"कथासरित्सागर": अवतरणों में अंतर

→‎कथासरित्सागर के लंबक एवं कथानक: कथासरित्सागर में प्रथम लंबक कथापीठ, द्वितीय लंबक 'कथामुख', तृत...
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कथासरित्सागर में पहला लंबक '''कथापीठ''' है। गुणाढ्य कवि संबंधी कथानक उसका विषय है जिसमें [[पार्वती]] के [[शाप]] से [[शिव]] का गण पुष्पदंत वररुचि कात्यायन के रूप में जन्म लेता है और उसका भाई माल्यवान् गुणाढ्य के नाम से उत्पन्न होता है। वररुचि विंध्यपर्वतमाला में काणभूति नामक पिशाच को शंकर द्वारा पार्वती को सुनाई गई सात कथाएँ सुनाता है। गुणाढ्य काणभूति से उक्त कथाएँ सुनकर बृहत्कथा की रचना करता है, जिसके छह भाग आग में नष्ट हो जाते हैं और केवल सातवाँ भाग ही शेष बचता है, जिसके आधार पर कथासरित्सागर की रचना की जाती है।
 
दूसरा लंबक '''कथामुख''' और तीसरा '''लावणक''' है जिसमें वत्सराज उदयन, उसकी रानी वासवदत्ता, मंत्री यौगंधरायण, पद्मावती आदि की कथाएँ हैं।

चौथे लंबक में नरवाहनदत्त का जन्म है। इसके आगे संपूर्ण ग्रंथ का मुख्य नायक वही है. शेष चतुर्दारिका, मदनमंचुका, रत्नप्रभा, सूर्यप्रभा, अलंकारवती, शक्तियशस्, वेला, शशांकवती, मदिरावती, पंच, महाभिषेक, सुरतमंजरी, पद्मावती तथा विषमशील इत्यादि लंबकों में नरवाहनदत्त के साहसिक कृत्यों, यात्राओं, विवाहों आदि की रोमांचक कथाएँ हैं जिनमें अद्भुत कन्याओं और उनके साहसी प्रेमियों, राजाओं तथा नगरों, राजतंत्र एवं षड्यंत्र, जादू और टोने, छल एवं कपट, हत्या और युद्ध, रक्तपायी वेताल, पिशाच, यक्ष और प्रेत, पशुपक्षियों की सच्ची और गढ़ी हुई कहानियाँ एवं भिखमंगे, साधु, पियक्कड़, जुआरी, वेश्या, विट तथा कुट्टनी आदि की विविध कहानियाँ संकलित हैं। इतना ही नहीं, '''[[वेताल पंचविंशति]]''' या [[बेताल पच्चीसी]] की 25 कहानियाँ तथा [[पंचतंत्र]] की भी अनेक कहानियाँ इसमें मिल जाती हैं।
 
सी.एच. टानी और एन.एम. पेंजर ने कथासरित्सागर का एक प्रामाणिक अंग्रेजी अनुवाद (1924-28 ई.) 10 भागों में '''दि ओशन ऑव स्टोरी''' नाम से प्रकाशित करवाया है जिसमें अनेक पादटिप्पणियों तथा निबंधों के माध्यम से भारतीय कथाओं एवं कथानक रूढ़ियों पर बहुमूल्य सामग्री जुटाई गई है।