"लोकतंत्र": अवतरणों में अंतर
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'''लोकतंत्र''' (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में ''लोक'', "जनता" तथा ''तंत्र'', "शासन",) या '''प्रजातंत्र''' एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है। यह शब्द लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक सन्दर्भ में किया जाता है, किंतु लोकतंत्र का सिद्धांत दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। सामांयतः लोकतंत्र विभिन्न सिद्धांतों के मिश्रण से बनते हैं, पर मतदान को लोकतंत्र के अधिकांश प्रकारों का चरित्रगत लक्षण माना जाता है।
== लोकतंत्र के प्रकार ==
लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार यह "जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है"। लेकिन अलग-अलग देशकाल और परिस्थितियों में अलग-अलग धारणाओं के प्रयोग से इसकी अवधारणा कुछ जटिल हो गयी है। प्राचीनकाल से ही लोकतंत्र के सन्दर्भ में कई प्रस्ताव रखे गये हैं, पर इनमें से कई कभी क्रियान्वित नहीं हुए।
=== प्रतिनिधि लोकतंत्र ===
प्रतिनिधि लोकतंत्र में जनता सरकारी अधिकारियों को सीधे चुनती है। प्रतिनिधि किसी जिले या संसदीय क्षेत्र से चुने जाते हैं या कई समानुपातिक व्यवस्थाओं में सभी मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ देशों में मिश्रित व्यवस्था प्रयुक्त होती है। यद्यपि इस तरह के लोकतंत्र में प्रतिनिधि जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं, लेकिन जनता के हित में कार्य करने की नीतियां प्रतिनिधि स्वयं तय करते हैं। यद्यपि दलगत नीतियां, मतदाताओं में छवि, पुनः चुनाव जैसे कुछ कारक प्रतिनिधियों पर असर डालते हैं, किन्तु सामान्यतः इनमें से कुछ ही बाध्यकारी अनुदेश होते हैं।
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(4) क्रय विक्रय के नियमों का निर्धारण
मंत्रिमंडल का उल्लेख हमें ‘अर्थशास्त्र’ ‘मनुस्मृति’, ‘शुक्रनीति’, ‘महाभारत’, इत्यादि में प्राप्त होता है। यजुर्वेद और ब्राह्मण ग्रंथों में इन्हें ‘रत्नि’ कहा गया। महाभारत के अनुसार मंत्रिमंडल में 6 सदस्य होते थे। मनु के अनुसार सदस्य संख्या 7-8 होती थी। शुक्र ने इसके लिए 10 की संख्या निर्धारित की थी।
इनके कार्य इस प्रकार थे:-
(1) '''पुरोहित'''- यह राजा का गुरु माना जाता था। राजनीति और धर्म दोनों में निपुण व्यक्ति को ही यह पद दिया जाता था।
(2) '''उपराज''' (राजप्रतिनिधि)- इसका कार्य राजा की अनुपस्थिति में शासन व्यवस्था का संचालन करना था।
(3) '''प्रधान'''- प्रधान अथवा प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य था। वह सभी विभागों की देखभाल करता था।
(4) '''सचिव'''- वर्तमान के रक्षा मंत्री की तरह ही इसका काम राज्य की सुरक्षा व्यवस्था संबंधी कार्यों को देखना था।
(5) '''सुमन्त्र'''- राज्य के आय-व्यय का हिसाब रखना इसका कार्य था। चाणक्य ने इसको समर्हत्ता कहा।
(6) '''अमात्य'''- अमात्य का कार्य संपूर्ण राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का नियमन करना था।
(7) '''दूत'''- वर्तमान काल की इंटेलीजेंसी की तरह दूत का कार्य गुप्तचर विभाग को संगठित करना था। यह राज्य का अत्यंत महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील विभाग माना जाता था।
इनके अलावा भी कई विभाग थे। इतना ही नहीं वर्तमान काल की तरह ही पंचायती व्यवस्था भी हमें अपने देश में देखने को मिलती है। शासन की मूल इकाई गांवों को ही माना गया था। प्रत्येक गांव में एक ग्राम-सभा होती थी। जो गांव की प्रशासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था से लेकर गांव के प्रत्येक कल्याणकारी काम को अंजाम देती थी। इनका कार्य गांव की प्रत्येक समस्या का निपटारा करना, आर्थिक उन्नति, रक्षा कार्य, समुन्नत शासन व्यवस्था की स्थापना कर एक आदर्श गांव तैयार करना था। ग्रामसभा के प्रमुख को ग्रामणी कहा जाता था।
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लिच्छवि गणराज्य तत्कालीन समय का बहुत शक्तिशाली राज्य था। बार-बार इस पर अनेक आक्रमण हुए। अन्तत: मगधराज अजातशत्रु ने इस पर आक्रमण करके इसे नष्ट कर दिया। परंतु चतुर्थ शताब्दी ई. में यह पुन: एक शक्तिशाली गणराज्य बन गया।
'''वज्जि'''- लिच्छवि, विदेह, कुण्डग्राम के ज्ञातृक गण तथा अन्य पांच छोटे गणराज्यों ने मिलकर जो संघ बनाया उसी को वज्जि संघ कहा जाता था। मगध के शासक निरन्तर इस पर आक्रमण करते रहे। अन्त में यह संघ मगध के अधीन हो गया।
'''अम्बष्ठ'''- पंजाब में स्थित इस गणराज्य ने सिकन्दर से युद्ध न करके संधि कर ली थी।
'''अग्रेय'''- वर्तमान अग्रवाल जाति का विकास इसी गणराज्य से हुआ है। इस गणराज्य में सिकंदर की सेनाओं का डटकर मुकाबला किया। जब उन्हें लगा कि वे युद्ध में जीत हासिल नहीं कर पायेंगे तब उन्होंने स्वयं अपनी नगरी को जला लिया।
इनके अलावा अरिष्ट, औटुम्वर, कठ, कुणिन्द, क्षुद्रक, पातानप्रस्थ इत्यादि गणराज्यों का उल्लेख भी प्राचीन गंथों में मिलता है।
== लोकतंत्र की अवधारणा==
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लोकतंत्र की पूर्णतः सही और सर्वमान्य परिभाषा देना कठिन है। क्रैन्स्टन ने ठीक ही कहा है कि लोकतंत्र के संबंध में अलग-अलग धारणाएं है। लिण्सेट की परिभाषा अधिक व्यापक प्रतीत होती हैं उसके अनुसार, “लोकतंत्र एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली है जो पदाधिकारियों को बदल देने के नियमित सांविधानिक अवसर प्रदान करती है और एक ऐसे रचनातंत्र का प्रावधान करती है जिसके तहत जनसंख्या का एक विशाल हिस्सा राजनीतिक प्रभार प्राप्त करने के इच्छुक प्रतियोगियों में से मनोनुकूल चयन कर महत्त्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित करती है।” मैक्फर्सन ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए इसे ‘एक मात्र ऐसा रचनातंत्र माना है जिसमें सरकारों को चयनित और प्राधिकृत किया जाता है अथवा किसी अन्य रूप में कानून बनाए और निर्णय लिए जाते हैं।‘ शूप्टर के अनुसार, ‘लोकतांत्रिक विधि राजनीतिक निर्णय लेने हेतु ऐसी संस्थागत व्यवस्था है जो जनता की सामान्य इच्छा को क्रियान्वित करने हेतु तत्पर लोगों को चयनित कर सामान्य हित को साधने का कार्य करती है। वास्तव में, लोकतंत्र मूलतः नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए सहभागी राजनीति से संबद्ध प्रणाली है। लोकतंत्र की अवधारणा के संबंध में प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैंः
:1. लोकतंत्र का पुरातन उदारवादी सिद्धान्त
:2. लोकतंत्र का अभिजनवादी सिद्धान्त
:3. लोकतंत्र का बहुलवादी सिद्धान्त
:4. प्रतिभागी लोकतंत्र का सिद्धान्त
:5. लोकतंत्र का मार्क्सवादी सिद्धान्त अथवा जनता का लोकतंत्र
== लोकतंत्र का पुरातन उदारवादी सिद्धान्त ==
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• सहभागी लोकतंत्र के सिद्धान्तकारों के अनुसार यदि नीतिगत निर्णय लेने का जिम्मा केवल अभिजन वर्ग तक सीमित रहता है तो उसके लोकतंत्र का वास्तविक स्वरूप बाधित होता है। इसलिए वे इसमें आम आदमी की सहभागिता की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि यदि लोकतांत्रिक अधिकार कागज के पन्नों अथवा संविधान के अनुच्छेदों तक ही सीमित रहे तो उन अधिकारों का कोई अर्थ नहीं रह जाता, अतः सामान्य लोगों द्वारा उन अधिकारों का वास्तविक उपभोग किया जाना आवश्यक है।
• लोकतंत्र राज्य का एक स्वरूप है और वर्ग-विभाजित समाज में सरकार अधिनायकवादी और लोकतांत्रिक दोनों होती है। यह एक वर्ग के लिए लोकतंत्र है तो दूसरे के लिए अधिनायकवाद। बुर्जुआ वर्ग चुंकि अपने हित साधन में पूंजीवादी प्रणाली को नियंत्रित और संचालित करता है, इसलिए उसे सत्ता से बेदखलकर समाजवादी लोकतंत्र को स्थापित करना आवश्यक है।
== इन्हें भी देखें ==
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