"नीतिशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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==मानदण्डक नीतिशास्त्र==
{{Main article|मानदण्डक नीतिशास्त्र}}
मानदण्डक नीतिशास्त्र नीतिशास्त्रीय क्रिया का अध्ययन हैं। यह नीतिशास्त्र की वह शाखा हैं, जो उन प्रश्नों के सम्मुचय की जाँच करती हैं, जिनका उद्गम यह सोचते वक़्त होता हैं कि नैतिक रूप से किसी को कैसे काम करना चाहिये। मानदण्डक नीतिशास्त्र [[मेटा-नीतिशास्त्र]] से अलग हैं, क्योंकि यह कार्यों के सही या ग़लत होने के मानकों का परिक्षण करता हैं, जबकि मेटा-नीतिशास्त्र नैतिक भाषा के अर्थ और नैतिक तथ्यों के तत्त्वमीमांसा का अध्ययन करता हैं।<ref name=bbc/> मानदण्डक नीतिशास्त्र [[वर्णात्मक नीतिशास्त्र]] से भी भिन्न हैं, क्योंकि पश्चात्काथित लोगों की नैतिक आस्थाओं की अनुभवसिद्ध जाँच हैं। अन्य शब्दों में, वर्णात्मक नीतिशास्त्र का सम्बन्ध यह निर्धारित करने से हैं कि किस अनुपात के लोग मानते हैं कि हत्या सदैव गलत हैं, जबकि मानदण्डक नीतिशास्त्र का सम्बन्ध इस बात से हैं कि क्या यह मान्यता रखनी गलत हैं। अतः, कभी-कभी मानदण्डक नीतिशास्त्र को वर्णात्मक के बजाय निर्देशात्मक कहा जाता हैं। हालांकि, मेटा-नीतिशास्त्रीय दृष्टि के कुछ संस्करणों में जिन्हें [[नैतिक यथार्थवाद]] कहा जाता हैं, नैतिक तथ्य एक ही वक़्त पर, दोनों वर्णात्मक और निर्देशात्मक होते हैं।<ref>{{cite web|last=Cavalier|first=Robert|title=Meta-ethics, Normative Ethics, and Applied Ethics|work=Online Guide to Ethics and Moral Philosophy|url=http://caae.phil.cmu.edu/Cavalier/80130/part2/II_preface.html|accessdate=February 26, 2014|archivedate=November 12, 2013|archiveurl=//web.archive.org/web/20131112114345/http://caae.phil.cmu.edu/Cavalier/80130/part2/II_preface.html}}</ref>
 
परम्परागत, मानदण्डक नीतिशास्त्र (जिसे नैतिक सिद्धान्त भी कहा जाता हैं) इस बात का अध्ययन था कि वह क्या हैं जो किसी क्रिया को क्या सही या ग़लत बनाता हैं। ये सिद्धान्त मुश्किल नैतिक निर्णयों का समाधान करने हेतु व्यापक नैतिक सिद्धान्त प्रदान करते हैं।
 
==अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र==