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<div style="float:left;margin-right:0.9em">[[Image:Pm1234Shiva GroundTemple, Bhojpur 01.pngjpg|120px|0 + 1 − 2 + 3 − 4 + ... के प्रथम 15,000 आंशिकभोजेश्वर योगमंदिर]]</div>
'''भोजेश्वर मन्दिर''' [[मध्य प्रदेश]] की राजधानी [[भोपाल]] से लगभग ३० किलोमीटर दूर स्थित [[भोजपुर, मध्य प्रदेश|भोजपुर]] नामक गांव में बना एक मन्दिर है। यह मन्दिर [[बेतवा नदी]] के तट पर [[विन्ध्याचल पर्वत शृंखला|विन्ध्य पर्वतमालाओं]] के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है। मन्दिर का निर्माण एवं इसके [[शिवलिंग]] की स्थापना [[धार]] के प्रसिद्ध [[परमार भोज|परमार राजा भोज]] ([[१०१०]] - [[१०५३]] ई॰) ने करवायी थी। उनके नाम पर ही इसे भोजपुर मन्दिर या भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है, हालाँकि कुछ किंवदंतियों के अनुसार इस स्थल के मूल मन्दिर की स्थापना [[पांडव|पाँडवों]] द्वारा की गई मानी जाती है। इसे "[[उत्तर भारत]] का [[सोमनाथ]]" भी कहा जाता है। यहाँ के शिलालेखों से [[११वीं शताब्दी]] के [[:श्रेणी:मध्य प्रदेश के मन्दिर|हिन्दू मन्दिर]] निर्माण की [[हिन्दू मन्दिर स्थापत्य|स्थापत्य कला]] का ज्ञान होता है। इस अपूर्ण मन्दिर की वृहत कार्य योजना को निकटवर्ती पाषाण शिलाओं पर उकेरा गया है। इन मानचित्र आरेखों के अनुसार यहाँ एक वृहत मन्दिर परिसर बनाने की योजना थी, जिसमें ढेरों अन्य मन्दिर भी बनाये जाने थे। इसके सफ़लतापूर्वक सम्पन्न हो जाने पर ये मन्दिर परिसर भारत के सबसे बड़े मन्दिर परिसरों में से एक होता। मन्दिर परिसर को [[भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग]] द्वारा [[भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची|राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक]] चिह्नित किया गया है व इसका पुनरुद्धार कार्य कर इसे फिर से वही रूप देने का सफ़ल प्रयास किया है। मन्दिर के बाहर लगे पुरातत्त्व विभाग के शिलालेख अनुसार इस मंदिर का [[शिवलिंग]] भारत के मन्दिरों में सबसे ऊँचा एवं विशालतम शिवलिंग है। इस मन्दिर का प्रवेशद्वार भी किसी हिन्दू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है। मन्दिर के निकट ही इस मन्दिर को समर्पित एक पुरातत्त्व संग्रहालय भी बना है। शिवरात्रि के अवसर पर राज्य सरकार द्वारा यहां प्रतिवर्ष भोजपुर उत्सव का आयोजन किया जाता है। ('''[[भोजेश्वर मन्दिर|विस्तार से पढ़ें...]]''')</div>
 
गणित में, '''[[१ − २ + ३ − ४ + · · ·|1 − 2 + 3 − 4 + · · ·]]''' एक [[अनन्त श्रेणी]] है जिसके व्यंजक क्रमानुगत [[प्राकृतिक संख्या|धनात्मक संख्याएं]] होती हैं जिसके [[प्रत्यावर्ती श्रेणी|एकांतर चिह्न]] होते हैं। अनन्त श्रेणी के [[अपसारी श्रेणी|अपसरण]] का मतलब यह है कि इसके आंशिक योग का अनुक्रम {{nowrap|(1, −1, 2, −2, ...)}} किसी परिमित [[अनुक्रम की सीमा|मान]] की ओर अग्रसर नहीं होता है। बहरहाल, 18वीं शताब्दी के मध्य में [[लियोनार्ड ओइलर|लियोनार्ड आयलर]] {{nowrap|1=1 − 2 + 3 − 4 + · · · = <sup>1</sup>⁄<sub>4</sub>}} बताया। दशक 1980 के पूर्वार्द्ध में [[अर्नेस्टो सिसैरा]], [[एमिल बोरेल]] तथा अन्यों ने अपसारी श्रेणियों को व्यापक योग निर्दिष्ट करने के लिए [[सुपरिभाषित]] विधि प्रदान की – जिसमें नवीन आयलर विधियों का भी उल्लेख था। इनमें से विभिन्न संकलनीयता विधियों द्वारा {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + · · ·}} का "योग" {{nowrap|<sup>1</sup>⁄<sub>4</sub>}} लिख सकते हैं। [[सिसैरा-संकलन]] उन विधियों में से एक है जो {{nowrap|1 − 2 + 3 − 4 + ...}} का योग प्राप्त नहीं कर सकती, अतः श्रेणी एक ऐसा उदाहरण है जिसमें थोड़ी प्रबल विधि यथा [[अपसारी श्रेणी#एबल संकलन|एबल संकलन]] विधि की आवश्यकता होती है। ('''[[१ − २ + ३ − ४ + · · ·|विस्तार से पढ़ें...]]''')</div>