"अहिल्या": अवतरणों में अंतर

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== उद्धार ==
इसलिये विश्वामित्र जी ने कहा "हे राम! अब तुम आश्रम के अन्दर जाकर अहिल्या का उद्धार करो।" विश्वामित्र जी की बात सुनकर वे दोनों भाई आश्रम के भीतर प्रविष्ट हुये। वहाँ तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज सम्पूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था। जब अहिल्या की दृष्टि राम पर पड़ी तो उनके पवित्र दर्शन पाकर एक बार फिर सुन्दर नारी के रूप में दिखाई देने लगी। नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किये। उससे उचित आदर सत्कार ग्रहण कर वे मुनिराज के साथ पुनः मिथिला पुरी को लौट आये।
 
==परवर्ती मूल्यांकन एवं पुनर्कथन==
[[File:Panchakanya.jpg|thumb|''पंचकन्या'', 1945-पूर्व का एक निरूपण, राजा रवि वर्मा प्रेस से।]]
 
अहल्या के बारे में एक प्रसिद्ध श्लोक है:{{r|Apte p73}}{{sfn|Chattopadhyaya|1982|pp=13–4}}
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'''संस्कृत श्लोक'''
{{IAST|अहल्या द्रौपदी सीता तारा मन्दोदरी तथा ।}}
{{IAST|पञ्चकन्याः स्मरेन्नित्यं महापातकनाशिन्याः ॥}}
</poem>
<poem>
'''श्लोकार्थ'''
अहल्या, [[द्रौपदी]], [[सीता]], [[तारा (रामायण)|तारा]] और [[मंदोदरी]] इनका प्रतिदिन स्मरण करना चाहिए, महा पापों का नाश करने वाली हैं।
</poem>
<small>नोट: एक अन्य रूप में इस श्लोक में सीता की जगह [[कुन्ती]] लिखा मिलता है।{{sfn|Bhattacharya|March–April 2004|pp=4–7}}{{sfn|Devika|29 October 2006|p=52}}{{sfn|Mukherjee|1999|p=36}}</small>
</div>
 
परंपरावादी हिन्दू, ख़ास तौर पर हिन्दू पत्नियाँ, पंचकन्याओं का स्मरण प्रातःकालीन प्रार्थना में करती हैं, इन्हें पाँच कुमारियाँ माना जाता है।{{sfn|Chattopadhyaya|1982|pp=13–4}}{{sfn|Mukherjee|1999|p=36}}{{sfn|Dallapiccola|2002}} एक मत के अनुसार ये पाँचों "उदाहरणीय पवित्र नारियाँ"{{sfn|Dallapiccola|2002}} अथवा महारी नृत्य परंपरा अनुसार ''महासतियाँ'' हैं,{{sfn|Ritha Devi|Spring-Summer 1977|pp=25–9}} और कतिपय शक्तियों की स्वामिनी भी हैं।{{sfn|Chattopadhyaya|1982|pp=13–4}} इस मत के अनुसार अहल्या इन पाँचो में सबसे प्रमुख हैं जिन्हें छलपूर्वक भ्रष्ट किया गया जबकि उनकी अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठा थी।{{sfn|Dallapiccola|2002}} अहल्या को पाँचों में प्रमुख इसलिए भी माना जाता है क्योंकि यह पात्र कालानुक्रम में भी सबसे पहले हैं।{{sfn|Bhattacharya|March–April 2004|pp=4–7}} देवी भागवत पुराण में अहल्या को एक प्रकार से उन द्वितीय कोटि की देवियों में स्थान दिया गया है, जिन देवियों को शुभ, यशस्विनी और प्रशंसनीय माना गया है; इनमें तारा और मंदोदरी के अलावा पंचसतियों में से अरुन्धती और दमयन्ती इत्यादि भी शामिल की गयी हैं। {{r|Vijnanananda p876}}
 
अन्य मत पंचकन्याओं को कोई आदर्श नारी के रूप में नहीं देखता और इन्हें अनुकरणीय भी नहीं मानता।{{sfn|Mukherjee|1999|pp=48–9}}
भट्टाचार्य , जो ''पंच-कन्या: दि फ़ाइव वर्जिन्स ऑफ़ इण्डियन एपिक्स'' के लेखक हैं, पंचकन्याओं और पंचसतियों, सती सीता, सावित्री, दमयन्ती और अरुन्धती, के मध्य तुलनात्मक विचार प्रकट करते हुए पूछते है:"तो क्या तब अहल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी सच्चरित्र पत्नियाँ ''नहीं'' हैं क्योंकि इनमें से प्रत्येक ने अपने पति के अलावा एक (या एकाधिक) पर पुरुष को जाना (संसर्ग किया)?"{{sfn|Bhattacharya|2000|p=13}}
 
चूँकि, वे ऐसे कामव्यापार का प्रदर्शन करती हैं जो पराम्परागत आदर्शों के विपरीत है, भारतीय समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय इस बात पर विस्मय व्यक्त करती हैं कि अहल्या और तारा को ''पंचकन्याओं'' में शामिल किया गया है।
{{sfn|Chattopadhyaya|1982|pp=13–4}} हालाँकि, अहल्या के इस अत्यंतगमन ने उन्हें पाप का भागी बनाया और उन्हें वह उच्च स्थान नहीं प्राप्त जो सीता और सावित्री जैसी स्त्रियों को मिला, उनके इस कार्य ने उन्हें कथाओं में अमर कर दिया।
 
वह स्थान जहाँ अहल्या ने अपने शाप की अवधि पूर्ण की और जहाँ शापमुक्त हुईं, ग्रन्थों में अहल्या-तीर्थ के नाम से उल्लेखित और पवित्र स्थान के रूप मेंप्रतिष्ठित है। तीर्थ स्थल वह जगह या जल भंडार होता है जहाँ आमतौर पर हिन्दू तीर्थयात्री स्नान करके अपने पापों से मुक्त होने की मान्यता रखते हैं। अहल्या-तीर्थ की वास्तविक अवस्थिति के बारे में विवाद है: कुछ ग्रन्थों के मुताबिक़ यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित है जबकि कुछ ग्रन्थ इसे नर्मदा के तट पर स्थित मानते हैं। दो ऐसे प्रमुख स्थान हैं जिनके अहल्या तीर्थ होने का दावा सबसे मजबूती से प्रस्तुत किया जाता है। पहला, मध्य प्रदेश के बालोद के पास नर्मदा के किनारे मौजूद ''अहल्येश्वर मंदिर''; दूसरा बिहार के दरभंगा ज़िले में स्थित मंदिर।{{sfn|Kapoor|2002|p=16}}{{sfn|Ganguli Vana Parva|1883–1896|loc=[http://www.sacred-texts.com/hin/m03/m03084.htm chap. LXXXIV]}} ''अहिल्या अस्थान'' <!-- स्थानीय नाम, कृपया इसे अहल्या स्थान न लिखें --> नामक मंदिर और ''अहल्या-ग्राम'' भी इसी ज़िले में स्थित हैं जो अहल्या को समर्पित हैं।{{sfn|Official Site of Darbhanga District|2006}} मत्स्य पुराण और कूर्म पुराण में, कामदेव के सामान रूपवान बनने और नारियों को आकर्षित करने की कामना रखने वाले पुरुषों को अहल्या तीर्थ में जाकर अहल्या की उपासना करने का मार्ग सुझाया गया है। यह उपासना कामदेव के माह, चैत्र, में करने को कहा गया है और ग्रंथों के अनुसार इस तीर्थ में स्नान करने वाला व्यक्ति अप्सराओं का सुख भोगता है।{{sfn|Benton|2006|p=79}}
 
भट्टाचार्य के अनुसार, अहल्या नारी के उस शास्वत रूप का प्रतिनिधित्व करती है जो आपने अन्दर की अभीप्सा को भी अनसुना नहीं कर पाती और न ही पवित्रता की उच्च भावनाओं को ही जो उसकी शारीरिक कामनाओं की पूर्ति न कर पाने वाले उसके साधु पति में निहित हैं और उसकी निजी इच्छाओं के साथ विरोधाभास रखती हैं। लेखक अहल्या को एक स्वतन्त्र नारी के रूप में देखता है जो अपना ख़ुद का निर्णय लेती है, उत्सुकता के वशीभूत होकर जोख़िम उठाती है, और अंत में अपने कृत्य का दंड भी उस शाप के रूप में स्वीकार करती है जो पुरुषप्रधान समाज के प्रतिनिधि उसके पति द्वारा लगाया जाता है।{{sfn|Bhattacharya|March–April 2004|pp=4–7}} शाप की अविचलित होकर स्वीकृत ही वह कार्य है जो ''रामायण'' को इस पात्र की प्रशंसा करने को विवश कर देता है और उसे प्रशसनीय एवम् अनुकरणीय चरित्र के रूप में स्थापित कर देता है।{{sfn|Bhattacharya|November–December 2004|p=31}}
 
भट्टाचार्य की तरह ही, ''सबॉर्डिनेशन ऑफ़ वुमन: अ न्यू पर्सपेक्टिव'' पुस्तक की लेखिका मीना केलकर यह महसूस करती हैं कि अहल्या को इसलिए श्रद्धेय बना दिया गया क्योंकि वह पुरुष प्रधान समाज के लिंगभेद के आदर्शों को स्वीकार कर लेती है; वह शाप को बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर लेती है और मानती है कि उसे दण्डित किया जाना चाहिए था। इसके अलावा केलकर यह भी जोड़ती हैं कि ग्रन्थों में अहल्या को महान घोषित किये जाने का एक अन्य कारण उसको मिले शाप द्वारा स्त्रियों को चेतावनी देना और उन्हें निरुद्ध किये जाने के लिए भी हो सकता है।{{sfn|Kelkar|1995|pp=59–60}}
 
हिन्दू मिथकों में वर्णित इस कथा से कुछ मिलती जुलती कथा यूनानी मिथकों में भी प्राप्त होती है, जहाँ ज़्यूस, देवताओं का राजा, जो एक तरह से इन्द्र के ही समान है, आलक्मीनी के पति का रूप धर कर छलपूर्वक उसके साथ संसर्ग करता है जिससे प्रसिद्ध कथापुरुष हर्क्युलिस का जन्म होता है। अहल्या की ही तरह इस ग्रीक कथा के दो वर्शन हैं जिनमें से एक के अनुसार अलक्मीनी ज़्यूस के कपट को पहचानने के बावज़ूद उसके साथ संसर्ग करती है, जबकि दूसरे वर्शन के अनुसार वह निर्दोष है और प्रवंचना की शिकार है।
दोनों कथाओं में प्रमुख अंतर यह है कि अलक्मीनी के साथ संसर्ग द्वारा हरक्यूलीज जैसी संतान की उत्पत्ति के कारण से ज़्यूस का कार्य न्यायोचित ठहराया जाता है और और अलक्मीनी पर भी कोई आरोप दुष्चरित्रा होने का नहीं लगता; अहल्या के कार्य को कामुक आचरण मानकर न केवल उसे इसके लिये बुरा साबित किया जाता है बल्कि शाप के रूप में सज़ा भी प्राप्त होती है।{{sfn|Söhnen|1991|pp=73–4}}{{sfn|Doniger|1999|pp=124–5}}
 
== बाहरी कड़ियाँ ==