→‎धर्म: ==सन्दर्भ==
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{{main|जैसलमेर में धर्म}}
 
भारतवर्ष की भूमि सदैव से धर्म प्रधान रही है, यहाँ पर धर्म के बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। मुख्यतः यह हिन्दू बहुल क्षैत्र रहा है। वर्तमान मैं सभी धर्मो के लोग यह रहते है ,जिसमें मुख्यतः हिन्दू और मुस्लिम धर्म के लोग शामिल है। जैसलमेर राज्य का विस्तार भू-भाग भी इस भावना से मुक्त नहीं रहा। इस क्षेत्र के सर्वप्रथम राव तणू द्वारा तणोट नामक स्थान बसाने तथा वहाँ देवी का मंदिर का मंदिर बनाने का उल्लेख प्राप्त होता है। यह देवी का मंदिर आज भी विद्यमान है, जैसलमेर में विभिन्न संप्रदायों के प्रति बहुत आस्था रही है, इनमें राम स्नेही, नाथपंथ तथा वल्लभ संप्रदाय प्रमुख हैं। महारावल अमरसिंह के समय रामानंदी पंथ के महंत हरिवंशगिरि ने अमरसिंह को अपने चमत्कारों प्रसन्न किया व रावल देवराज के समय से राज्स में किसी अन्य पंथ के प्रवेश पर लगी रोक को हटवाया तथा स्थान-स्थान पर रामद्वारों की स्थापना कराई।
यहाँ जैन धर्म की श्वेताम्बर शाखा ने इतनी अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की थी कि कालांतर में श्वेताम्बर पंथी जैन समाज के लिये जैसलंमेर एक तीर्थ स्थल बन गया।
जैसलमेर राज्य में प्रारंभ से ही इस्लाम धर्म मानने वाले लोगों का अस्तित्व रहा है, इस क्षेत्र में पाये जाने वाले इस्लाम धर्म के अनुयायी अधिकांशतः स्थानीय जातियों द्वारा बलात् इस्लाम धर्म स्वीकृत करने वालों में से है।
 
[[अन्य]]
 
श्री भादरिया ,यह जैसलमेर जिले से ७० किलोमीटर पूर्व में स्थित एक छोटा सा गांव है। यहाँ पर भाटी वंश राजपूतो कि कुलदेवी स्वांगिया माता का मंदिर है , जो कि शक्ति का प्रतीक है। यह नागर शैली का एक भव्य मंदिर है। और यहाँ पर स्थित पुस्तकालय विश्व के सबसे बड़े पुस्तकालयो में से एक है। इसके अलावा यहाँ पर एक बहुत बड़ी गोशाला है , जिसमें लगभग १५ से २० हजार गाय है। पुस्तकालय व गोशाला का निर्माण ब्र्ह्मलीन संत हरवंश सिंह निर्मल द्वारा कराया गया है।
 
== इन्हें भी देखें ==