"कान्होजी आंग्रे": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Sarkhel Kanhoji Angre I.jpg|अंगूठाकार|कान्होजी आंग्रे]]
'''कान्होजी आंग्रे''' (जन्म: अगस्त 1669, देहांत: 4 जुलाई 1729), जिन्हें 18वी सदी ई॰ में [[मराठा साम्राज्य]] की [[नौसेना]] के सर्वप्रथम सिपहसालार थे। उन्हें '''सरख़ेल आंग्रे''' भी कहा जाता है। "सरख़ेल" का अर्थ भी [[नौसेनाध्यक्ष]] (ऐडमिरल) होता है। उन्होंने आजीवन [[हिन्द महासागर]] में [[ब्रिटिश]], [[पुर्तगाल|पुर्तगाली]] और [[नीदरलैण्ड|डच]] नौसैनिक गतिविधियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। उनके पिता तान्होजी आंग्रे भी [[छत्रपति शिवाजी]] की फ़ौज में नायक थे और कान्होजी आंग्रे का बचपन से ही मराठा फ़ौज के साथ सम्बन्ध रहा। उन्होंने मराठा नौसेना को एक नए स्तर पर पहुँचाया और कई स्थानों पर मराठा नौसैनिक अड्डे स्थापित किये, जिनमें [[अण्डमान]] द्वीप, [[विजयदुर्ग]] (मुंबई से 425 किमी दूर), आदि शामिल थे। वे आजीवन अपराजित रहे।