुराने नेता उनका साथ छोड़ चुके थे, तो बाबू जगजीवन राम ने उनके साथ खड़े होकर उन्हे मजबूती दी थी, लेकिन उन्होंने कभी भी लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता नहीं किया।
 
==सन्दर्भ==
{{आधार}}
 
[[श्रेणी:1908 मेँ जन्मे लोग]]
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[[श्रेणी:भारत के उप प्रधानमंत्री]]
[[श्रेणी:भारत के रक्षा मंत्री]]
 
 
{{जीवनचरित-आधार}}