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'''सती''', ([[संस्कृत]] शब्द 'सत्' का स्त्रीलिंग) कुछ पुरातन भारतीय [[हिन्दु]] समुदायों में प्रचलित एक ऐसी धार्मिक (कु) प्रथा थी जिसमें किसी पुरुष की मृत्योपरांत उसकी विधवा हुई पत्नी उसके अंतिम संस्कार के दौरान उसकी जलती हुई चिता में प्रविष्ठ हो कर आत्मदाह कर लेती थी। 1829 में अंग्रेजों द्वारा भारत में इसे गैरकानूनी घोषित किए <ref>{{वेब सन्दर्भ|last1=Thelallantop|title=शिव के अपमान से पड़ी सती प्रथा की ... - TheLallantop.com|url=http://www.thelallantop.com/bherant/the-origin-of-the-practice-of-sati-lies-in-the-puranas/|accessdate=5 जून 2016}}</ref>जाने के बाद से यह प्रथा प्राय: समाप्त हो गयी।
 
इस प्रथा को इसका यह नाम देवी सती के नाम से मिला है जिन्हें [[दक्षायनी]] के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दु धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी सती ने अपने <ref>{{समाचार सन्दर्भ|last1=IBN Khabar|title=आज भी मौजूद है 'सती प्रथा'– IBN Khabar|url=http://khabar.ibnlive.com/news/city-khabrain/8486.html|accessdate=5 जून 2016}}</ref>पिता दक्ष द्वारा अपने पति महादेव [[शिव]] के तिरस्कार से व्यथित हो यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। सती शब्द को अक्सर अकेले या फिर सावित्री शब्द के साथ जोड़कर किसी "पवित्र महिला" की व्याख्या करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
 
सती प्रथा की आवश्यकता- (१) जब आक्रमणकारियों द्वारा पुरुषों की हत्या कर दी जाती थी उसके बाद उनकी स्त्रियों के साथ बलात्कार करते थे इन सब से बचने के लिए पतिवर्ता स्त्रियां अपने पति की चिता पर आत्मत्याग कर देती थी
 
== इन्हें भी देखें==